Post – 2017-05-14

देववाणी (बत्तीस)

चन्द्रमा का बीच का शब्द द्र है । यह भी कौरवी प्रभाव है। मूल’तर’ था जो घोषप्रियता में ‘दर’ हुआ और कौरवी प्रभाव में त्र, तृ,’द्र’ ‘दृ’ , ‘द्रु’
हो गया।
अब निम्न रूपों पर ध्यान दें:
तर – पानी, तैरना, तरना, तर्पण – देवों, पितरों की प्यास बुझाना, तारना – जल धारा से पार कराना, पितरो को प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाना, तरी/ तरणी, – नौका, तरणि – सूर्य, तारा – आंख की पुतली, तारक / तारा, तारिका . तालिका – सूची, तीर्थ – तटीय या संगम का जनसंगम क्षेत्र जहां आदिम अवस्था में खाद्यान्न की प्रचुरता के दिनों में मुक्त जनसमागम होता था और जिसे बाद में पवित्र माना जाने लगा और उन विशेष दिनों में यज्ञ और स्नानादि को महत्व दिया जाने लगा, तरसना – पानी की लालसा, किसी भी अभाव की पूर्ति की उत्कट कामना, तिरसा – प्यास – कौरवी प्रभाव में तृषा/ तृष्णा – किसी अभाव की उग्र चेतना, त्रास – पिपासा जन्य व्यग्रता, उत्कट पीड़ा से गुजरना, त्रस्त – पिपासा ग्रस्त, ऐसी पीडा भोगता व्यक्ति , संत्रास / संत्रस्त, त्राहि – प्यासा मर रहा हूं कोई कोई पानी पिला कर मेरी प्राण रक्षा करे, मरणासन्न हूं, प्राण रक्षा करो, त्राण – पानी पिला कर प्राण बचाना, किसी भी संकट से मुक्ति दिलाना, किसी अन्य प्रकार से रक्षा करना,
अब हम कुछ और शब्दों को देखें:
1. द्रव, द्रवित, दारु, दारू, दरिद (दरिद्र, दारिद्र्य), दारा -( देखें कान्ता, भामा), द्रप्स, द्राक्षा, दर्प, दर्प, दर्पण, दृप्त।
2. दृक – दिक, दिश, दृग, दृश, दृष्टि, दर्श, प्रतिदर्श, आदर्श, दर्शन,वै. दृशीक, सुदृशीक, दृशेय (पितरं च दृशेयं मातरं च ), दर्शन (शास्त्र) ।
3. द्रु, द्रुण – लकड़ी का बना हुआ अर्थात् (1) डोंगी-(द्रुणा न पारमीरयते नदीनाम् ), (2) कठौत (द्रुणा सधस्थमासदत् ) और (3) दर्शन, उसी तरह लकड़ी के बने वर्तन डोंगा, डोंगी, जो उपादान बदल जाने के बाद कांच का, धातु का या चीनी मिट्टी के हों तो भी आप डोंगा, डोंगी शब्दों का प्रयोग आज भी करते हैं। ( ३), द्रुघण (द्रु =दारुमय+घन), द्रुण – लकड़ी का बना कोई हथियार या औजार जैसे मुग्दर (प्रति द्रुणा गभस्त्योर्गवां वृत्रघ्न एषते ), द्रोण – काठ का आधान जो सोलह मानी या सोलह सेर का सोलहगुना होता था, और (4) द्रोणाचार्य का अर्थ होगा मुग्दर विद्या में पारंगत। वे ऐतिहासिक थे या पौराणिक परन्तु शब्द से वह धनुर्विद्या के आचार्य नहीं गदायुद्ध में पारंगत लगते हैं। वै. द्रोघवाच – चोट पहुंचाने वाली बात करने वाला, द्रोह (विद्रोह), द्रुह्यु, द्रुहो निदो … अवद्यात् , सिंहमिव द्रुहस्पदे
४- द्रव – गतिशील, वे. द्रवतपाणि – फुर्तीली भुजाओं वाला, द्रुत – तेज गतिवाला, द्रुति- तेजी, द्रुपद – तेज भागने वाला या फुर्ती से पैतरे बदलने वाला.
अब इस पूरी समस्या पर एक दुसरे कोण से विचार करें:
क. तर्पण, त्रास, त्राण, त्राहि माम की अवधारणाएं किस जलवायु या कटिबंध में पैदा हो सकती है. यह भाषा किस भौगोलिक परिवेश में पैदा हुई. सचाई का प्रत्येक अणु उसकी असलियत बताता है. गढ कर खड़े किए गए फर्जी गवाह अपनी कसमों और रते हुए जुमलों के बावजूद अपनी असलियत बयान कर देते हैं. दुखद है कि भौतिक गुलामी मानसिक रूप में हमें इतना परजीवी बना देती है कि हम लंगड़ी दलीलों का लंग्दापन भी उजागर करने में विफल रहे. ये भरी भरकम नामों और कामों वाले विद्वान कितने धुप्पलबाज थे इसका एक नमूना ब्लूमफील्ड हैं जिन्होंने अथर्ववेद के उन सूक्तों का अनुवाद किया जिनका तंत्र मन्त्र और जादू टोन से सम्बन्ध है, इसी इरादे से उभोने वैदिक कंकार्डेंस का संपादन भी किया . उनका तर्क था कि स्नो शब्द से पता चलता है कि भारोपीय बोलनेवाले शीतप्रधान जलवायु के निवासी थे. उनकी नज़र उसी स्न से निकले स्नेक, स्नेल और सं. के स्नान आदि की और नहीं गया. यही हल सबका रहा है.
ख. इस विपुल शब्दाव्ली का एक क्षुद्र अंश ही यूरोपीय भाषाओँ में – ड्राप, ड्रिप, ड्राई, drought , थर्स्ट आदि के रूप में पहुंचा है. जब विलियम जोंस संस्कृत की समृद्धि (कोपिअसनेस ) की बात कर रहे थे तो उन्हें इसकी कल्पना भी न रही होगी कि इसका अनुपात क्या हो सकता है.