टिप्पणी तीन
चन / सन से सम्बंधित शब्दावली का हवाला देकर हम आपको थकाना नहीं चाहते, पर नाद के विलोम सन्नाटा (सन्नाटा नीरवता नहीं, इसे सांय सांय करते सन्नाटे से समझा जा सकता । इसमें हवा की सनसनाहट का भाव है) और संवेगात्मक क्रिया सनसनी या सनसनाहट (जो वास्तव में तपी हुई मिटटी पर पानी पड़ने से उत्पन्न ध्वनि का अनुकार है), की ओर और काल के लिए ‘समय’, और ‘सन’ पर ध्यान देना जरूरी है. सन को सम्वत के कारण और फ़ारसी में हिज़री सन् और ईस्वी सन् जैसे प्रयोग देखकर हम भूल सकते हैं की यह बहुत पुराना, सम्भवतः देववाणी का शब्द है। सम्वत का सम् और समय का सम और सनत, सनातन, सनन्दन की कहानी का सन काल सूचक है । ये इस बात की भूली हुई याद ताज़ी कराते हैं की चवर्ग प्रेमी समाज से परिचय और हेलमेल से पहले सूर्य या चाँद के लिए देववाणी में भी सन का प्रयोग होता था और चान और चाननी की तरह यह सूरज, धूप, और समय या बेला के लिए प्रयोग में आता था और बाद में कालदेव के चिर बाल और फिर भी चिरंतन रूपों (भूत, वर्तमान और भविष्य ) का मूर्तन इसी के आधार पर हुआ। अब यदि आप इस नंग धरंग, चिर शिशु त्रिमूर्ति की उपनिषद कथा फिर पढ़ें तो इनसे सभी देव क्यों कांपते हैं, इसे समझने में कुछ मदद मिल सकती है।