Post – 2017-05-12

देववाणी (इकतीस)
कसौटी (१)

(आज अनेक बुरे अनुभव हुए. जो लिखा वह उड़, गया. बच रहा उसे अधुरा समझ कर पढ़ें)

यदि हम जलपरक ध्वनियों को लेकर यह देखना चाहें कि इनसे उन कोटियों के कौन से शब्द बनते हैं, बनते भी हैं या नहीं, अथवा उन श्रेणियों में आने वाले किसी शब्द को ले कर यह जांचना चाहें कि यह किसी जलवाची शब्द से जुड़ता है या नहीं तो परिणाम एक जैसा ही होगा। हम विचार के लिए पहले चन्द्रमा में सम्मिलित चारों शब्दों को लेंगे और फिर अकारादिक्रम से जितने शब्दों पर संभव होगा विचार करते हुए एक शब्दभंडार तैयार करेंगे। संभव है तब तक हमारे मित्रों को यह समझ में आ जाय और यदि मुझसे यह पूरा न हो सके तो इस अधूरे काम को वे पूरा कर सकें।
चं./ चन / चम का पानी आशय वाला शब्द याद नहीं आ रहा । इसका एक कारन यह है अन्न की तरह चन का भी अर्थ अन्न विशेष अर्थात चना हो गया था । आज यदि किसी से कहें की अन्न का अर्थ जल था तो उसे हैरानी होगी। ऋग्वेद के समय तक पुराना अर्थ बचा हुआ था। चन और चना का भी पुराना अर्थ बचा हुआ था। इसे समझने के लिए हम कुछ वैदिक प्रयोगों पर ध्यान दें :
चनः (1.3.6) हविर्लक्षणमन्नं; (1.107.3; 2.31.6) अन्नं,
चनस्यतं (1.3.1) इच्छतं, चनशब्दो अन्नवाची, भुंजाथां
चनिष्टं (7.70.4) कामयेथां,
चनिष्ठं (5.77.4) बहुअन्नं कर्म,
चनोहितः (3.2.2) चनोऽन्नं हितं यजमाने, (3.11.2)अन्नं हविर्लक्षणं हितमस्येति,
चन्द्रअग्राः (5.41.14) आह्लादनं हिरण्यं वा अग्रे,
चन्द्रं (3.31.15) हिरण्यं,
चन्द्रं (4.2.13) आह्लादकारी
चन्द्ररथाः (6.65.2) कान्तिरथाः,
चन्द्रा (4.23.9) चन्द्राणि आह्लादकानि,
चन्द्रवत् (5.57.7) हिरण्योपेतं,
चन्द्राग्रा (6.49.8) हिरण्यप्रमुखा,
चन्द्रास: (3.40.4) आह्लादयितार:
चन्द्रेण (1.48.9) सर्वेषां आह्लादकत्वेन,
चन्द्रेण (1.135.4) आह्लादकेन हिरण्येन,

चन अन्न, कामना, कान्ति, आह्लाद, चांदी / सोना, के आशयों में ऋग्वेद में प्रयोग हुआ है । संस्कृत पर अधिक भरोसा करने के कारण यह सुझाव देने वाले मिल जायेंगे की चना संस्कृत चणक का अपभ्रंश है, पर ऋग्वेद से इस भ्रम का निवारण हो जायेगा और तब पता चलेगा की चणक स्वयं चना का तद्भव है.
स. आ-चमन में, और फिर तरल पदार्थ को उठाने के लिए – चमस, चमू, चम्वी, हिं. चम्मच और रसदार मिठाई चमचम में इसे पाया जा सकता है। नदी नामों में चंबल और चनाब / चिनाब में भी लक्ष्य किया जा सकता है कि इसका मूल अर्थ जल था । यह आशय अं. चैनेल / कैनाल और इसके सगोत यूरोपीय शब्दो में भी देखा जा सकता है।
पानी का एक गुण है शीतलता, इससे चैन, चन्नन (चन्दन और च / स के कारण सन्दल)। यह हिम और तुषार से लेकर तृप्तिदायक पेयतक पहुंच सकता है
यह एक ओर तो पानी के जमे !अधजमे विरोध आग से तो है ही चमक के कारण भी यह आग के लिए संज्ञा हाजिर क्र सकता है इसलिए चिनार, चिनगारी, में इसे लक्ष्य किया जा सकता है । चिनार की पत्तियां जब पतझड़ से पहले लाल होती हैं तो लगता है आग लगी हुई है । इस कारण इसका नाम ही अग्निवृक्ष है। जब आप चमड़ी में चिनचिनाहट की बात करते हैं तो जलन होने की शिकायत करते हैं। यहाँ मुझसे कुछ शिथिलता हो रही है. चिन और चिल का भी अर्थ पानी है और जैसा हमने देखा ये आग के लिए प्रयोग में आ सकते हैं। चिलम का अर्थ अबतक पता न रहा हो तो अब पता भी चल गया होगा पर इससे इस कर्म में बचना उचित था। हाँ यदि चण्ड, चण्डाल को इस कतार में खड़ा करते तो कोई हानि न थी.

जल प्राकृतिक दर्पण है इसलिए इस पर सभी रंगों का बिंब पड़ता है। अतः प्रकाश से लेकर अन्धकार तक के समस्त रंगों के लिए जल के किसी न किसी पर्याय का प्रयोग हुआ है । अतः चमक, चमकीला, चान (चांद), चाननी (चांदनी), चमकने वाली धातु- चानी (चांदी, वै. चन्द्रम्, चन्द्राणि) त. चन्दिल -शनि, आदि इसके सहजात हैं तो दूसरी ओर फा. शान, और अं. सन- सूरज, सन-धूप, शाइन, सीन , सी , साइट विचारणीय हो जाते है।
कल सम्भव हुआ तो पूरा करेंगे,