जो बात कल किसी वायरल हमले से उलट पलट गई उसे पूरक टिप्पणियों में रखने का प्रयत्न कर रहा हूँ;
टिपण्णी एक
१- हम चानी कहते है तो देववाणी के उस चरण की भाषा में चांदी कहते हैं, जब तालव्य प्रेमी समाज देवसमाज का अंग बन चुका था . यह सम्भव है की इससे पहले देवसमाज को इस धातु का पता ही न रहा हो. जब चन्द्रम कहते है तो उस चरण की भाषा में चांदी कहते है जब पानी के लिए सन और चन प्रयोग करने वाले देव समाज में इसके लिए तर का प्रयोग करने वाला समाज भी आ मिला था और इस पर कौरवी प्रभाव के कारण देववाणी संस्कृत बनने की और अग्रसर थी. समाज चांदी सोने का भरपूर उपयोग कर रहा था. चंद्र पानी, प्रकाश, चन्द्रमा, शोभा, और आनंद आदि के आशय में भी प्रयोग में आरहा था. और जब चांदी कहते हैं तो देवभाषा के प्रभाव में संस्कृत चन्द्रम को अपने ध्वनिविन्यास में ढाल कर ग्रहण किया जा रहा था, इसलिए इसे तद्भव न कह कर अनुकूलन कहना अधिक न्यायसंगत होगा.