Post – 2017-04-29

कलाकार के पास विचार नहीं होता, आवेग होता है। जो सूझ गया. आलोकित हो गया. अवचेतन के जोग जुगत से शिल्प और भाषा के साथ उपस्थित हो गया उसे वह हतने विश्वास से कहता है कि लगता है अन्तिम सत्य कह रहा है। कलाकारोें की रचनाओं में असंख्य अंनितम भावसत्य होते हैं जो आग पैदा कर सकते हैं प्रकाश नहीं दे सकते। विचार के मामले में कलाकारों पर भरोसा करना खतरनाक है। कला सम्मोहित और हतचेत करती है। हमारे समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है की कलाकारों ने चिंतक और मर्दर्शक की भी भूमिका अपना ली। स्वयं भी भटके और समाज को भी भटकाया। विचार के लिए राग और आवेग से मुक्ति और धीरज की जरूरत होतीं है। वर्तमान से लेकर इतिहास तक से जरुरी सूचनाएं एकत्र करके पीछे हट जाना होता है और उन आंकड़ों को बोलने की छूट देनी होती है। तथ्य बोलेंगे हम नहीं मर्म खोलेंगे तथ्य ही ।