छेड़छाड़
यूं तो भाई अरविन्द जी फेसबुक का इस्तेमाल काफीहाउस की मेज के रूप में, छेड़ने, खिझाने, और दिल बहलाने के लिए करते हैं, पर कभी कभी सीरियस भी हो जाते हैं और ये ही मौकै हैं जब वह अंजाम का अनुमान किए बिना खतरा उठा लेते हैं। अभी एक खतरा किसी मुल्ला की पोस्ट को साझा करने वाली किसी महिला का पोट घोषित गंभीरता के साथ साझा किया तो मुझे भी टी मोहन सिहं प्लेस की मेजों की याद आ गई और पूछने को जी हो आया किः
1. क्या वह जानते हैं न्याय में शास्त्र के विधान नहीं देखे जाते यथार्थ देखा जाता है। कोई भी रीतिविधान जब तक रीति निर्वाह तक सीमित रहता है वह पर्सनल ला में आता है, जहां उससे दूसरा प्रताड़ित और आहत होता है और वह उससे मुक्ति की गुहार सरकार से लगाता है तब वह क्रिमिनल ला के दायरे में आ जाता है। वह सती हो, बालिका वध हो, या संगसार हो, या तीनतलाक।
2. यदि तीन तलाक की न्यायसंगत मर्यादाएं हैं और उनका पालन नहीं किया जाता तब तो खास तौर से दुहरा अपराध बन जाता है। एक जिसका संज्ञान मुल्लों को लेना चाहिए और दूसरा जिसका संज्ञान अपराध संहिता को।
3. हलाला के पक्ष में खड़ा होना, एक महिला को एक दुर्भग्यपूर्ण स्थिति में डाल कर उसकी इच्छा के विरुद्ध दबाव बना कर किसी अन्य पुरुष से संबंध कायम करने को बाध्य करना नैतिक अपराध भी है औ भौतिक भी।
4. यह सफाई यह सिद्ध करने के लिए ऐसे मौके पर दी जा रही है जब पर्सनल ला और सिविल ला के बीच की समीक्षा का पर्यावरण तैयार हुआ है और इसका निहितार्थ है हमारा पर्सनल ला दुरुस्त है उसमें छेड छाड़ नहीं होनी चाहिए और आप गंभीरता से इसका साथ भी दे रहे हैं।
5. यह पीड़ा मुस्लिम महिलाओं की है, उन्होंने इसे उठाया है, इस्लामी कठमुल्लेपन के प्रत्येक विरोध को संघ की कारस्तानी बता कर कठमुल्ले तो बचते ही रहे हैं जो उनके साथ हो जाते रहे हैं वे स्वयं कठमुल्ले सिद्ध होते हैं इसलिए अरविन्द जी जैसे सुलझे व्यक्ति को गंभीरता और जिम्मेदारी से नहीं, विनोद के लिए छेड़े एक नए शगूफे के रूप में उठाना चाहिए था। अब भी वह अपना शीर्षक बदल सकते हैं।