Post – 2017-04-04

[आज मैं सारे दिन उद्विग्न रहा । बार बार याद आती रहीं पंक्ति – शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले. वतन पर मरने वालों का यही नामो निशाँ होगा।’ वे यह सवाल तक नहीं कर रहे थे कि मैं अपने देश के सम्मान के लिए अपनी जान दे रहा हूँ तुम हमें सम्मान दोगे न? उनकी एकमात्र प्रेरणा थी उनका यह विश्वास कि उनके वलिदान को देश याद रखेगा और इतना प्रतिदान ही उनके लिए पर्याप्त था. जो देश को हासिल करना चाहते थे, जिनके लिए स्वाधीनता ट्रांसफर ऑफ़ पावर मात्र थी उन्होंने उसी पावर का इस्तेमाल तब भी और बाद में भी उसी तरह किया जैसे अँगरेज़ करते.

मेरे लिए लिखना भाषा और विचार का खेल नहीं है इसलिए मैं लिखते समय विगलित हो जाता हूँ और हो सकता है इसी कारण कुछ मित्रों को मेरा लिखा पसंद आता हो. साधर्म्य के कारण. आज की पोस्ट की भूमिका ही लिख पाया पर लगा दिमाग सुन्न हो गया है इसलिए आज आप बोर होने से बच गए:]
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हम वह नहीं थे जैसा दिखाया गया हमको
थे वैसे नहीं जैसा बनाया गया हमको
होना न था जैसा कि आज होक़े भी खुश हैं
देखो भी कि किस ढब से मिटाया गया हमको
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मैं किसी भी ऐसे देश के विद्वान् को संदेह से परे नहीं पाता जिसका हमारे देश, समाज, धर्म और मूल्य-प्रणाली में निहित स्वार्थ हो।

जो जितना ही बड़ा विद्वान उस पर उतना ही अधिक संदेह।

अनाड़ी आप को जहर दे और आप मर भी जाएँ तो भी वह पकड़ा जायेगा. डॉ. जहर देगा तो आपको लगेगा आप की बेचैनी दूर कर रहा और आपका जहर असर करने में इतना समय लेगा की आप मरने से पहले कोमा में चले जाएंगे और डॉ या वह अस्पताल उसे रास्ते से हटाने के लिए उसकी मदद लेने वाले से खुले और दबे दो दरों से उगाही करेगा और इस तरह बेमौत मारेगा कि न तो डॉ पर कोई ऊँगली उठा सकेगा, न अस्पताल की साख पर न उसे रास्ते से हटाने वाले पर. हम जिस देश के वासी हैं उस देश में ऎसी मौतें होती हैं जिनमे खर्च उठाने वाला मरने वाले के परिजनों तक को उनके कोमा काल तक में मिलने या देखने की अनुमति नहीं दी जाती. परंतु जो असाधारण दक्षता वाले डॉ होते हैं वे द्रुतविलम्बित प्राणघात से भी बचे रहते हैं! वे ऐसे शामक का उपयोग करते हैं जिससे पैदा हुई दिव्यानुभूति के आप इतने आदी हो जाते हैं की उससे बाहर निकलना ही नहीं चाहते। आप को पागलखाने तक की ज़रूरत नहीं पड़ती और उनका काम हो जाता हैं।