Post – 2017-04-01

सच हो तुम सच से जियादा कुछ हो
तुम्हारी सोच, इरादा कुछ हो
तुम बहरहाल हमारे हो अज़ीज़
कितनी फितरत है, गो सादा कुछ हो.

तुम को चाहा है और चाहेंगे
आईने में भी और सामने भीं
तुम को करना है जिसकी आदत है
हमारा कौल औ’ वादा कुछ हो.
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ऐ मुहब्बत तेरी बर्वादियों का है भी हिसाब
कितने रौशन हुए घर ख़ाकदान होने को
सुझाया तुमने ही होगा किसी वहशी को यह
खुशामदीद के पीछे से इशारा कुछ हो.