Post – 2017-04-01

देववाणी = आदिम भारोपीय = आदिम भोजपुरी

शीर्षक में प्रयुक्त अंतिम पद वह मनोवरोध पैदा करता रहा जिसके कारण मैं भारोपीय की विकासरेखा की पड़ताल को टालता रहा. कारण मैं स्वयं भोजपुरिया हूँ और यह आशंका मन में थी कि कहीँ कोई ऐसा पूर्वाग्रह वस्तुपरकता पर हावी न हो जाय. यह भी एक कारण था जिसमे जन जन जाँचत दीन ह्वै दर दर माँगत जाय वाली स्थिति पैदा हुई. जिसे भी देखता कि उसकी भाषा में रुचि है, काम करने की क्षमता है, आगे लंबा समय बचा है, हाथ जोड़ कर खड़ा हो जाता भाई तुम इसे समझो और इस काम को संभालो. बहुमन्य और आत्मसीम पंडित आहत होते और आहत कर भी देते थे. सभी दिशाओं से निराश होकर कर बहियाँ बल आपनी छोड़ पराई आस का सहारा लेना पड़ा. परन्तु यदि आपमें किसी को कहीं लगे कि यह स्वभाषा प्रेम से कातर होकर इस रूप में अमुक तथ्य को अमुक रूप में प्रस्तुत किया है और अपने तथ्य और तर्क भी रखें तो वस्तुपरकता के निर्वाह में सुविधा हो जाएगी.