कविता को कवि की आपबीती से आगे जाकर मानवीय मेलोड्रामं के रूप में देखें तभी इसका आनन्द लिया जा सकता है:
जवानी के भी दिन कितने बुरे थे
जिसे देखा उसी पर मिट मरे थे
पिटे कब कब न इसका जिक्र छेड़ो
हमारे जख्म कल तक भी हरे थे।
कविता को कवि की आपबीती से आगे जाकर मानवीय मेलोड्रामं के रूप में देखें तभी इसका आनन्द लिया जा सकता है:
जवानी के भी दिन कितने बुरे थे
जिसे देखा उसी पर मिट मरे थे
पिटे कब कब न इसका जिक्र छेड़ो
हमारे जख्म कल तक भी हरे थे।