मैं यह नहीं चाहता कि मुझे इज्जत देने के लिए मेरे मित्र मेरी बात भी मान लें, मेरी इज्जत इस बात में है कि आप मुझे पढ़कर सोचना आरम्भ कर दें, मैं क्यों और कहा गलत हूँ, इसे जानने का अवसर मुझे भी दें.
दुनिया का कोई आदमी इतना सही हो जाय कि सभी उसके मानदंड पर खरे सिद्ध होकर ही सही सिद्ध हों तो विचार का अंत हो गया.
दुनिया का बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति यह सोचे कि अनपढ़ों, तथाकथित मूर्खों, विक्षिप्तों और जानवरों से भी कुछ सीखा जा सकता है तो मानें दुनिया आगे बढ़ रही है.
मैं उसी भविष्य के लिए पसीना भी बहाता हूँ और मोमबत्ती भी गलाता हूँ, पर यदि लगे कि मैंने ऐसे श्रोता समुदाय को जन्म दिया है जो इतना आलसी है कि स्वयं सोचने की जगह कोई प्रयत्न किए बगैर मुझसे ही उत्तर चाहता है, तो लगता है जो लिखा वह व्यर्थ गया.
मैं आगे जो कुछ लिखने वाला हूँ उसका मसाला चार्ल्स ग्रांट की रपट पर आधारित है. यह गूगल पर सुलभ है. इसे यदि कोई पढ़ कर मुझे यह बता सकता है कि मैंने क्या छोड़ा किस को तोड़मरोड़ कर पेश किया तो मुझे अपने लिखने का पुरस्कार मिल गया.