Post – 2017-01-14

उस सैनिक कीशिकायत में कुछ अतिरंजना हो सकती है, कुछ स्‍थानीय समस्‍या भी हो सकती है, परन्‍तु सेना में अनुशासन हो यह जरूरी है अौर सैनिकों का आत्‍मसम्‍मान बना रहे यह भी जरूरी है। सेना में बहुत कुछ है, जिसको अनुशासन के नाम पर होने दिया जाता है जो दूर होनी चाहिए। मोदी को इस बात का श्रेय है विविध प्रकार की पीड़ाएं भोग रहे लोगों की अपेक्षाएं पहली बार जाग रही हैं और उनकी ओर पहली बार ध्‍यान दिया जा रहा है । उस सिपाही के साहस को जिसने अपने खाने को लेकर शिकायत सामाजिक माध्‍यम से की दुस्‍साहस कहना होगा। यदि सामाजिक माध्‍यम से उसे प्रधानमंत्री तक ही अपनी शिकायत पहुंचानी थी तो उसे पहले प्रधानमंत्री को लिखना चाहिए था जिनको असाध्‍य बीमारी से ग्रस्‍त साधनहीन, शिक्षा, विवाह, विदेश में फंंसे स्‍वजनों, विदेश यात्रा में बाधक तत्‍वो
जैसे अनगिनत कष्‍ट झेलने वाले लोगों ने यहां तक कि अपने गांव के भोड़े नाम को बदलनवाने जैसे विचित्र समस्‍याओं से पीडि़तों ने अपना दुख पहुंचाया है और उनकी पीड़ा का निवारण करने का बिना किसी भेदभाव के प्रयत्‍न हुए हैं जिसके प्रमाण हैं। फिर भी इस दुस्‍साहस के परिणाम स्‍वरूप सैनिकों की अपनी शिकायतों और सुझावों के लिए पहली बार प्रबंध और इसकी उच्‍चतम स्‍तर तक पहुंच का कुछ श्रेय उसे भी जाता है।
आकांक्षाओं का इतना सैलाब, जिनका समाधान जिस साधन संपन्‍नता की अपेक्षा रखता है वह तो जादू से नहीं हो सकता परन्‍तु उनको पूरा करने की कोशिश से ही ये जागती भी हैं। आज से पहले इसका नमूना नही देखा गया। दलित घरों में खाना खा कर फोटो खिचवाने वाले और उन्‍हें उनके भाग्‍य पर छोड़ आने वाले अवश्‍य दिखाई दिये । मोदी की असाधारण लोकप्रियता, और उनसे पहली बार न्‍याय पाने के विश्‍वास को तराजू मान कर ही यह समझा जा सकता है कि मुद्रा संकट को जतना ने तमाम उकसावों के बाद, नकारात्‍मक टिप्‍पणियों के बाद लगातार बिना किसी उकसावे के कैसे झेला। उकसावे में आए अन्‍त में तो रिजर्वबैंक के वे लोग जिनकी मिली भगत से नयी मुद्रा चुपचाल करोड़ों करोड़ गलत हाथों में पहुंच गयी थी और मुद्रा संकट को अधिक गहरा बनाने का प्रयास किया गया था। कल को दूसरे बैंकों की यूनियनें भी आ सकती है और पर वे जनता के दुख से नहीं अपनी संलिप्‍तता के कारण आएंगी ऐसा मेरा अनुमान है । मोदी सरकार ही इतना साहसिक कदम उठा सकती थी और वही जनसमर्थन के बल पर इसे उस किनारे की ओर लगा सकती थी कि कष्‍ट आज भी समाप्‍त नहीं, पर लोगों को राहत अनुभव होने लगी है। लोगों के दुख देखने वालों ने अपनी खेती की, दुख से उबरने का नुस्‍खा नहीं दिया। इससे भी चिंन्तित और विकल मोदी ही थे यह समझने के लिए उनकी इसी साल के अक्‍तूबर और नवंवर के पहले पखवार के चित्र की तुलना उनके आज के चेहरे मे आए बदलाव से की और समझी जा सकती है।