Post – 2016-12-27

इतिहास के पीछे का इतिहास

”हम दुनिया के सबसे भले लोग हैं। भला कहाने का उससे अधिक चाव है । इसे आप हमारा भोलापन भी समझ सकते हैं। भोला का कुछ संबंध भूलने से भी है। जिन्‍हे देश दुनिया का पता न हो, अपने वर्तमान और इतिहास का पता न हो, जिममें किसी तरह की चालाकी न हो, उन अबोध शिशुओं और बच्‍चों के लिए हम भोला का प्रयोग करते हैं और करते हैं भोलानाथ के लिए जिनको भी इस नासमझी के लिए ही जाना जाता है। भोला व्‍यक्ति दूसरों की नजर में भला बने रहने के लिए उसकी इच्‍छा की पूर्ति करता हुआ गौरव अनुभव करता है। वह अपनी समस्‍याओं का सामना नहीं करना चाहता, या अपनी समस्‍या को अपनी भलमनसाहत की रक्षा की समस्‍या के रूप में देखता है । यह दासता का ऐसा रूप है जिसमें जातीय अपमान को सहन करते हुए, अल्‍पतम संरक्षण को अपने सम्‍मान की बात समझा जाता है और अपमानित होने के बाद भी स्‍वामी के हित की चिन्‍ता से न डिगने को अपने गौरव की कसौटी माना जाता है। परंपरागत रूप में इसे स्‍वामिभक्ति कहा जाता रहा है जिसमें अपना मान सम्‍मान अपमान और उत्‍पीड़न कोई अर्थ नहीं रखता, सम्‍मान की कसौटी है स्‍वामी के अोदश, हित या नियोजित कार्य की सिद्धि – मोहि न कछु बांधे कर लाजा । करन चहहुं निज प्रभु कर काजा । व्‍यक्ति इसमें निमित्‍त बन कर रह जाता है, या उसकी हैसियत औजार, या हथियार की हो जाती है। इसे अमानवीकरण की प्रक्रिया से जोड़ कर देखें तो चौंक उठेंगे यह सोच कर कि प्रबुद्ध से प्रबुद्ध व्‍यक्ति ही नहीं, पूरा समुदाय डिह्यूमनाइजेशन का शिकार होने के बाद भी अपने को दूसरों से अधिक उदार और समावेशी मानते हुए इस पर गर्व करता है। ज्ञान उसके पास होता है, परन्‍तु न वह आत्‍मज्ञान होता है, न ही इतिहासबोध, न वस्‍तुबोध। वह बौद्धिक रूप में अपने स्‍वामी या स्‍वामिवर्ग के समक्ष समर्पण कर देता है और अपनी जानकारी को उसकी अपेक्षाओं की पूर्ति काे उचित सिद्ध करने पर लगता है।”

शास्‍त्री जी हाथ जोड़ कर खड़े हो गए, ”डाक्‍साब आज आप यह समझाने वाले थे कि यह हिन्‍दू द्रोह हिन्‍दुअों के भीतर कैसे पैदा हुआ और आप भले बुरे की मीमांसा आरंभ कर दी ।”

शास्‍त्री जी, इतिहास की विडंबना यह है कि इसे हमेशा बीच से आरंभ करना हाेेता है क्‍योंकि अादि का हमें पता नहीं होता और विडंबना यह कि आसन्‍न के साथ सुदूर अतीत भी हमारे वर्तमान में, हमारे आज के अभी के निर्णयों में अपनी भूमिका पस्‍तुत करता है। कोई घटना या क्रिया जहां हमेंं दिखाई देती है उसके पीछे ज्ञात और अज्ञात कार्यों और कारणों की एक लंबी शृखला होती है जिस पर ध्‍यान दें तो लगेगा दुनिया में कुछ भी ऐसा है ही नहीं जा नया हो । शेक्‍सपियर का वह वाक्‍य याद है न ‘दुनिया में कुछ भी नया नहीं है। नथिंग इज न्‍यू अंडर दि सन।”

”मुझे अंडर दि सन का एक दूसरा मतलब समझ में आता है, जो दुनिया में नहीं, बल्कि ‘हमारी जानकारी में’ । जो भी हो , इससे फर्क नहीं पड़ता । यह एक पुरानी, बहुत पुरानी सूझ है जो वटबीज में वटवृक्ष की उपस्थिति से या पुरुष सूक्‍त की उस व्‍याख्‍या से जुडी है जिसमें सृष्टि के आदि में ही एक साथ सब कुछ के घटित हो जाने परन्‍तु हमारी दृष्टि में यथाक्रम आने के रूप में कल्पित है ।”

मैं हैरान हो कर शास्‍त्री जी को देखने लगा । इतनी पैनी दृष्टि की तो मैंने उनमें कल्‍पना ही न की थी।

”आप ठीक कहते हैं, इतिहास और वर्तमान जैसा भी कुछ नहीं होता, हमें जो ज्ञात होता है उससे पीछे बहुत कुछ होता है जिसे हम जानने का प्रयत्‍न कर सकते हैं, पूरी तरह जान नहीं सकते।”

”पूूरी तरह तो डाक्‍साब हम वर्तमान को भी नहीं जानते, अतीत को कैसे जान सकते हैं।”

मुझे सहमत होना पड़ा । अब यह समझना होगा कि जिन्‍हें आप हिन्‍दुत्‍व का शत्रु मानते हैं, वे अधिक हिन्‍दू हैं या आप। आप पर उनका यह आरोप है कि आप का जन्‍म ही लीग की प्रतिक्रिया में हुई और इसलिए आपने उसका सामना करने के लिए उन्‍हीं औजारों और हथियारों का अधिक भोड़े रूप में प्रयोग किया और आप कहने को हिन्‍दु हैं परन्‍तु आपकी आत्‍मा और चरित्र यहां तक कि आदर्श सामी हैं। आपका उन पर आरोप यह कि उन्‍होंने न तो हिन्‍दू अतीत को, इसके इतिहास को समझने का प्रयत्‍न किया है न ही इसके रक्षणीय दायों का सम्‍मान किया है और हिन्‍दुत्‍व की मूल्‍यव्‍यवस्‍था की आड़ में हिन्‍दुत्‍व का उन्‍मूलन करने को तत्‍पर रहे हैं और जिन सामी मूल्‍यों की तुलना में हिन्‍दू मूल्‍यों का समर्थन करते रहे हैं, उन्‍हीं सामी मजहबों की सेवा में नियुक्‍त हो कर अपने इतिहास, अपनी संस्‍कृति का उससे अधिक निर्ममता से सत्‍यानाश करते रहे हैं जिससे मध्‍यकाल में मन्दिरों, मूर्तियों, शिक्षाकेन्‍द्रों और ग्रन्‍थागारों को नष्‍ट करते, अग्निसात करते, उनके रक्षकों का वध करते आगे बढ़े वह संस्‍कार रूप में उनके वंशधरों में भी बना रह गया है । वे सामी मतों की आलोचना तक नहीं कर सकते, उनके साथ खड़े हो जाते हैं। मुझे आप दोनों सही लगते हैं इसलिए उस इतिहास में जाना होगा जिसकी समग्र उपस्थिति या दबाव वहां भी रहता है जब हम उनका विरोध कर रहे होते हैं। इस ग्रन्थि को समझने के लिए हमें इतिहास की वर्तमान में उपस्थिति के उन रूपों को समझना होगा जिनका छोटा रास्‍ता आप तलाश रहे थे। इसे कल के लिए स्‍थगित करें तो कैसा रहेग।”

शास्‍त्री जी ने उत्‍तर नहीं दिया । नमस्‍कार की मुद्रा में आ कर चलने के लिए तत्‍पर हो गए।