Post – 2016-12-23

दुश्‍चक्र

शास्‍त्री जी किसी दूसरे काम से हमारी ओर आए थे और सोचा जब आए हैं तो मुझसे भी मिलते चलें, पर जरूरी नहीं कि वह किसी और से मिलने आए हों, क्‍योंकि औपचाारिकता के बाद वह जिस तरह अपने विषय पर आ गए और आक्रामक ही नहीं हो गए, अपितु अपनी बात अपने मोबाइल पर सुरक्षित किए गए दृश्‍याेें और कतरनों से रखने लगे उससे इतना तो साफ था कि वह पूरी तैयारी से और मुझसे ही दो दो हाथ करने आए थे।
उन्‍हें शिकायत मेरे दो दिन पहले की पोस्‍ट से थी जिसमें मैंनेे पश्चिम और शेष जगत के बीच खुले युद्ध के प्रमाण देते हुए शेष जगत के सभी लोगों के बीच इसकी समझ पैदा करने और आपसी कलह से बचने की, यहां तक कि पश्चिमी देशों और विशेषत: उनके सरगना अमेरिका के द्वारा हमें अपास में लड़ाने के लिए तैयार किए जाने वाले हथियारों का खरीदार बनने से बचने की और अापसी झगड़े कम करने की सलाह दी थी ।

उन्‍होंने पहला ही सवाल दागा, ”डाक्‍साब, एक बड़े युद्ध की आड़ में क्‍या आप अपने ऊपर होने वाले हमलों में हमलावर से मेल मुहब्‍बत की बात करके सुरक्षित रह सकते हैं, विशेषत: तब ज‍ब आप का ऐसा प्रस्‍ताव उनके दुस्‍साहस को और आपकेे संकट को बढ़ा रहा हो। आप अपने धन, मान, और प्राण की रक्षा के लिए प्रत्‍याक्रमण नहींं करेंंगे ।”

मुझे कुछ अनुमान तो हुआ कि उनका संकेत किधर है परन्‍तु मैं उनसे ही सुनना चाहता था कि उनको शिकायत किस बात से हैै। मैंने अबोध बन कर कहा, ”प्रत्‍याक्रमण या प्रतिरक्षा ताेे करना ही होगा, परन्‍तु आप को यह कैसे लगा कि मैं आततायियों को गले लगाने का पक्षपाती हूं । कोई कारण तो होगा आपके ऐसा सोचने का।”

”आप सलाह देते हैं कि इस समय सबसे खतरे में मुस्लिम समुदाय है। उनमें उत्‍तेजना पैदा करके, उसे बदनाम करके अरक्षणीय बनाते हुए उनके देश के देश अमेरिका और पश्चिम के दूसरे देशों द्वारा तबाह किए जा रहे हैं आैैर उनके बाद हमारी बारी भी आ सकती है क्‍यों‍कि गोरों को पूरी दुनिया अपने लिए चाहिए और जिस तरह उन्‍होंने अमेरिका के मूल निवासियों का सफाया किया वे एक एक करके दूसरों का भी सफाया करते जाएंगेे इसलिए हमें मुसलमानों के साथ सहानुभूति और सहयोग से काम लेना चाहिए, परन्‍तु हम तो इस बीच ही उन लोगों के द्वारा मिटा दिए जाएंगे जिनको आप संकटग्रस्‍त मानते हैं।”

शास्‍त्री जी ने अपना मोबाइल खोला और उन दुर्घटनाओं की फुटेज दिखाने लगे जिनमें भारत में राज्‍य सरकारों कि शिथिलता या वोट बैंक को भुनाने की दुर्बलता के कारण मुसलमानों द्वारा हिन्‍दुओं की संपत्ति लूटी, बर्वाद की जा रही है, और उनके सम्‍मान को ठेस पहुंचाई जा रही है, खुलेेआम हत्‍या की जा रही है, वे अपने ही घर से पलायन कर रहे हैं और आप उनके साथ सहानुभूति और सहयोग की हिमायत करते हुए हमारी प्रतिरोध क्षमता पर बड़े भोलेपन से कुठाराघात कर रहे हैं, हमें आसन्‍न खतरों से असावधान कर रहे हैं और इस तरह हमारे संकट को बढ़ा रहे हैं केवल इस लालसा से कि आपको अधिक संंतुलित और दूरदर्शी मान लिया जाय । आपकी सोच और आपके ही शब्‍दों में सेकुलरिस्‍ट नाम से लीग की सियासत करते हुए हिन्‍दुओं की दुर्गति को बढ़ाने वालों में कोई अन्‍तर है ।”

कुछ देर के लिए मैं स्‍तब्‍ध रह गया । मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि इसका क्‍या उत्‍तर दूं ।

उत्‍तर स्‍वयं शास्‍त्री जी देने लगे, ”आप का कहना सही है कि गोरे देशों का, रंगीन देशों काेे कई बहानों से आपस में लड़ते झगडते हुए अपनी बर्वादी स्‍वयं करने को संचार से ले कर हथियार के माध्‍यम से भड़काया जा रहा है, परन्‍तु दुनिया आज एक तरह के खतरे से नहीं जूझ रही है। दूसरे बहुत से संकट हैं। पर्यावरण के सत्‍यानाश का संकट है जिसमें अधिकांश लोगों के लिए वे गोरे हों या काले सबका जीना कठिन हो जाएगा और कुछ असाधारण संपन्‍न लोगों के पास ही अपने परिवेश में स्‍वच्‍छ वायु और स्‍वच्‍छ जल और पर्यावरण की गिरावट से बचाव के साधन बचे रहेंगे और तब दुनिया गोरों द्वारा कालों के निर्मूल किए जाने की न रहेगी अपितु असाधारण संपन्‍नों या अमीरों और शेष जगत की सुुरक्षा की बन जाएगाी और जैसे कि लक्षण है यह दूसरा संकट वेस्‍ट ऐंड द रेस्‍ट से भी पहले उपस्थित हो सकता है ।

”हमारी समस्‍या दूसरी है, हम आसन्‍न संकटों से निपटने की जगह आसन्‍न संकट पैदा करने वालों से सहयोग नहीं कर सकते, उनके साथ सहयोग करने की पहली शर्त है उनमें भी उस संकट का बोध हो और आपकी परिभाषा के अनुसार सबसे अधिक सकटग्रस्‍त वे हैं जो हमारे लिए खतरा बनते जा रहे हैं, इसलिए नम्रता और सहयोग की मांग और उसके लिए उचित मनोवैज्ञानिक पर्यावरण तैयार करने की जिम्‍मेदारी उनकी होनी चाहिए न कि हमारी । कितना हास्‍यास्‍पद है यह प्रस्‍ताव कि भाई तुम लोग सबसे अधिक संकटग्रस्‍त हो। हम तुम्‍हें बचाना चाहते हैं, तुम हमारी मदद ले लो और वह इस उदारता काेे आपकी असमर्थता मान कर आप के साथ अधिक अमानवीय व्‍यवहार करता चला जाए। आपकी सद्भावना उसकी दुर्भावना के लिए प्रेरक का काम करे, आप अपने ही विचारों से अपने विनाश केे आयोजन में सहायक हों, यह बात मेरी समझ में नहीं आती ।”

एक तो मुझे शास्‍त्री जी का उत्‍तर नहीं सूूझ रहा था, दूसरे यह भी देख रहा था कि कोई समीचीन उत्‍तर हो तो भी वह उनकी समझ में इस समय नहीं उतर सकता । मैं चुप रहा, चिन्तित और सोचता हुआ।

”मेरी चुप्‍पी नेे शास्‍त्री जी को प्रोत्‍साहित ही किया, ”वे आज भी उसी सिद्धान्‍त पर काम कर रहे हैं। मुसलमान हिन्‍दू के साथ शान्ति से नहीं रह सकता इसलिए दोनों का देश बांट देा और आबादी को अपने अपने देश में बसाओ जिससे वे शान्ति से रह सकें। जब तब आबादी का पुनर्वास नहीं हो जाता है तब तक दोनों देश अपने अपने अल्‍पमतों की सुरक्षा करें। यही तो था जिन्‍ना का प्रस्‍ताव । हमारे नेताओं ने अपने को दूसरों से अधिक उदार दिखाने के लिए जो मूर्खता की उसकी सबसे अधिक हानि केवल हिन्‍दुओं को उठानी पड़ी है, इसे चाहे आप तीनों देशों की आबादी के रैखिक अंकन से समझेंं, या उनकी सुरक्षा और संपन्‍नता से।
राजनीति सद्भावना का तमाशा नहीं है, जीवन की कठिन समस्‍याओं के सर्वोत्‍तम समाधान का दूसरा नाम हैै । हमने राजनीतिक परिपक्‍वता का परिचय नहीं दिया, चापलूसी से दूसरों का दिल जीतने का प्रयोग किया, जिसका परिणाम उल्‍टा रहा । जितनी ही उदारता दिखाई उतनी की हठधर्मिता का विस्‍तार हुआ । कश्‍मीर में हिन्‍दू मुसलमान सभी रहते थे, वह एक प्रयोगशाला थी आपसी सद्भाव की, परन्‍तु परिणाम । जिन राज्‍यों में सेकुलरिज्‍म के दिखावे की ओट में मुस्लिम वोट बैंक के लिए उनकेे साथ सदाशयता बरती गई उनमें राष्‍ट्रद्रोही गतिविधियों का विस्‍तार हुआ और किसी छोटी सी बस्‍ती या नगर में जनसंख्‍या का अनुपात बदलते ही वहां किसी हिन्‍दू का सम्‍मान से रहना असंभव हो जाता है। आतंकवा‍दियों की गतिविधियां बढ़ जाती हैं । बम बनाने के कारखाने खुल जाते हैं। वेस्‍ट ऐंड द रेस्‍ट का संकट तो दूर है, हमारे लिए तो रेस्‍ट और अनरेस्‍ट की समस्‍या सबसे उग्र है और इसे आप जैसों की समझ ने अधिक उग्र बनाया है। ”

मुझसे तत्‍काल कोई ऐसा उत्‍तर देते नहीं बन पा रहा था जिससे शास्‍त्री जी को शान्‍त कर सकूं । कहा, यदि जिस काम से इधर आए थे यदि उसके कारण आपको इधर ही रुकना हो तो कल हम इस पर बात करेंगे । आज तो मुझेे स्‍वयं भी इसका उत्‍तर नहीं सूझ रहा है । हो सकता है मेरी स्थिति को देख कर कोई दूसरा मेर सहायता को आ जाए ।”

क्‍या आपके पास कोई सही समाधान है । शास्‍त्री जी तो कल फिर आने को कह कर चले गए।