Post – 2016-12-19

सेक्‍युलरिज्‍म का सही नाम हिन्‍दुत्‍व है

तुम्हारे साथ समस्या यह है, और यह समस्या केवल तुम्हारे साथ नहीं है, हिन्दू काठी के सभी लोगों की यह समस्या है कि तुम लोग गिरगिट की तरह रंग बदल कर अपने को बचाने और सही ठहराने का प्रयत्न करते हो, पर सही हो नहीं पाते! जब सही होते हो तो सबसे अधिक गलत होते हो और जब गलत होते हो तो दयनीय लगते हो !”

‘‘तुम कोई नई बात नहीं कर रहे हो, आज तक यही करते आए हो । यह आत्‍मप्रक्षेण है। परन्‍तु यह बताओ कि जब तुम हिन्‍दू समाज को कोसते हो, या जिसे तुमने हिन्‍दू काठी कहा, उसे कोसते हो, तो तुम्‍हारी काठी क्‍या रहती है? हिन्‍दू या हिन्‍दू से इतर ? यदि इतर तो उसकी संज्ञा क्‍या है ?’’

वह हंसने लगा, ”तुम जानते हो, उसकी संज्ञा क्‍या है। फिर भी यदि तुम भूल गए हो तो बता दूं , उसे सेक्‍युलरिज्‍म कहते हैं।”

”तुम हिन्‍दू नहीं हो, सेक्‍युलर हो।”

”मैं हिन्‍दू हो कर भी सेक्‍युलर हूं और तुम हिन्‍दू हो कर केवल हिन्‍दू रह गए हो या रह जाना चाहते हे। इससे बड़ी कोई पहचान तुम्‍हारे लिए कोई मानी नहीं रखती ।”

”अपनेे मनोचिकित्‍सक से कितने दिन पहले मुलाकात की थी तुमने ? याद न हो तो उनका नाम बताओ मैं पता लगा लूंगा। यदि नहीं है तो उसका प्रबन्‍ध्‍ा भी कर दूंगा पर उस दशा में तुम्‍हारा उससे मिलना मेरे खर्च पर रहा ।”

एक मिनट के लिए वह भौचक रह गया, फिर संभला तो मुस्‍कराने लगा,। ”जब जवाब देते नहीं बनता है तो लटकेबाजी का सरहारा लेते हाेे। आत्‍मनिरीक्षण करो तुम इतने क्षुद्र बन कर क्‍यों रहना चाहते हो ?”

”मैं तुम्‍हारा उत्‍तर ही दे रहा था पर तुम्‍हारी भाषा मेें बात करते हुए यह नहीं कहूंगा कि तुम इतने कमीने बन कर क्‍यों रहना चाहते हो, कि लाभ या ख्‍याति के लिए तुम अपना तिरस्‍कार करने को तैयार रहते हो, क्यों‍कि मैं जानता हूं तुम बीमार हो और तुम्‍हें सहानुभूति और मदद की जरूरत है।

”तुम इतने प्रतिभाश्‍ााली हो फिर भी यह नहीं जानते हिन्‍दू होना सेक्‍युलर होना भी है, परन्‍तु तुम जिस सेक्‍युलरिज्‍म की बात करते हो वह सामी मजहब है और उसे अपनानेे के बाद तुम हिन्‍दू नहीं रह सकते । अपने को धोखा अवश्‍य दे सकते हो। और य‍दि तुम हिन्‍दू होते हुए सेक्‍युलर भी होने की बात करते हो, तो तुमने हिन्‍दू ही नहीं भारत से जुड़े श्‍लाघ्‍य दायों को समझा नहीं और उसके ऐसे पहलुओं की तलाश करते रहे जिससे तुम अपने आप से घृणा कर सको, उस श्‍लाघ्‍य दाय को कुत्सित बना कर प्रस्‍तुत करते रहे । यही तुम्हारा आज भी मंगलाचरण था।

”अब तुम्‍हेें याद होगा एक बार मैंने पहले भी तुम्‍हेें आत्‍मपीड़क या मैसोकिस्‍ट कहा था, पर तब यदि कोई दुविधा थी तो आज वह दूर हो गई । तुुम तो यह भी नहीं जानते कि सेक्‍युलर का अर्थ क्‍या है । कोई व्‍यक्ति सेक्‍युलर नहीं हो सकता, वह धर्मपरायण हो सकता है, धर्म विमुख हो सकता है, उदार हो सकता है, सहिष्‍णु या असहिष्‍णु हो सकता है। सेक्‍युलर तो केवल राज्‍य या उसकी व्‍यवस्‍था हो सकती है। यह धर्मतन्‍त्र के विरोध में विकसित संकल्‍पना है जिसमें इस बात का ध्‍यान रखा जाता है कि राज्‍य अपने कार्यव्‍यापार में किसी धर्म के अनुसार न चले, किसी तरह का धार्मिक पक्षपात न करे, किसी धार्मिक समुदाय के आंतरिक मामलों में हस्‍तक्षेप न करे, कहो यह राज्‍य और धर्म के बिलगाव का सिद्धान्‍त है फिर तुम एक व्‍यक्ति होते हुए सेक्‍युलर कैसे हो सकते हो । क्‍या तुम अपने को राज्‍य समझते हो ? असंभव नहीं है, खब्‍ती लोग तो अपने को ही देश समझने लगते हैं और तुम भी ऐसी ही जमात में शामिल हो ।”

”दलील अच्‍छी दे लेते हो, पर दिमाग से काम नहीं लेते । मैं सेक्‍यलरिज्‍म का समर्थक हूै। ”

”तो कहाेे मैं सेक्‍युलरिस्‍ट हूं, जैसे कोई अपनेे का एनार्किस्‍ट, सोसलिस्‍ट, डेमोक्रैट, कम्‍युनिस्‍ट आदि कहता है। तुम तो जिन शब्‍दों का जाप करते हो उनका अर्थ तक नहीं जानते ।

”धर्मतन्‍त्र के स्‍थान पर लोकतन्‍त्र के हिमायती कहते तो अधिक सही होता, गो पूरा सही वह भी नहीं होता। सेक्‍युलरिज्‍म बहुत संकीर्ण और कुपरिभाषित शब्‍द है। यह दार्शनिक मीमांसा का शब्‍द नहीं है, अपितु राननयिक हेराफेरी का शब्‍द है इसलिए इसका देश और धर्म और समय के साथ अर्थ भी बदल जाता है ।

”मान सको तो जिन थियोक्रैट्स की मूर्खताओं का साक्षात्‍कार होने पर इसका जन्‍म हुआ उनके समर्थक भी अपने को सेक्‍युलरिस्‍ट सिद्ध करने का प्रयत्‍न करते हैं और राजननीतिक जोड़तोड के चलते उनको भाव भी दिया जाता है। तुम्‍हें इस बात का दावा करने वाले तक मिल जाएंंगे कि इस्‍लाम तो अपनी प्रकृति से ही सेक्‍युलर है। हदीस की ऐसी नजीरें दी जा सकती हैं कि पता चलेगा मुहम्‍मद साहव ने स्‍वयं कहा था कि धार्मिक मामलों में मेरे कथन का पालन किया जाय, क्‍योंकि उनका इलहाम हुआ था, परन्‍तु दुनियावी मामलों में अपनी समझ से काम लिया जाय। अब कोई पूछे कि कुरान प्रामाणिक है या हदीस तो मुश्किल खड़ी हो जाएगी ? मुहम्‍मद साहब के नाम पर उनके जीवन के अनुभवों को किन्‍होंने और कब लिखा? मेरी समझ से यदि कुरान धर्म ग्रन्‍थ है तो हदीस उसका पुराण है । जिनको अपने कारनामों को सही सिद्ध करना होता है वे बार-बार कुरान का हवाला देते हैं, उसकी अपने ढंग से व्‍याख्‍या करते हैं, न कि हदीस का।

”इसका यह मतलब नहीं कि मुसलमान होने के नाते कोई अपने जीवन मूल्‍य में सेकुलरिस्‍ट नहीं हो सकता, सेक्‍युलैरिटी का पालन नहीं कर सकता, बल्कि यह कि वह इस्‍लामपरस्‍त मुसलमान हो कर सेक्‍युलरिस्‍ट नहीं हो सकता। और भारत में इस्‍लामपरस्‍ती को प्रोत्‍साहित किया गया है फिर भी हम सेक्‍युलर राज्‍य होने का भ्रम भी पालते हैं ।”

”तुम कहना चाहते हो कि ज हिन्‍दू है तो सेक्‍युलरिस्‍ट हो सकता है?”

”तुम समझ सको तो मैं यही कहना चाहता हूं कि हिन्‍दू होने के बाद अलग से सेक्‍युलरिस्‍ट होने की जरूरत नहीं रह जाती। यह भारतीय अवधारणा है और जिस श्‍लाघ्‍य आशय में इसका प्रयोग किया जाता है उसका दूसरा नाम भारतीयता है।”

वह इस तरह उछला जैसे बिच्‍छू ने डंक मारा हो, ”अजीब अहमक हो यार । इतने जाहिल, इतने बन्‍द दिमाग। यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।”

”साेचते कब हो तुम । पढ़ते हो और मान लेते हो और उसे दुहराते हुए अपने को दूसरों से अलग समझते हो। पहले यह समझने का प्रयत्‍न करो कि यूरोप में नवजागरण की प्रेरणा एशिया से मिली और एशिया के जिस देश से मिली उसने भारतीय मनीषा को आत्‍मसात् करने का प्रयत्‍न किया था और इसीलिए दसवीं शताब्‍दी के बाद के एक छोटे से काल को अनेक विद्वान मुसलमानों के बीच भी सेक्‍युलरिज्‍म से प्रेम का काल मानते और अपने बचाव में इसका इस्‍तेमाल करते हैं। यह भारतीय प्रेरणा थी जिसने इस्‍लाम में भी आत्‍मालोचन की प्रवृत्ति पैदा की यद्यपि वह टिकाऊ नहीं सिद्ध हुई, पर उसके माध्‍यम से यूरोप में पहुंची इस सोच ने वहां नवजागरण का सूत्रपात किया और धर्मतन्‍त्र से दो दो हाथ करने की प्रेरणा मिली। सेक्‍युलरिज्‍म के समर्थक या प्रेरक जिन दार्शनिकों का नाम लिया जाता है, वे सभी भारतीय दर्शन से सीधे या आडे रूप में परिचित थे और पश्चिम के आधुनिक दर्शन के जनक देका (Descarte ) के नव्‍यन्‍याय से प्रभावित होने की बात तो तुम्‍हारी समझ में ही नहीं आएगी। यह दूसरी बात है कि भारतीय दर्शन की ओर इस अभिरुचि के पीछे दारा शिकोह के विद्यानुराग और उनकी पहल से उपनिषदों आदि के फारसी आदि में अनुवाद और प्रसार का भी हाथ था।”

”तुमसे बात करते हुए कई बार लगता है पत्‍थर से अपना सिर फोड़ लूं कि तुमसे बहस न करनी पड़े। तुमको यह तक नहीं मालूम कि यूरोपीय सेक्‍युलरिज्‍म को प्रेरणा यूनानी दार्शनिकों से मिली थी। ”

”जो जी में आये उसे पूरा कर लेना चाहिए । तुम्हारा सिर बना ही इसलिए है। पर यह मत भूलो कि यूनानी दर्शन और चिन्‍तन के पीछे भी कुछ है और उसका विकास यूनानी दर्शन की तरह एक झटके में चरम से चरम तक की सीमा में नहीं हुआ था अपितु उसने विकास की अनेकानेक मंजिलें पार की थीं और वे भारत में पहचानी जा सकती हैं। पर उस अतीत को तो तुमने समझने का प्रयत्‍न किया ही नहीं, मिटाने के लाख जतन किए।

”जैसे बच्‍चों का ककहरा पढ़ाया जाता है, उसी तरह तुमको सांस्‍कृतिक ककहरा पढ़ना होगा। तभी तुम उस पीले जादू से बाहर आकर अपनी आंखों देखना और समझना आरंभ करोगे। मैं तुम्‍हारी इसमें मदद कर सकता हूें। देखो, हमारे ज्ञान प्रसार में दो तरह के समाज मिलते हैं । एक विकसित, सार्वभौम और और समावेशी द़ष्टिकोण वाले तन्‍त्रों के चिन्‍तन से जुडे हुए जिनमे अपनी समावेशिता के कारण दूसरे समुदायों की मान्‍यताओं, उनके सांस्‍कृतिक प्रतीकों, उनके देवों और श्‍लाघ्‍य विचारों के लिए उदारता का भाव था। ये सभी समाज बहुदेववादी और मूर्तिपूजक रहे हैं, जिनकी पैगेनिज्‍म कह कर आज पश्चिमी समाज निन्‍दा करता है क्‍योंकि अपने दर्शन में भी वह ईसाइयत से प्रभावित रहा है। भारत, ग्रीस, रोम इसी तरह के बहुदेववादी और मूर्तिपूजक समाज रहे हैं जिनमें सभी तरह के विचारों और मान्‍यताओं के लिए छूट थी।

”इसकेे विपरीत थे अविकसित यायावर या पशुचारी कबीले जिनकी विश्‍वदृष्टि अपने कबीले तक सीमित थी इसलिए उन्होने अपने सरदार की महिमा की पराकाष्‍ठा के रूप में एक परमेश्‍वर की कल्‍पना की जिसकी महिमा तो ऐसी कि उसके सिवाय और उससे बड़ा कोई नहीं, परन्‍तु इसके बाद भी वह केवल अपने कबीले का और उस कबीले के पुरुषाें को सर्वोपरि और दूसरे सभी जीवों, पदार्थों, यहांं तक कि उसकी ही महिलाओं को उस कबीले के उपभोग के लिए ही नहीं बनाया अपितु उसे यह छूट भी दी कि वे उनके साथ किसी तरह का व्‍यवहार कर सकते हैं, क्‍योंकि वे बने ही उनके सुख के लिए हैं। उस ईश्‍वर की महिमा को जिन्‍होंने नहीं स्‍वीकार किया, उसकी मान्‍यताओं के जो कायल नहीं हुए, जिन्‍होंने तर्क से उसे समझने का प्रयत्‍न किया, वे सभी और इस ईश्‍वर का पैगाम ले कर उतरने वालेे पुरुष के आविर्भाव ही नहीं, उसके धर्मबोध से पहले के सभी पूर्वज भी नरक की आग में जलने के लिए हैं, उस ग्रन्‍थ के रचे जाने के बाद सभी ग्रन्‍थ शैतानी फरेबों से भरे इसलिए जलाए जाने के पात्र है।

”इस बुनियादी फर्क को समझ लो, समावेशिता, अपने से भिन्‍न को सहन करने और उसके साथ रहने के शऊर की और उनके निजी विश्‍वासों और मान्‍यताओं में हस्‍तक्षेप से परहेज करने के सेक्युलर सिद्धान्‍त को सम्‍मान दो तो इसके लिए एकेश्‍वरवाद में, सामी मतों में जगह न मिलेगी। यहां तक कि, उनके प्रभावक्षेत्र में आने वाले समाजों में भी सेक्‍युलरिज्‍म एक आरोपित अवधारणा है जिसका विज्ञान और नव चेतना ने सम्‍मान किया इसलिए पश्चिम दो तरह के समाजों में बंटा हुआ है। एक धर्मग्रस्‍त और पोपतान्त्रिक समाज जिसकी संख्‍या में ह्रास हुआ है इसलिए यह अपनी रक्षा के लिए एशिया और अफ्रीका के देशों में अपनी जड़ें जमाने के लिए प्रयत्‍नशील है और इस दृष्टि से ईसाइयत धर्मतान्त्रिक और पश्‍चगामी मत है जिसमें सेक्‍युलरिज्‍म के लिए स्‍थान नहीं, दूसरी ओर जैसा हमने कहा, भारतीय प्रभाव में आने वाले और तार्किक, वैज्ञानिक सोच रखने वाले सुशिक्षित जनों का समाज है जो समावेशी भी है, भिन्‍नताओं के प्रति सहिष्‍णु भी, और इसके बढ़ते हुए प्रभाव के कारण यूरोपीय देश धर्मतान्त्रिक जकड़बन्‍दी से बाहर आ कर सही माने में सेक्‍युलर बन सके हैं।

”इस्‍लाम के प्रभावक्षेत्र में, जिन देशों को पश्चिमी देशों में से किसी का उपनिवेश बन कर रहना पड़ा उनको धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का भी लाभ मिला और उन्‍हीं में उस प्रभाव के कारण एक बहुत छोटा सा तबका सेक्‍युलरिस्‍ट सोच का पैदा हुआ पर वह अपने मुल्‍लातन्‍त्र के सामने लगातार कमजोर सिद्ध हुआ है। इस पश्चिमी शिक्षा और सोच के कारण ही अता‍तुर्क कमाल पाशा ने खिलाफत को मध्‍यकालीन जकड़बन्‍दी और मुल्‍लावादी प्रभाव से बाहर निकालने का प्रयत्‍न किया पर विफल रहा। इसी पश्चिमी प्रभाव में ईरान के शाह ने सेक्‍युलर प्रशासन का प्रयत्‍न किया परन्‍तु अब्‍दुल्‍ला खुमैनी के एक नारे के सामने पूरा तन्‍त्र बिखर गया और धर्मतान्त्रिक शासन आरंभ हो गया। इस्‍लामपरस्‍ती से बाहर आना, मध्‍यकालीन सोच से बाहर आना, आधुनिक शिक्षा और आकांक्षाओंसे प्रेरित होना और दूसरे समुदायों के साथ मैत्री भाव से रहने का शऊर पैदा करना मु‍सलिम बुद्धिजीवियों के लिए एक चुनौती है । भारतीयता और सेक्‍युलरिज्‍म का वह आदर्श रूप जिसके कारण उदार सोच के लोग इस पर मुग्ध हो जाते हैं, एक दूसरे के पर्याय हैं । मैं इस सीमित अर्थ में ही अपनी बात कह रहा था।”

”और कह रहे थे उस सोच के बारे में जिसमें जातिगत भेदभाव हैं और राजा का एक कर्तव्‍य वर्णमर्यादा की रक्षा करना होता था।”

”तुम्‍हारी चिन्‍ता सही है । पर इससे लड़ने की ताकत और लड़ने वालों का सम्‍मान भी इसी समाज में रहा है। यह वर्णविभाजन आज गलत लगता है पर गलत तो आर्थिक विषमता भी है । यह समाज की अर्थव्‍यवस्‍था की पुरानी सोच से जुड़ी समस्‍या है जिसका समाधान करने की तत्‍परता भी है और इसकी व्‍यापकता के कारण इसका निदान और उपचार एक चुनौती भी है । परन्‍तु जब हम सेक्‍युलरिज्‍म के आदर्श रूप की बात करते हैं तो उसमें अर्थतन्‍त्र को शामिल नहीं करते । वह पूर्ण सामाजिक और आर्थिक न्‍याय की गारंटी नहीं देता, पर सामाजिक आर्थिक भेद भाव को मिटाना एक उदात्‍त लक्ष्‍य हो सकता है, इसका सेक्‍यलरिज्‍म से घालमेल करने पर हम किसी के साथ न्‍याय नहीं कर सकते ।”

”मैंं चलू?”

”मैं तुम्‍हेंं राकना चाहूं तो भी रोक तो पाऊंगा नहीं ।”