मो सम कौन दलित दुखियारा
“तुम कल जो कुछ कह रहे थे वह इतना तर्क संगत था कि उसका प्रतिवाद नहीं किया जा सकता था, इसलिए मैं चुप रहा, पर फिर भी ऊब इसलिए रहा था कि तुमको सारी कमियां मुसलमानों में ही क्यों दिखाई देती है?”
”मेरी समस्या यह है कि तुमसेे बात करते हुए अक्सर लगता है कि मैं दीवार से बात कर रहा हूं क्योंकि मेरी बात सुनते हुए तुम बेचैनी में सुन्न हो जाते हो। सुनने के लिए प्रयत्न करते हुए भी नहीं सुन पाते। यदि ध्यान से सुन रहे होते तो मैं जैसे हिन्दू समाज के विषय में यह याद दिलाता हूं कि हम कौन थे, क्या हो सकते थे, क्या हो कर रह गए हैं और आगे यदि यही गति रही तो किस अवस्था को पहुंचेंगे तो मैं अपनी कमियां नहीं गिनाता, उसके पीछे एक वेदना होती है। हिन्दू समाज के बारे में यह बात हो सकता है तुम्हारी समझ में भी आ जाती हो, परन्तु मुस्लिम समाज के बारे में जब उसी पीड़ा को व्यक्त करता हूं तो तुम्हारी समझ में नहीं आती । तुम्हें छिद्रान्वेषण प्रतीत होता है । तुमको उनकी कमियां गिना कर अपने को श्रेष्ठतर सिद्ध करने का प्रयास प्रतीत होता होगा । जो दूसरों की कमियों के बल पर बड़ा बनना चाहते हैं वे छोटे होते हैं और छाटेपन बोध से पीडि़त होते हैं। मुझे शक है कि ऐसा तुम्हेें ही नहीं, मेरे मुस्लिम मित्रों को भी लग सकता है जिनके साथ सख्य स्थापित करने के प्रयत्न में तुमने उनकेे पिछड़ेपन का महिमामंडन किया है । उनकेे भय की खेती की है और उनके दुस्साहस को खूराक दी है । येे दोनों काम आज की दुनिया में परदों के पीछे से अमेरिका कर रहा है और उसके साथ छिपा हाथ मिलाए तुम कर रहे हो और भोले इतने हो कि तुुम्हें इसका पता तक नहीं ।
” तुम्हें उस वेस्ट ऐड द रेस्ट के हितों के टकराव का भी अनुमान नहीं जिसे मुस्लिम्स ऐंड द रेस्ट के रूप में क्लैश आफ सिविलाइजेशन्स के रूप में हंटिंगटन ने पेश किया था। पहले सबसे बड़े और सबसे साधनसंपन्न शत्रु को नकेल डालो या बदनाम करके उसे मिटाने की भूमिका तैयार करो, उसे दुनिया के लिए खतरा बताते हुए दुनिया को बचाने के लिए उसे मिटाना एक जरूरी कार्यभार बना दो और फिर उसके साथ अपनी कूटनीति और शक्ति का प्रयोग करते हुए उसे मिटा दो फिर वेस्ट ऐंड रेस्ट माइनस इस्लाम की जंग आसान हो जाएगी । मुझे इस बात की पीड़ा है कि न तो हिन्दुओं के हित संघ और भाजपा के साथ सुरक्षित हैंं न मुसलमानों के हित अपने को सेक्युलर अर्थात् सेक्युलरिस्ट कहने वालों के साथ सुरक्षित हैं क्योंकि इन दोनों का लक्ष्य दोनाेें समाजों में पिछड़ापन लाते, मध्ययुगीन प्रवृत्तियाें को उभारते हुए अपनी रोटी सेंकने की है। वहीं इनके वास्तविक हितों की चिन्ता करने वाली संस्थाओं या संगठनों का एेेसा अभाव है कि इनके हित रक्षक के रूप में ये ही बच रहते हैंं। दोनों का विश्वबोध इतना पंगु है कि वे यह नहीं समझ सकते कि वे वेस्ट की कारसाजी के शिकार हो रहे हैं । हमें सबसेे बड़ा खतरा उससे है जो हमें रेस्ट मानते हुए विश्व फलक से उसी तरह मिटाना चाहता है जैसे उसने अमेरिका और आस्ट्रेेलिया और कुछ दूर तक अफ्रीका के निवासियों को मिटाया था। उसकी योजना लंबी है, उसे किसी चीज की जल्दी नहीं है। बिल्ली चूेहे को दबोच लेने के बाद उसे कुछ कमजोर करने के बाद भागने के लिए छोड़ देती है, वह भागनेे की कोशिश करता है तो पंजों से दबोच कर फिर छोड़ देती है, क्योंकि वह जानती है कि अब यह मुझसे बच कर जा नहीं सकता। यही खेल वेस्ट का रेस्ट के साथ चल रहा है और इसका होश न हिन्दू संगठनों को है न मुस्लिम हितों का प्रतिनिधित्व करने वालेे सेेक्युलरिस्टों में न इनकी छत्रछाया में सुरिक्षित और निश्चिन्त अनुभव करने वाले मुस्लिम बुद्धिजीवियों में और हम एक ऐसे घपले के शिकार हैं जिसकी सही संज्ञा तलाशनी होगी।
”एक हिन्दू हित के नाम पर कहता है हम मन्दिर यहीं बनाएंगे और दूसरा कहता है हम बनने न देंगे, जो उसकी योजना का अंग है जो रेस्ट को चूहे की जिन्दगी दे कर अपना खेल खेल रहा है इस आत्मविश्वास से कि यह बच कर जाएगा कहां। आपदा में एक ही आपदा के शिकार दुश्मन भी दोस्त हो जाते हैं परन्तु यह समझ दुश्मन तो पैदा होने देना चाहेगा ही नहीं, जिनके सामने आपदा है वे भी पैदा होने नहीं देना चाहते। एक ऐसा नेता हमारे बीच है जो देश को इस संकट से बाहर ले जाना चाहता है पर उसका जनाधार जिस संगठन पर टिका हुआ है उसकी सोच वही पुरानी है। ”
”याद आता है, यह भी तुम्हारेे रागभैरवी का हिस्सा है । तुमने एक बार यही आशंका भारत में ईसाइयत के प्रसार के विषय में भी उठाई थी। साल पूरे हो रहे होंगे।”
”तुम्हारी याददाश्त बहुत अच्छी है यह चेतावनी पूरी छानबीन के बाद 15 जनवरी 2016 को दी थी कि ईसाइयों ने कतिपय अज्ञात कुलशील और अनाथ बालकों काेे यातना दे कर अधोगति में रखते हुए अपने समुदाय में दलित वर्ग का दावा करने की तैयारी कर रखी है इसकी विश्वसनीय जानकारी मिली थी पर तक भरोसा नही हो रहा था, अब इ जिसकी झलक चार दिन पहले उस खुलासे मेंं हुई कि ईसाइयों में अस्सी प्रतिशत के साथ भेदभाव किया जाता है और उन्हें आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिलता। इसका भाष्य आना बाकी है जिसमें यह मांग की जाएगी कि दलित ईसाइयों के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए और फिर इसके माध्यम से संस्थाओं और राजकीय सेवाओं में अपना प्रभाव विस्तार करने का अवसर मिलेगा। यदि तुम चाहोगे तो मैं उस पोस्ट को दुबारा तुम्हारी याद ताजा करने के लिए पेश कर दूंगा जिसमें इसकी भविष्यवाण्ाी की गई है परन्तु यह एक खतरनाक खेल है।”
”खतरनाक कैसे जब इसके पीछे इतनी लंगी सोच है तो ।”
”चालाक लोग भोले भाले लोगों से अधिक बड़ी गलतियां करते हैं।
”भारत में ईसाइयत के हित अमेरिका की उस योजना की याद दिलाते हैं जिसमें इन्दिरा जी के कडे़ रूख के बाद किलपैट्रिक ने भारत केे बाल्कनाइजेशन अर्थात इसके टुकड़े टुकड़े करने की धमकी दी थी। अमेरिका केे किसी नीतिज्ञ द्वारा किए जाने वाले दावे न तो उसके अपने व्यक्तिगत होते हैं न ही उसके पद से हट जाने के बाद उस योजना का काम बन्द कर दिया जाता है। उसे किसी बात की जल्दी भी नहीं रहती । हमने सीआइए की उस योजना की परिणिति देखी जिसमें 1949 में यह प्रस्ताव आया था कि यदि एक बिलियन डाालर मिल जायं तो वह सोवियत संघ की सेना तक में घुस पैठ बना कर उसके लिए ऐसी समस्या खड़ी कर सकता है कि उसे अपनी घरेलू समस्यायाअें से निबटने में ही सारी ताकत लगा देनी पडे । उसके बाद से सीआईए की वह योजना लगातार चलती रही। केजीबी उसके मुकाबले अपना काम करती रही पर पैसे का वह समर्थन जो सीआई ए के पास था वह केजीबी के पास न था और उसके भीतर भी अपनी पैठ बनाते हुए उसने वह स्थिति पैदा कर दी कि अमेरिका उनके सपनों का देश बन गया। उसके काउब्वाय जीन की ललक में सोवियत युकक और युवतियां पागल रहने लगे और अपने देश से ही विमुख होते चले गए और नौबत वह आ गई कि सोवियत संघ टूट बिखर कर अपनी रक्षा केे लिए चिन्तित देश बन कर रह गया जिसे वह जरूरत पड़ने पर पाल भी सकता है।
” मुझे अपनी सीमित जानकारी के कारण अन्देशा यही लगता है कि मिशनरियों ने माआेेवादियाों, वामपन्थियों को रेशमी धागों से बांधते हुुए वह स्थिति पैदा कर ली जिसमें किलपैट्रिक योजना का मुखर नाद जेएनयू के मंच से सुनाई पड़ा और वामपंथी उसके साथ खड़ेे दिखाई दिये। अपनी सीमति समझ के कारण मैं अपने निष्कर्षो के प्रति कभी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पाता, परन्तु अपनी आशंकाओं से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाता।
‘ये किसी सीमा तक जा सकते हैं, अविश्वसनीय काम कर सकतेे हैं। जिस सचाई ने मुझे एक साल पहले विचलित किया था वह था खरीद कर या अपने संरक्षण में लिए गए बच्चों को योजनाबद्ध रूप में गन्दी और यातनापूर्ण स्थितियों में रख कर उनको दलित बनाने का अभियान जो छिपे रूप में चलता रहा और जिसमें मदर टेरेसा तक की भागीदारी थी जिनकी साख की चिन्ता में देखेे और जाने को भी बिसारने का प्रयत्न होता रहा। इस तथ्य को भुलाते हुए कि क्रूरता और उत्पीड़न के लिए बदनाम पोपों को भोलेराम या इन्नोसेंट और स्वर्गद्वार या थियोडोर जैसे मोहक नामों से पुकारा और उनके वास्तविक कारनामों पर परदा डाला जाता रहा।”
तुम बात कर रहे थे उनकी किसी बड़ी भूल की और ले कर एक दूसरा राग बैठ गए।
”गलती भारतीय सन्दर्भ में यह है कि अभी तक मिशनरियों द्वारा दलितों और जनजातियों को भारतीय या कहें हिन्दू समाज से बिलग करने के लिए दलितों के प्रति सवर्णों के अन्याय की कहानियां हमारे ‘सेक्युलर’ बुद्धिजीवियों से लिखवा कर प्रचारित किया जा रहा था कि वे ईसाइयत को इन बुराइयों से त्राण दिलाने वाला मान सकें, परन्तु अब उसी की इस स्वीकारेाक्ति के बाद कि दलित तबके के ईसाइयों के द्वारा भेद भाव किया जा रहा है उनके उस प्रचार की धार कुन्द हो जाएगी। ”
”तुम मूर्ख हो, सभी समस्याओं का तार्किक समाधान ही नहीं होता । वे जानते हैं कि पैसा समझदारों को भी बहरा और अंधा बना देता है, दलितों में तो यूं भी पढ़े लिखों की संख्या दयनीय है और उसके पढ़े लिखों के मन में हिन्दू समाज को सवर्ण समाज और सवर्णसमाज को उनका शत्रु दिखाते हुए इतना विमुख किया जा चुका है कि इस तरह की स्वीकारोक्तियों का कोई असर नहीं होने वाला।
”तुम लाोग छाेटी छोटी बातों पर उत्तेजित हो जाते हो। केरल के प्राइमरी स्कूल की मिशनरियों की पोथियों में ऐसी कहानियां पढ़ाई जा रही हैं कि एक गरीब आदमी हिन्दू देवता पास गया कि वह उसकी गरीबी दूर कर दें। वह दूर नहीं कर पाए। फिर वह ईसा की शरण आया और कहा उसकी गरीबी दूर कर दें और उसके बाद वह मालामाल हो गया। यह उसी सचाई का पाठ है जिसमें ईसाई बनने वालों को दो लाख दिया जा रहा है और उनकी गरीबी दूर की जा रही है । पैसे की ताकत को तुम समझ नहीं पाते और भावुकता में लाल पीले होने लगते हो। मुझे एक बिलियन डालर दो और मैं सोवियत संघ की सेना तक में खरमंडल पैदा कर दूंगा का ही दूसरा पाठ है मुझे इतना धन दो मैं पूरे भारत को ईसाई बना कर भारतविमुख कर दूंगा और वह ईसाई साम्राज्य का हिस्सा बन जाएगा। इसे क्या मुझे समझाना पडेगा। ”