Post – 2016-11-26

यदि जनता ने अपना समर्थन ऐसे संगठन को दिया तो वे शत्रुदेशों से और उनके आतंकवादियों तक से हाथ मिला लेते हैं। इस देश को लूटने, बर्वाद करने वालों का साथ देते हैं, इस लूट और बर्वादी को रोकने का संकल्‍प लेने वाले दल का नंगा नाच करते हुए विरोध करते हैं। वे उस शिक्षाप्रणाली तक की आलोचना नहीं करते जिसमें आदमी को तंगनजर बनाया जाता है और आतंकवादी गतिविधियों की नींव की आलोचना तक सहन नहीं कर पाते ।

इस बीच बहुत कुछ हो रहा है जो इस देश की मानसिकता को बदलने, मध्‍यकालीन मानसिकता से बाहर लाने का प्रयत्‍न माना जा सकता है और हमारा बुद्धिजीवीवर्ग इसको रोकने, उसी मानसिकता में वापस लौटने के लिए छटपटा रहा है। बौद्धिक गतिविधियों से जुड़े समस्‍त पदों को छेक लेने के कारण क्‍या इसे हम अपनी सोच में आधुनिक, वैज्ञानिक और देशहित और विश्‍वहित के लिए समर्पित मान सकते हैं। यदि नहीं तो पहली जरूरत है, उसके कोरस का खटराग मानते हुए इसको अनसुना करना । एक बहुत साहसिक संग्राम चल रहा है। उसकी कुछ क

हमारे साथ संघर्ष वैचारिक संघर्ष के रूप में भी लगातार चलता रहा इसलिए इतने सारे टकरावों और घोर विरोध से ऊपर उठ कर शान्ति के महत्‍व को समझा गया और कलह में बर्वाद होने वाली ऊर्जा का सर्जनात्‍मक उपयोग संभव हुआ, जिसे भारत की असाधारण समृद्धि का श्रेय दिया जा सकता है।