Post – 2016-11-17

हम चांद नहीं अपनी ज़मीं मांग रहे हैं ।
हम अपने घर की राजी खुशी मांग रहे है ।
ऐंठे हुए लगते हैं जो नफरत से तेरे होंठ
उन होठों पर मुस्कान हँसी माँग रहे हैं ।
खुद गर्द में दफना िदए पाले हुए सपने
आँखों में तेरे फिर से नमी मांग रहे हैं ।
हम प्यार तुझे करते हैं और करते रहेंगे ।
हम तेरे लिए चारागरी मांग रहे हैं ।
अहसासे कमतरी से उबर आ तो भला हो।
हम तेरी बुलन्दी की घड़़ी मांग रहे हैं ।
मुंह फेर कर बैठे हैं जो छत्तीस बने से
हम उनकी खुशी अपनी खुशी मांग रहे हैं ।।
१७-११-२०१६