Post – 2016-11-13

” तुम कल नमक की काला बाजारी और उसकी आड़ में हंगामा मचाने के समाचार के सन्दर््भ मेे टाटा का नाम लिया तो कहीं इनमें संबन्ध तो नहीं तलाश रहे थे ?”

यदि तुम्हें ऐसा लगा तो मुझे अपनी बात कहने मे में चूक हुई । पर चूक का भी अपना मनोविज्ञान होता है । टाटा के लिए मेरे मन में बहुत गहरा सम्मान है । पूरे टाटा परिवार के लिए िजतनी महान सेवा इस देश की टाटा परिवार ने की है िजतने समर्पित भाव से उन्होंने स्वयं सन्तों सी सादगी से जीते हुए देश के आर्थिक उत्थान के सपने देखे और उन्हें पूरा करने के लिए काम करते रहे वह अनन्य रहा है। भारत पर और भारतीयता पर जितना गहन अभिमान उस परिवार को रहा है, उतना कितनों को होगा ? वे भारत के पहले उद्योगपति हैं, पहले माडर्न उद्योगपति हैं जिन्होंने सोचा कि उनके मजदूरों को भी स्वस्थ वातावरण, शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य की और मानवीय गरिमा से जीने का अधिकार है । जिन दिनों यूनियनें खड़ी करना, हड़ताल कराना और उन्हीं मजदूरों से तोड़ फोड़ कर अपनी पार्टी की ताकत बढ़ाना निठल्ले कम्युनिस्टों का शौक हुआ करता उन दिनों भी किसी की हिम्मत नहीं हुई होगी कि किसी टाटा कंपनी में यूनियन बनाने ल का प्रस्ताव तक रखने में सफलता पाई हो । मैंने गोरखपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, बनारस और कलकत्ता शहर ही तब तक देखे थे । पहली बार जब जमशेदपुर देखा तो चकित । स्मार्ट सिटी की पूरी परिकलपना साकार ।

फिर भी जब कहा िक चूक का भी अपना मनोविज्ञान होता है तो इसिलए कि जब टाटा ने भी एक आयोजन में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मंच से असुरक्षा की भावना की बात की तो मैं घबरा गया । यह एकमात्र बयान था जो कहीं कुछ हो रहा है जो टाटा को अशोभन लग रहा है और इसमें प्रधान मंन्त्री की भूिमका भी लगती है ।

दो दिन बाद मिस्त्री की बरखास्तगी का एक पूरा नाटक िजसमें गुण-दोष का निर्णय करना मेरी समझ से बाहर हैं । समझ में इतना ही आसकता है कि मिस्त्री ने प्रधान मंत्री से समय मागा था । वह मिल भी चुके थे । उनके बाद टाटा ने अपना पक्ष रखने के लिए समय मांगा । तब तक प्रधानमंत्री विदेश यात्रा के लिए तैयार थे । उसी बीच राडिया टेप की बात भी आई थी।

ये ज्ञान और व्यवहार के ऐसे स्तरों की बातें हैं जिनकी गहराई से हम परिचित नहीं हैं, पर मन पर यह असर था कि यदि खीझ में टाटा भी नमक की आपूर्ति में थोड़ी सी शिथिलता बरत दी हो तो ? पर विचार के साथ ही इसका उससे अधिक जोर दार तमाचे की तरह लगा था, टाटा जैसा देशाभिमानी देश की जनता के साथ ऐसी गर्हित चाल नहीं चल सकता ।

वादी ने हार नहीं मानी, कहा वह तो सही है पर किसी वस्तु के पणन, प्रसाधन और वितरण के एकाधिकार की नीति सही नहीं है । इससे प्रतिस्पर्धा में कमी आती है, मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलता है और किन्ही स्थितियों में उसके न चाहते भी उसके वितरकों में से कोई वह शरारत कर सकता है जो इस बार किसी ने कर दिखाया था ।

वह हंसने लगा पर इस देश की जनता के लिए क्या कहोगे ?

बात अपने देश या पराए देश की नहीं है । मानव दुर्वलता की है । वह चाहता है कि यदि किसी चीज की कमी होने वाली है ताे दूसरे सभी को होजाय मुझे न हो । तो आपूर्ति में कमी या िवलंब लोग िबना जरूरत जमाखोरी पर आ जाते हैं और सारी चीजें बाजार से गायब हो जाती है और अकाल आरंभ हो जाता है । अब रसद के लूटपाट का आलम यह कि वह पुलिस की संभाल से बाहर चला जाता है । तुम्हें एक किस्सा सुनाता हूं । चीन की क्रांति हुई थी तब िवश्व मंदी के दौर से गुजर रहा था । नई व्यवस्था किसी को शासन का तजुर्बा न था । हर चीज का अभाव और हर चीज के लिए लम्बी क्यू । लोग यह जाने बिना कि जो चीज मिल रही है उसकी उन्हें जरूरत है या नहीं, क्यू मेंलग जाते ।

ऐसे ही में एक आदमी क्यूलगी देख कर खुश हो गया । चलो कुछ मिल तो रहा है । तीन चार घंटे बाद उसका नम्बर आया । खिड़की के परे बैठे क्लर्क ने पूछा, साइज ?

उसकी समझ में नहीं आया इसका क्या जवाब दे । उसकी परेशानी भांप कर क्लर्क ने कहा, यहां ताबूत बनाने के नम्बर िलखे चा रहें हैं । आप के मुर्दे का साइज कया है । उसकी पहली प्रतिक्रिया लौट चलने की हुई पर जब याद आया कि जरूरत पड़ने पर दुबारा इतनी लंबी क्यू में लगना होगा, उसने अपना साइज दे कर कर ताबूत बुक करा दी ।