Post – 2016-11-11

‘लेकिन यार यदि यह अफवाह सच हुई तो हमारा क्‍या होगा ? जिसके जैसा पीएम दुश्‍मन देश के लोग भी अपने देश के लिए तलाश रह हों, उसे हटाने का अभियान हमने चुनाव परिणाम आने के दिन से ही छेड़ दिया आैर आज तक उसी पर डटे हुए है। या तो लोग हमें बुद्धिजीवी मानना छोड़़ देंगे या हमें बुद्धिजीविता नई परिभाषा गढ़नी होगी जिसमें देश भक्‍तों को बताना होगा कि दुश्‍मन देश का बुद्धिजीवी बुद्धिजीवी होता ही नहीं।’
‘तरीका तो ठीक है ।’
‘पर इसमें भी एक खतरा है । हम स्‍वयं कहते आए हैं कि कला और विचार की दुनिया सीमाओं से बंधी नहीं होती। भले वह देश अपना दुश्‍मन ही क्‍यों न हो। ऐसी हालत में लोग हमें क्‍या कहेंगे ?’
‘तुम उल्‍लू कहना चाहते हो ?’
‘नहीं, कठोर शब्‍दों से मुझे परहेज है । इसके लिए कोई नया शब्‍द तलाशना होगा। यह हमारा सबका साझे का काम है ।’