Post – 2016-11-05

अभी अभी एक पाठक की प्रशंसा की प्रतिक्रिया में :

सुुनता हूं इसे सुन कर भुला देता हूं अक्‍सर ।
क्‍या कम गुरूर है कि इसे और बढ़ायें।
भगवान पर मत फूल चढ़ाना मेरे वाहिद
भगवान तो पत्‍थर में है पत्‍थर ही चलायें।
पूजा में नहीं, सुन के वह घबरा सा उठेगा
सर फोड़ने को, फोड़ कर हमको भी दिखायें।
वह नामुराद इतना बेहया है न पूछो
पत्‍थर का पैरहन हो तो उसको भी पिन्‍हायें।
है खोपड़ी ऐसी कि कभी फूटती नहीं
खूं बहता नहीं जितना भी हम खून बहायें।
एक आह महज आह बना रहता है हर दम
हर आह का मानी है अलग, समझें बतायें।
5.11.16