Post – 2016-10-09

कितनी रातों का अंधेरा है तेरी आंखों में।
सामने आ तो सही, नजर मिला तो सही।
कितनी शामों की उदासी तेरी तेरी पेशानी पर
किन चिमनियों की है कालिख मुझे दिखा तो सही।
तरस आता है तेरे हाल पर मगर तू भ्‍ाी
न संभलता न बदलता न सोचता ही है।
कितने सदमे मिले, मिलने को कितने बाकी हैं
हिसाब गर न लगाया तो अब लगा तो सही।
मैंने समझाया तो इसका भी बुरा मान गया
राह दिखलाई तो वह रास्‍ता जंचा हीभी नहीं।
मुझसे मत डर तेरा हमदर्द हूं अपने दिल की
सच बता, साफ बता, यार अब बता तो सही।।