Post – 2016-10-09

कभी कभी तो अंधेरा भी चमक देता है
चांद के शीशे में सूरज को उलट देता है
कभी हंसता है बिहंसता है मुझी को दिन मान
और दिनमान को चुपचाप उगल देता है।
अंधेरी रातों में देखा आसमां की तरफ
कितने हीरों को लुटाता है छिपा लेता है।
उजाले के भी हैं रंगीन अंधेरे ऐ दोस्‍त ।
अंधेरे में ही नया स्‍वप्‍न जनम लेता है।
8 अक्‍तूबर 16