Post – 2016-10-01

क्रान्ति

हम हथेली पर आसमान लिए खो गए थे तेरे खयालों में।
क्‍या हुआ उन शिगुफ्ता ख्‍वाबों का बन्‍द थे जो कई सवालों में।।
हम कहां थे मुकाम याद नहीं, कितनी गलियाें के पार पहुंचे थे।
बचना चाहा था और बच न सके आ गिरे फिर उन्‍हीं बवालों में ।।