समझदारों के बीच एक सही विचार की तलाश-7
यदि सोचते हो तुम जो कहते हो उसे कोई मान लेगा या उसकी अपनी धारणा बदल जाएगी तो यह मूर्खता है। बहुत कुछ ऐसा जिसे तुम छोड़ कर बात करते हो और काफी कुछ ऐसा जिसे तुम जानते ही नहीं। जो थोड़ी सी जानकारी है उसमें भी जो सिद्ध करना चाहते हो उसके अनुसार कुछ जोड़ते मोड़ते हो। सबसे साथ यही होता है इसलिए सारी बहस का जवाब यह कि लोग अपनी बात पर अधिक मुस्तैदी से डटे रहते हैं। आंधियां आती हैं, यदि अधिक प्रबल हुईं तो घास, मोथे ही नहीं, पेड़ भी उनके दबाव में जगह बनाते हुए झुक जाते हैं और उसके गुजर जाने के बाद फिर तन करखड़े हो जाते हैं। विचारधाराओं से, विश्वासों से जुड़े लोगों के साथ भी यही होता है। यदि उसकी जड़ें गहरी हैं पर तुम्हारे तर्क और प्रमाण इतने प्रबल सिद्ध हुए कि वे उसका प्रतिवाद न कर सकें तो वे तत्काल हार नहीं मान लेंगे। अपने को बचाने का प्रयत्न करेंगे, तुम्हें बदनाम करेंगे। यह ध्यान रखना कि ये सभी धर्म से जुड़े प्रश्न नहीं हैं, अपितु देश से जुड़े प्रश्न हैं।
तुम्हारे भी प्रबल क्यों न हों, वे