Post – 2016-09-27

समझदारों के बीच एक सही विचार की तलाश’ 3

क्या मोदी भारत हैं ?
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मोदी के चुनाव अभियान का एक स्थाई घटक था, ‘मोदी मोदी मोदी’ क अभिनन्दन नाद। इसने करतल ध्वनि का स्थान ले लिया था। स्थान कोई भी हो, समय कोई भी, लगभग आह्लादित भाव से ‘मोदी मोदी मोदी’ का गान इतना गगनभेदी हो गया था कि कर्णभेदी भी लगने लगा था। लगता था इसके पीछे एक योजना है और यह मोदी की लोकप्रियता को नहीं, उनके प्रबन्ध-कौशल का द्योतक है, जिसके पीछे कुछ घरानों का हाथ हो सकता है। इस जयकारे का अमेरिका मे प्रवेश, ब्रिटेन में इसकी आवृत्ति इस आशंका को उलझा देता था। बनारस में हर हर मोदी घर घर मोदी चालू हुआ था। आज संचार माध्यमों और सामाजिक माध्यमों पर उनके निन्दकों और प्रशंसकों द्वारा सभी चर्चाओं को मोदी केन्द्रित बना कर देखने का प्रबन्धन कौन कर रहा है, और इसके पीछे कौन हैं, यह जानना हमारे हित में होगा। इसका उत्तर कोई दे तो धुन्ध कुछ छंटे ।

एक समय था कांग्रेस के तत्समय अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने नारा दिया था ‘इन्दिरा इज इंडिया।’ यह आपात काल का नारा था। आज आप भारत विषयक समस्त चर्चाओं को मोदी से जोड़ रहे हैं। क्या इन्द्रा गांधी का वह सपना जो अपने अध्यक्ष के माध्यम से यह नारा देकर पूरा करना चाहती थीं, कर नहीं सकीं, उस सपने को आप सभी ने मिल कर मोदी के बारे में सही साबित नही कर दिया? मोदी को हर जबां पर मोदी, हर बयां में मोदी ।

अधिकांश लोग कहेंगे कि हम तो निन्दा कर रहे हैं, हम कैसे मोदी का हित साध सकते हैं ? हम तो उनकी परंपरा में आते हैं जिन्होंने मोदी को अमेरिका का वीजा देने का विरोध किया था।

तुलसी की एक चौपाई है ‘उल्टा नाम जपत जग जाना, बा‍ल्मीकि भये ब्रह्म समाना।’ हम उल्टा नामजाप करने वालों को ‘भये मोदी समाना’ कह सकते हैं क्या? यह उन्हीं से पूछना होगा। कारण लगातार मोदी को चर्चा के केन्द्र में रखते हुए वे दूसरी सभी समस्याओं, दूसरे सभी दलों और नेताओं और दूसरे सरोकारों को सबकी आंखों से ओझल कर देते हैं। मोदी को मिटाने के चक्कर में ऐसे लोग उन विकल्पों को भी ओझल करने में लगे हैं जिनका बना रहना जरूरी है। यह विकल्प कांग्रेस नहीं बन सकती। दूसरे बहुविधि और बहुधा बदनाम दल भी नहीं बन सकते। अपनी तनी रीढ़ को झुकाने के बाद नीतीश भी उसके योग्य नहीं रह गए। मुलायम सिंह इसी आशा में सूबेदारी छोड़ कर खाली हो गए थे और अब अपने ही बेटे से लड़ नहीं पा रहे हैं। वाम विकल्प बन सकता था, पर वह कांग्रेस के पीछे खड़ा हो गया, जिसका जहाज डूबने से वह निर्वात पैदा हुआ था, जिसे भरने के लिए लोगों ने मोदी को चुन लिया। जहाज डुबेगा तो वाम भी डूबेगा। हम एक वैकल्पिक शून्य के दौर से गुजर रहे हैं, जिसकी चर्चा मैंने कभी किसी विश्लेषण में देखी ही नहीं, क्योंंकि आप अपनी समझदारी में मोदी को नष्ट करने के चक्कर में, उन्हें मजबूत कर रहे हैं और नष्ट उन्हें कर रहे हैं जिनके सारे पाप भूल कर उनमें से किसी के भी गुन गाने लगते हैं।

”मोदी इज इंडिया में यदि कोई कमी रह गई हो और ऐसा लग रहा हो कि मैं कुछ खींचतान कर रहा हूं, तो याद करें कि मोदी के टुकड़े-टुकड़े करने के पागलपन में आप भारत तेरे टुकड़े होंगे गाने लगते हैं और टुकडे करने वालो का इस हद तक साथ देते हैं कि आतंकवादियों से आप के हाथ मिल जाते हैं। यह जान लेने के बाद भी कि इशरत जहां आतंकवादी थी आप उसे बचाने के लिए अपने बयान तक बदल लेते हैं,या बयान बदलने वालों की अनदेखी कर देते हैं, आतंकवादियों को दंडित करने से कतराते हैं, उनको दंडित करने के बाद उनके समर्थकों की भीड़ के साथ खड़े हो जाते हैं।

इस मोदी से जिसे आपने इंडिया या भारत का पर्याय बनाया है, उसके एक व्यक्ति से देश बन जाने की विडंबना से मुझे डर लगता है ।
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छप्पन इंच का सीना

इस इबारत को दुहरा कर समय बेसमय हास्य, पैदा करने वालों में ऐसे समझदारों की संख्या कितनी है जो यह नहीं जानते कि शब्द, का अर्थ सन्दर्भ-सापेक्ष्य होता है। खसमाखाणी कहने वाली सहेली लाड़ प्रकट करती है परन्तु यही वाक्य वह उसके विवाहिता हो जाने के बाद कहे तो वह उसका झोंटा पकड़ कर घुमा देगी।

कितने लोगों को यह पता नहीं है कि यह मुहावरा मोदी ने उत्तर प्रदेश में बिजली न पहुंच पाने और बेरोजगारी बढ़ने के सन्दर्भ में कही थी और इसके लिए इतने चौड़े सीने की बात यह दावा करने के लिए कही थी कि विकास के लिए त्याग, ईमानदारी, कार्यनिष्ठा और दृढ़ता की आवश्यककता होती, जो मुझमें है। ऐसा चौड़ा सीना, यह उदार भाव, सैफई महोत्सव मनाने वाले, अपने कार्यकाल में अपनी आय सौगुनी हजारगुनी बढ़ाने वाले, अपने दल को अपनी खानदानी जागीर बनाने वाले, अपराधियों और भ्रष्टा्चारियों के माध्यम से राष्ट्रीय संपदा का दोहन करने वाले नहीं रखते, न उनका जिगरा इतना बड़ा हो सकता है। क्‍या मोदी ने गलत कहा था। हो सकता है अर्थ करने में मुझसे चूक हो रही हो। ऐसा है तो मेरा मार्गदर्शन करें, नहीं है तो आत्मनिरीक्षण करें कि आप का सीना कितना चौड़ा है। बेवकूफों की भीड़ में छप्पन-इंच-छप्पन-इंच की फब्तियों से आप तालियां बजवा और ‘खूब कही’ लिखवा सकते हैं, पर भाषा की समझ रखने वालों के सामने आप स्वयं अपना उपहास करते दिखाई देते हैं । ऐसी फिकरेबाजियों से मोदी का कुछ नहीं बिगड़ता, आप का और गंभीर मसलों का अहित अवश्य होता है।

व्यक्तिगत रूप में मुझे मोदी की वक्तृता शैली अच्छी नहीं लगती। अपरिष्कृत लगती है और उनके पद के गरिमा के अनुरूप नहीं लगती। परन्तु यही इस बात को भी सिद्ध करती है कि वह बहुत साधारण स्थिति से अपनी असाधारणता के बल पर विरोधों के बीच से ऊपर उठ कर आया हुआ एक बड़ा नेता है। संस्कारों से मुक्त हो पाना कठिन है, सुनते हैं माओ मां बहन की गालियां भी दे बैठते थे और विश्वविजय का स्वप्न देखने वाला नैपोलियन पूंजीपतियों से खम खाता था। कुछ अयोग्यताएं बड़ों बड़ों में हो तो उन्‍हें भी क्षम्य माना जा सकता है। मोदी की जगह तय कीजिए। वह तो झाडू लेकर सड़क पर भी खड़ा मिल सकता है और आप उसे फेंकू कह कर फेंक भी सकते हैं, परन्‍तु यह भूल सकते हैं कि आप की नासमझी उसकी जड़ों को खूराक देती है। आज भी उसकी लोकप्रियता की दर अस्‍सी प्रतिशत है, ऐसा किसी सर्वे में पढ़ा था।
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क्रमश: