Post – 2016-09-23

प्रयोग – 12
अंधेरे के बीच राेशनी

पार्क है तो प्रकाश की व्‍यवस्‍था भी होनी चाहिए। प्रकाश व्‍यवस्‍था के साथ अंधेर न हो तो चिराग के नीचे अंधेरा का मुहावरा गलत हो जाएगा। डीडीए को भी इसका ध्‍यान था, इसका पता तीन तरह के खाली पड़े खंभों से चलता था जिनकी रख रखाव की जगह एक दूसरा ठेका दे दिया जाता था। पहले के खंभे उस ऊंचाई के थे जिस के वे गैस के लैंपपोस्‍ट पुराने समय में हुआ करते थे जिन्‍हें सीढ़ी कंधे पर लादे एक आदमी शाम को आता और जलाता था और सुबह को बुझाता था। पार्क में रोशनी के लिए यह सबसे उपयोगी था क्‍योंकि पेड़ों की छाया के नीचे भी इसकी रोशनी पहुंच सकती थी। इसके हंडे अंधकार प्रेमियों ने तोड़ दिए थे, नीचे के तार खींच का काट डाले थे । इसके बाद सड़कों को रौशन करने के लिए जिस तरह के ट्यू्बलाइट उसी उँचाई पर लगवाए गए थे। उनकी भी वही गति हुई थी। अब हार कर पार्क के लगभग बीचोबीच तीसेक फुट की ऊंचाई पर एक खंभा लगा जिसके विषय में यह विश्‍वास था कि ढेला पत्‍थर का निशाना उस ऊंचाई पर न पहुंचेगा। इसके पांच बाजू पांच दिशाओं में बढ़े हुए थे जिनमेंं नियोन बल्‍ब लगे रहे होंगे यह कल्‍पना की जा सकती थी। जिस समय मैंने इस पार्क से रिश्‍ता जोड़ा, यह खंभा भी खड़ा था, पर कहीं न कोई बल्‍ब था न रोशनी की कल्‍पना। आरंभ में पार्क उजाड़ था। इसपर हमारे सतमंजिले कालम के ऊपर सुरक्षा के खयाल से पीछे की ओर जो तेज रोशनी की व्‍यवस्‍था थी उससे जो रोशनी फैलती थी उतनी ही थी। लोग अधिक समय तक बैठना घूमना पसन्‍द नहीं करते थे इसलिए राेशनी की ओर विशेष ध्‍यान गया ही नहीं। हाल यह था कि आरंभ में मोटरपंप ही चालू नहीं था, उस तक बिजती अश्‍वय पहुंची हुई थी पर वह एक कमरे में थी। हरियाली के साथ रौनक लौटी तो चहल-पहल शुरू हुई और खास तौर से उस ओर जिधर बरगद के पेड़ों की कतार सी थी इसलिए दिन ढलते ही अंधेरा हो जाता, लोगों को गुजरते हुए कुछ दिक्‍कत होती। यह इसलिए भी कि बरगद की छाया में पड़ी चार बेंचों में से पता नहीं किस पर कौन बैठा हो और जाने क्‍या कर बैठे।

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मैं लोगों को समझाने की कोशिश कर सकता था, पर जहां से तन्‍त्र या वाद आरंभ होता है, मैं जानता हूँ वहां समझाने का असर नहीं होता, छोटा से छोटा अधिकारी आप से अधिक समझदार होता है और आपकी समझ पर वहीं भरोसा करता है जब आप उसके सामने रिरियाकर उसके अहं की तुष्टि कर सकें या उसको सक्रिय करने के लिए मोबील आयल डाल सकते हैं। ये दोनों काम मेरे वश में नहीं, फटकारना और कोसना जरूर अपने वश का है:
न तंत्रं नो यंत्र न च मोबिल न विलपनं
महामंत्रो जाने भर्त्‍सनं कुत्‍सनं वा ।

इसलिए पहले दूसरी सोसायटियों के पदाधिकारियों को इस बात के लिए सहमत किया कि जब तक कोई अन्‍य व्‍यवस्‍था न हो, वे मेरी अपनी सोसायटी की तरह पार्क के निकट पड़ने वाले हिस्‍से में उसी तरह की प्रकाश व्‍यवस्‍था तो कर ही सकते हैं। कुछ ने इसे मान लिया और इस पर अमल भी किया, कुछ के साथ तकनीकी कठिनाइयां थीं।

अब देखिए, अपनी अल्‍पावधि याददाश्‍त में कितना इधर उधर हो जाता है। खैर इसी बीच मुझे सौभाग्‍य से लक्ष्‍मीनारायण शर्मा हाथ लग गए थे जो स्‍थानीय स्‍तर के नेता बनने वालों की स्‍पर्धा में एक थे और विनी के आस पास पहुंचते थे। अब मुझे ऐसा लग रहा है कि नियोन लाइट का प्रबंध डीडीए के काल में नहीं हुआ था, अपितु इसके एमसीडी के हस्‍तान्‍तरित होने के बाद हुआ था और ऊपर बताए गए तरीकों को अपनाने के बाद हुआ था। इसमें विनी की जनतोषी और शर्मा जी की सक्रिय रुचि थी। और अब पिछले बयान को सुधरते हुए मुझे कहना पड़ेगा कि यह नियोन लाइटें बेकार नहीं हुई थी, ठीक काम कर रही थी और इन्‍हें चालू करने और सुबह बन्‍द करने का दायित्‍व शर्मा ने अपने ऊपर ले रखा था। इनके किसी बल्‍ब में खराबी आने पर शर्मा जी स्‍वयं सक्रिय होते और बताते कि उन्‍होंने यह कर दिया। वह मेरे हाथ कैसे लगे थे वह एक अलग दास्‍तान है और अपने समाज को समझने के लिए जरूरी भी है।

यह प्रकाश व्‍यवस्‍था ठीक चल रही थी, परन्‍तु बिना हमारे अनुरोध या प्रयत्‍न के पता चला कि अब इसकी जगह ऐ उससे काफी ऊंचे खंभे जिनका मैं नाम भी नहीं जानता, इसलिए लगाए जा रहे हैं कि एशियाई खेल योजना में इतने अधिक खंभे खरीद लिए गए जिनकी जरूरत नहीं थी, इसलिए इन्‍हें कहीं न कहीं लगाना तो है ही। जरूरत हो या न हो। इनमें प्रत्‍येक खंभे की कीमत कई लाख थी।

यह पहले से कुछ अधिक उज्‍ज्‍वल प्रकाश व्‍यवस्‍था तो थी ही जो खेलगांव के साथ पैदा हुई और चलती रही। कहीं कोई असुविधा नहीं। परन्‍तु इसी बीच पिछले पार्क के चार मंजिली ऊंचाई का एक स्‍तंभ लगा जिसमें एलईडी की प्रकाश व्‍यवस्‍था थी और इसे लगवाने की पहल तत्‍समय आगामी और अब संपन्‍न एमसीडी के काउंसलर के प्रत्‍याशी ने स्‍थानीय एमपी या भूतपूर्व एमपी के सहयोग से मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए की थी।

वह कांग्रेस का प्रत्‍याशी था। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्‍व के प्रति मेरी अरुचि जुगुप्‍सा के निकट इसलिए पहुंच जाती है कि उसका न तो देश की मिट्टी से लगाव है, न समाज से लगाव है, न भारतीय मतों और विश्‍वासों से लगाव है, न देशनिष्‍ठा है कि इसके हित के लिए हम कोई भी बलिदान दे सकते हैं, न जिनमें राजनीतिक दक्षता या कूटनीतिक परिपक्‍वता है, न शैक्षिक योग्‍यता है, न नैतिक मनोबल है, न अपनी वंशपरंपरा का श्‍लाघ्‍य गुण, फिर भी मैंने यह पाकर कि आप धूर्तों की जमात है, बीजेपी या तो अयोग्‍य है या भ्रष्‍ट जो उन गतिविधियों को अपने शासन काल में चलने दे रही थी, मैं पहली बार स्‍थानीय कांग्रेस नेता आनंद को आशीर्वाद देने को तैयार था। यह वह समय था जब पार्क का पंप कई महीने से बंद पड़ा था, उसे ठीक करने के लिए लिखत पढ़त हो रही थी, नाजुक पौधे सूखने के कगार पर थे, घास सूख चुकी थी, वह अपने प्रचार अभियान में मेरे पास आया तो मैंने कहा, यदि तुम हमारे पार्क को सूखने से बचा सकते हो तो इसको घेरने वाली सोसायटियाें का वोट तुम्‍हें जाएगा। पंप को ठीक करने के लिए उसे बाहर निकालना था या ऐसी ही कोई कठिनाई थी जिसके लिए उसने प्रयत्‍न किया पर सफल न हो पाया। फिर उसने अपने प्रयत्‍न और साधनों से टैंकर मंगा कर उनकी सिंचाई करता रहा और फिर जब उसके बन्‍दे आए तो मैंने कहा, तुम तो जीत चुके हो। अपना वादा पूरा करने वाला हारता नहीं है।

मुझे दुख था कि विनी ने एमएलए का चुनाव जीतने के बाद आप की आन्‍तरिक राजनीति के कारण इस्‍तीफा दिया और आज तक विनी ही अपने आरोपों में सही सिद्ध हुआ है, पर उसने उससे छोटे पद के लिए अपने को प्रत्‍याशी घोषित करने के साथ ही अपनी हार का भी ऐलान कर दिया। मुझे लंबे समय तक विश्‍वास ही न हुआ कि उस जैसा परिपक्‍व क्‍यक्ति ऐसी भूल कर सकता है।

परन्‍तु मैं इस पोस्‍ट के माध्‍यम से आपको यह बताना चाहता था कि कितने तरह के अंधेरों से और अन्‍धेरगर्दियों से घिरे हम रोशनी की तलाश कर रहे हैं और इन कुचालों के कारण हमारी रोशनी की कीमत कितने गुना बढ़ जाती है। रोशनी के नीचे इतनी तरह के अंधेरे हैं जो चिराग के नीचे हो ही नहीं सकते। हम ऐसे युग में जी रहे हैं जिसमे प्रकाश ग्‍लेयर बन कर हमारी आंखों को चौंधिया देता है और हम एक प्रकाशमूर्छित अंधेरे का सामना कर रहे होते हैं जिसमें रोशनी की नहीं पलकों को बंद करने की विवशता पैदा होती है।

लगातार दुखड़ा रोया जाता है कि एमसीडी के पास फंड की कमी है, जब कि सचाई यह है कि फंड इतना है कि सभी पूरा फंड स्‍वयं खा जाना चाहते हैं और खाने पर ध्‍यान अधिक देने के कारण उन्‍हें करना क्‍या है यह तक भूल जाता है ।