Post – 2016-09-20

प्रयोग 10
समस्‍या और समाधान का सहअस्तित्‍व

हम पहले की बता चुके हैं कि पार्क का आकार इतना छोटा कि किसी के जी में आये तो उठा कर अपनी जेब में रख ले और फिर भी यह एक छोटामोटा जंगल है। अभी अपने पूरे उरूज पर नहीं आया है। जब आएगा तो अन्‍धेरगर्दी किसे कहते हैं, इसे समझने के लिए लोग यहॉं आया करेंगे।

पिलखल अर्थात् पकड़ी के तेरह पेड
कदंब का एक
बरगद के दस बारह
सप्‍तपर्णी के पांच
अर्जुन के छह पेड़,
शीशम के दो
सहजन का एक
नीम का एक
अमलतास के सात आठ
कीकर का एक वृहदाकार पेड़ सबसे ऊंचा
पीपल के पांच
गुलमुहर के पांच
जामुन का एक
इसके अलावा पन्‍द्रह बीस पेड़ एक ऐसे जिनके फल तो छोटे आकार के रुद्राक्ष जैसे और जिसके पुष्‍पगुच्‍छ स्‍तवक की कुछ इंच से लेकर एक फुट सवा फुट तक लंबे नुकीले, जिसका पौधा मझोले कद का होता है पर दुर्भाग्‍य कि उसका ही नाम याद नहीं, संख्‍या तेरह चौदह पन्‍द्रह
मौलिश्री सहित फाइकस के तीस पौधे
फुटपाथ किनारे पेंडुलस के बीसेक पौधे
मैं यह गिनती यादों के सहारे दे रहा हूं इसलिए कुछ छूट गया भी हो सकता है पर इसमें कुछ घट नहीं सकता।
इतने सारे पौधों के होने से चार समस्‍यायें एक साथ पैदा होती हैं। पर हम केवल पहली की बात यहां करेंगे, शेष का आगे।
पतझड़ के कारण गिरी हुई पत्तियों का जमाव होता वह पानी की फुहार और बच्‍चों की उछल कूद से दब तो जाता, फिर भी टीला बन जाता। कई बार हटा भी लिया जाता। विनोद कुमार के काउंसलर रहते और इसकी उपयो‍गिता समझते उसे हटाने की ओर ध्‍यान भी दिया जाता। इसके लिए उन्‍होंने कहने पर अपने कांउसलर निधि से बुग्गियों का प्रबन्‍ध किया था।
फिर भी इतना बचा रह जाता कि साल में एक दाे बार आग पकड़ ही लेती और वह जलती तो दावाग्नि का खतरा पैदा हो जाता। कुशल यह कि दो तीन पेड़ों का एक हिस्‍सा जला पर शेष बचा रहा। कारण ऊपरी पर्त जलने के बाद लपट कम हो कर धुँए में बदल जाती और हफ्ते दस दिन तक सुलगती रहती। इसे मूसलाधार बरसात भी शान्‍त न कर पाती। प्रयोग – 10
आग लगती है तो बढ़ने दो बुझाते क्‍यों हो
जलने का एेसा

हम पहले की बता चुके हैं कि पार्क का आकार इतना छोटा कि किसी के जी में आये तो उठा कर अपनी जेब में रख ले और फिर भी यह एक छोटामोटा जंगल है। अभी अपने पूरे उरूज पर नहीं आया है। जब आएगा तो अन्‍धेरगर्दी किसे कहते हैं, इसे समझने के लिए लोग यहॉं आया करेंगे।

पिलखल अर्थात् पकड़ी के तेरह पेड
कदंब का एक
बरगद के दस बारह
सप्‍तपर्णी के पांच
अर्जुन के छह पेड़,
शीशम के दो
सहजन का एक
नीम का एक
अमलतास के सात आठ
कीकर का एक वृहदाकार पेड़ सबसे ऊंचा
पीपल के पांच
गुलमुहर के पांच
जामुन का एक
इसके अलावा पन्‍द्रह बीस पेड़ एक ऐसे जिनके फल तो छोटे आकार के रुद्राक्ष जैसे और जिसके पुष्‍पगुच्‍छ स्‍तवक की कुछ इंच से लेकर एक फुट सवा फुट तक लंबे नुकीले, जिसका पौधा मझोले कद का होता है पर दुर्भाग्‍य कि उसका ही नाम याद नहीं, संख्‍या तेरह चौदह पन्‍द्रह
मौलिश्री सहित फाइकस के तीस पौधे
फुटपाथ किनारे पेंडुलस के बीसेक पौधे
मैं यह गिनती यादों के सहारे दे रहा हूं इसलिए कुछ छूट गया भी हो सकता है पर इसमें कुछ घट नहीं सकता।
इतने सारे पौधों के होने से चार समस्‍यायें एक साथ पैदा होती हैं। पर हम केवल पहली की बात यहां करेंगे, शेष का आगे।
पतझड़ के कारण गिरी हुई पत्तियों का जमाव होता वह पानी की फुहार और बच्‍चों की उछल कूद से दब तो जाता, फिर भी टीला बन जाता। कई बार हटा भी लिया जाता। विनोद कुमार के काउंसलर रहते और इसकी उपयो‍गिता समझते उसे हटाने की ओर ध्‍यान भी दिया जाता। इसके लिए उन्‍होंने कहने पर अपने कांउसलर निधि से बुग्गियों का प्रबन्‍ध किया था।
फिर भी इतना बचा रह जाता कि साल में एक दाे बार आग पकड़ ही लेती और वह जलती तो दावाग्नि का खतरा पैदा हो जाता। कुशल यह कि दो तीन पेड़ों का एक हिस्‍सा जला पर शेष बचा रहा। कारण ऊपरी पर्त जलने के बाद लपट कम हो कर धुँए में बदल जाती और हफ्ते दस दिन तक सुलगती रहती। इसे मूसलाधार बरसात भी शान्‍त न कर पाती।
आक्‍सीजन की तलब, इस छोटे से कोने को पार्क से जंगल बनाने की जिद कि इससे दावाग्नि की नौबत आ जाय, और कुछ दिनों के लिए यह कार्बन आक्‍साइड का स्रोत बन जाय!
मैं यदि अपने तई संतुष्‍ट होता कि इसमें अपराध किसका है, पेड़ों का, या पत्तियों का, या मौसम का या माली का या जगह की कमी का तो उसके विरुद्ध कुछ करता
या कुछ न होता तो ग्रीन ट्रिब्युनल को ही शिकायत करता । दोष व्‍यवस्‍था था जिसके पास पार्क की सफाई और उसके निपटान का कोई इन्‍तजाम न था। मैंने उससे अनुरोध किया कि कंपोस्‍ट तैयार करने के लिए एक गड्ढा ऐसी खुली जगह में बनाया जाय जो ट्रैक से दूर हो और जिसके ऊपर पेड़ न लटके हो। खुली जगह में यह देखने में भदद्यदा लगेगा इस‍े सुंदर बनाने के लिए इसके चारों ओर तीन फुट ऊंचा घेरा बनाया जाय जिससे भूल चूक से भी कोई बच्‍चा उसमें गिर न जाय। उस चारदीवार के साथ एेसे पौधों की फेंस लगाई जाए कि उनकी हरियाली भीतर की कुरूपता को ढक दे।
प्रस्‍ताव पसन्‍द किया गया पर हुआ यह कि जहॉं पहले अग्निकांड होते थे वहीं, एक गड्ढा खोद दिया गया और समस्‍या अपनी जगह बनी रह गई।