Post – 2016-08-13

कुछ न कहता हूँ लोग कहते कुछ न जानता है
कह रहा हूँ तो समझते हैं जानकार भी हूॅ ।
उनकी मर्जी की कह दिया ताे जान देते है
कुछ अलग कह दिया कहते हैं गुनहगार भी हूॅा।
सही लोगों के बीच कितना गलत हूँ सोचो
उनको समझाऊँ तो ‘दुश्‍मन का तरफदार भी हूँ।’
फिर भी इन खतरों से गुजरे तो जिन्‍दगी जी है
वर्ना तो मौत के पिजड़ में गिरुतार भी हूँ।
चलो भगवान से पूछें कि सच गलत है क्‍या।
‘जवाब का मै मुन्‍तजिर हूँ, तलबगार भी हूंँ।’

यूँ ही आँखों में आ गए ऑंसू
बात तो आपके मिजाज की थी ।
हुआ जाहिर जिसे छिपाना था
बात माजी की न थी, आज की थी।
कुछ तो सोचें कि क्‍या कहेंगे लोग
तब लड़ाई तो तख्‍तो ताज की थी।
आज भी ख्‍वाब वही हों बाकी
सोचिए बात ऐतराज की थी।
14 अगस्‍त 16

दिलों के पार कई बस्तियां रही होंगी।
वहीं कहीं मेरी कुटिया बनी रही होगी।
जहाँ दिमाग भी होता था जानते थे लाेग
अाप को भी यह बात लग रही सही होगी।
मैं उन्‍हें प्‍यार भी करता था और नफरत भी
सोचता मुझमें ही कोई कमी रही होगी।
ऐ मेरे दोस्‍त बात करते तो अच्‍छा होता
चुप लगाने की कोई गॉंठ तो रही होगी।
तुम बहुत ठी‍क थे और आज कुछ जियादा हो
हमारी बात जहन में न आ रही होगी।
किसी को कहते बुरा खुद को बुरा लगता है
भले बुरे की कसौटी कोई रही होगी।
पूछो भगवान से अपना मगज बचा के रखों
वही बतलाए कि क्‍या, किसने, क्‍यों, कही होगी।
13; 8.16