गुल को हम खार न कहते थे मगर कहते हैं
तुमको हम यार न कहते थे मगर कहते है।
ऐ सियासत तेरी मजबूरियां मालूम न थीं
घर को बाजार न कहते थे मगर कहते हैं।
ठोकरें कितनी थीं खाई तो होश आया था
हम छिपाते हैं हाल दिल का मगर कहते है।
तुम ही सोचो कि मुझे कहते थे पहले क्याे लोग
कहता था मत कहो भगवान मगर कहते हैं।
9 अगस्त. २०१६