Post – 2016-08-06

निदान – 13
खंडित चेतना और विश्‍वसमाज

मेरा मित्र आज तैयारी के साथ्‍ा आया था। अपने स्‍वभाव के विपरीत उसने स्‍वर को संतुलित रखते हुए कहा, ”हमने धर्मआधारित सोच और राजनीति की भारी कीमत चुकाई है। जिन समस्‍याओं को सुलझाने के लिए यह कीमत दी गई वे पहले से उग्र हो गईं। स्‍वतन्‍त्र भारत में हमारा एकमात्र लक्ष्‍य था कि अब यह खंडित चेतना समाप्‍त हो। मुस्लिम लीग भारत में समाप्‍त हो गई थी। हिन्‍दू सांप्रदायिकता बनी रही, और इस चिन्‍ता में कि हमें धर्म और जाति से ऊपर उठ कर देशहित की राजनीति करनी चाहिए, विश्‍वसमाज का अंग बनना है, हमारे दल ने ही नहीं खुली सोच के सभी लोग उन मूल्‍यों और रीतियों व्‍यहारों की आलोचना करते रहे जिनसे संकीर्णता को बढ़ावा मिलता है। इसी में खानपान की अतिसंवेदनशीलता को कम करने के लिए ही प्राचीन ग्रंथों और खानपान के विधि निषेध का हवाला दिया जिसे हिन्‍दूवादी सोच के लोगों ने अपने ऊपर आक्रमण मान लिया और भावुक प्रतिक्रिया प्रकट की। शास्‍त्री जी, क्‍या आपको नहीं लगता कि स्‍वतन्‍त्र भारत में सांप्रदायिक राजनीति के लिए कोई जगह नहीं और यदि यह जारी रहती है तो इसके कारण अनिष्‍ट ही होगा, देश का भला नहीं।”

शास्‍त्री जी ध्‍यान से सुनते रहे और जब जवाब देने का समय आया तो भी अपने स्‍वर को संयत ही रखा, ”सर, लंबे समय तक एक ही तरीके से सोचते रहने के कारण कई बार आदमी को लगता है वह जो मानता है, वह लंबे सोच-विचार के बाद मानता है, जब कि अनजाने ही वह बहुत सारी बातों को ओझल करके अपनी मान्‍यता पर टिका रहता है। अाप लोगों ने तो वे दिन भी देखे हैं जब यह घटनाचक्र बदला था, आप मुझे यह समझने मे सहायता करें कि उत्‍तर भारत में मुस्लिम लीग का एक बहुत व्‍यापक संजाल बन गया था जिसके नेता कांग्रेस के नेताओं से अधिक मुखर थे। क्‍या पाकिस्‍तान बनने के बाद वे सभी पाकिस्‍तान चले गए थे ? ”

मेरा मित्र तत्‍काल कोई जवाब नहीं दे पाया।

शास्‍त्री ने कहा, ”उनका नब्‍बे प्रतिशत यहीं रह गया। वे राजनीतिक लोग थे। राजनीति के बिना जीवित नहीं रह सकते थे। बेनीपुरी जी ने लिखा है कि वे रातोंरात खादी पहन कर कांग्रेसी बन गए थे और इसके साथ ही कांग्रेस का चरित्र बदल गया था। कहें, मुस्लिम लीग कांग्रेस की आत्‍मा बन गई थी और कांग्रेस उसकी काया मात्र रह गई थी।

”आपकी पार्टी के बारे में तो डाक्‍साब ने प्रमाण और आपके नेताओं के बयान के साथ यह सिद्ध किया था कि आपकी पार्टी ने ही विभाजन को संभव बनाया था, उसने मुस्लिम लीग का एजेंडे को अपने घोषित एजेंडे से भी अधिक महत्‍व दिया और हिन्‍दुओं की पीड़ा पर अट्टहास करते रहे। याद है न आपको कामरेड डांगे का विभाजन से पूर्व हुए नरसंहार पर बयान। कान्ति के लिए खून बहाने की आदत डाली जा रही थी।

”समाजवादियों का एक दल था जो मार्क्‍स से प्रेरित था, पर अपने परंपागत मूल्‍यों और मानों का उपहास नहीं करता था, उसके प्रति आलोचनात्‍मक दृष्टि रखता था और एक समय में उसका भी लेखन प्रगतिशील माना जाता था, उसे हाशिए पर डाल दिया गया और जो अपने गलित रूप में अवतरित हुआ वह पतनोन्‍मुख बौद्ध मत के लोक मत में प्रवेश और पंचमकारी बनने की याद दिलाता है।

”इसके बावजूद इन सभी ने केवल और केवल प्राचीन इतिहास, हिन्‍दू मूल्‍यों और जीवनादर्शों , हिन्‍दू शास्‍त्रों पर ही प्रहार करना आरंभ नहीं किया अपितु अपनी समझदारी में हिन्‍दू को ब्राह्मणवाद और हिन्‍दू समाज की विकृतियों के लिए केवल ब्राह्मणों को उत्‍तरदायी बना कर सभी दिशाओं से तीर चलाए जाते रहे। आप कहते हैं कि स्‍वतंत्र भारत में मुस्लिम लीग समाप्‍त हो गई और मुझे लगता है इसके बाद उसने रक्‍तबीज की तरह फैल कर अपने को सेक्‍युलर कहने वाले सभी संगठनों में प्रवेश कर लिया। अब एक नया समीकरण उभरा जिसमें मुस्लिम लीग का हिन्‍दू नाम सेक्‍युलरिज्‍म हो गया और जिन दलों की आत्‍मा में पहले से ही इसका प्रवेश हो चुका था वे अपने पुराने सभी लक्ष्‍य छोड़ कर सेक्‍यलरिज्‍म के बचाव के लिए मस्लिम पूर्व के इतिहास और संस्‍क़ृति को नष्‍ट करने के एक बृहद आयोजन में सीधे या परोक्ष रूप से एकजुट होते गए और यदि किसी मार्क्‍सवादी ने इस हद तक झुकना पसन्‍द नहीं किया तो उसकी भी खाट खड़ी करने लगे। आप मुझे यह समझने में मदद करें कि हिन्‍दूव्‍यतिरिक्‍त भारत का जो आदर्श आपने इन दबावों में अपनाया उसमें हिन्‍दू की आत्‍मरक्षा की आवश्‍यकता पहले से अधिक बढ़ी या घटी और इसके लिए हम उत्‍तरदायी हैं या आप लोग जो अपने को उदार और सहनशील दिखाने के उत्‍साह में मैसोकिज्‍म के शिकार हो गए और हमसे भी यही अपेक्षा करते हैं, कि हम भी आप जैसे बन जायं?हिन्‍दू की पीड़ा को आनन्‍द का स्रोत मान लें वह इस देश में हो या किसी अन्‍य में। हम धर्म और जाति निरपेक्ष भाव से किसी संकटग्रस्‍त भारतीय की पीड़ा को अनुभव करते हैं और इसके लिए अपनी जान लगा देते हैं, यह हमने अपने नारों से नहीं नीति और व्‍यवहार से सिद्ध किया है, विश्‍वमानवता की चिन्‍ता भी हमें है, आपको कभी रही ही नहीं। आपके आदर्श में तो उसी देश का पूरा समाज दोस्‍त और दुश्‍मन में, शिकारी और शिकार में बदल दिया जाता है।”