Post – 2016-08-04

निदान 11
डैमेज कंट्रोल

आप कल मेरे उत्‍तर से सन्‍तुष्‍ट नहीं थे। आप का तो यही अध्‍ययन क्षेत्र है। बताइए आपने तबलीग की बढ़ती प्रवृत्ति को कब लक्ष्‍य किया और किस रूप में?”

”क्‍या आपको जालीदार टोपियों के चलन और इनकी संख्‍या में उछाल दिखाई नहीं देता।”

”दिखाई देता है। नजर इतनी धुंधली नहीं हुई है, पर जानना चाहता था कि आपको यह कब से नजर आने लगा? जानते हैं आप इसे एक दो दशक से पीछे नहीं ले जा सकेंगे। हद से हद तीन। मैं ठीक कह रहा हूु ?”

शास्‍त्री जी मेरी बात से सहमत हो गए।

”और क्‍या आप को पता है अमेरिकी प्रभाव क्षेत्र के अरब देशों का पैसा किस पैमाने पर भारत में पंप होना आरंभ हुआ और कब से ?”

शास्‍त्री जी के चेहरे से लगा उन्‍हें इनके बीच कुछ संबन्‍ध दिखाई देता है। कहा उन्‍होंने कुछ नहीं।

मैंने कहा, ”क्‍या आप ने उस सन्‍यासी और मठ के गोसाईं की कथा पढ़ी है, पढ़ी तो होगी ही, वह कहानी आपको याद है जिसमें चूहें के उछल कर खूंटी पर टंगी पोटली काटने की घटना आती है और जिस पर अतिथि सन्‍यासी ने सुझाया था कि पैसे में बहुत गर्मी होती है। इसके ठिकाने का पता लगाओ, इसने बहुत सा धन जमा कर रखा है अन्‍यथा इतनी ऊंची उछाल नहीं ले सकता था और फिर आगे की कहानी तो याद ही होगी।”

शास्‍त्री जी चुप रहे, पर उस चुप्‍पी का अर्थ था, हां याद आ गया।

मैंने कहा, ”अरब देशों में तो गर्मी वैसे ही असह्य होती है। फिर सोने में तो कहते हैं गर्मी के साथ नशा भी धतूरे से अधिक कही गई है। उसके साथ जाली टोपी आ गई तो उस पर तो आप को प्रसन्‍न होना चाहिए। हवा लगेगी तो दिमाग तो ठंढा रहेगा। इस पैसे के कारण उनमें कितनी छटपटाहट है और उससे बचने काे वे कितने बेचैन है यह भी तो देखिए।”

अभी तक जो शास्‍त्री जी सहमति में मौन से काम ले रहे थे, वह अपना माथा पीटने लगे। यह तो कह नहीं सकते थे कि आप से बड़ा अनाड़ी मैंने जीवन में कभी देखा ही नहीं। माथा भी कुछ संभाल कर दबाते हुए पीट रहे थे कि यह भ्रम बना रहे कि सिर भारी सा है और मैं इसे अपना अपमान न समझ लूं। उनकी परेशानी देख कर मैंने कहा, ”देखिए, जब हम किसी कारण से अपने को दूसरों से श्रेष्‍ठ सिद्ध करना चाहते हैं तो जहां यह श्रेष्‍ठता उसे स्‍वीकार्य होती है वहां भी इससे तनाव पैदा होता है, क्‍योंकि इसका अभिप्राय होता है कि दूसरे में उस गुण का अभाव है। आप यह न कहिए कि मैं तो सच बोलता हूँ, सच बोलिए, लोग जान लेंगे। श्रेष्‍ठता बघारने की चीज नहीं होती, यह हीरा छिपा कर रखा जाता है कि कहीं हमारे किसी आचार व्‍यवहार से दूसरों की नजर न इस पर पड़ जाय।

“मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता कि हमारा समाज किसी दूसरे समाज से अच्‍छा है, क्‍योंकि इस बहस के शुरू होते ही वह अच्‍छा नहीं रह जाएगा, क्‍योंकि इसका अर्थ हो जाएगा तुम्‍हारा समाज या धर्म अच्‍छा नहीं है। वह अपने को झगड़ालू सिद्ध करके पहले से कम अच्‍छा तो हो ही जाएगा। मेरे मित्र की चूक यह है कि वह यह बताते फिरते हैं कि कुर’आन दूसरे धर्म ग्रन्‍थों से अच्‍छा है। या यह भी हो सकता है कि वह इस खयाल से परेशान हों कि इस्‍लाम के नाम पर जो कुछ किया जा रहा है उससे लोगों के दिमाग में कुरआन और इस्‍लाम के बारे में यह धारणा बन रही होगी कि इसमें ऐसे ही विचार है इसलिए उनकी यह गलतफहमी दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए। वह बहुत संजीदा स्‍वभाव के इंसान हैं और उन्‍हें कभी वह जाली टोपी भी लगाते नहीं देखा। सुनते बहुत कम हैं इसलिए उनसे पूछ भी नहीं सकता कि उनका मकसद क्‍या है। तबलीग पर हम बाद में बात करेंगे।

”सबसे पहले हमें अपनी भाषा और आचरण में केवल इस बात ध्‍यान देना चाहिए कि उससे किसी दूसरे को कष्‍ट तो नहीं हो रहा है, इस बात पर कि हमारी कितनी बातें मानवता के हित में हैं या नहीं हैं, न इस कि इस बहस में पड़ना कि इस्‍लाम का मतलब क्‍या है। इस्‍लाम का मतलब अगर शान्ति है तो इसे भी, हमें अपने व्‍यवहार से यह सिद्ध करना होगा कि हम जो कुछ करते या कहते हैं उससे दुनिया में शान्ति पैदा हो, डिक्‍शनरी दिखाने से कुछ नहीं होता, शब्‍द व्‍यवहार में सार्थकता पाते हैं।”

शास्‍त्री जी का सिरदर्द कुछ कम हो गया, पर मेरा इरादा उसे कुछ और बढ़ाने का था इसलिए उनकी ओर ही मुड़ पड़ा, ”आप तो कहेंगे कि हिन्‍दू धर्म सबसे मानववादी है और इसकी धर्म की परिभाषा के साथ सर्वभूतहिते रत: और बसुधैव-कुटुंबकम् का जाप आरंभ कर देंगे, पर वसुधा को तो छोड़ दें, क्‍या आप हिन्‍दू समाज को कुटुंब बना सके हैं? आप की तानाशाही का हाल यह कि आप अपनी शर्तों के अनुसार दुनिया को चलाना चाहते हैं, यदि कुछ पीढि़यों से शाकाहारी है तो शाकाहार को पवित्रता की उस पराकाष्‍ठा पर पहुंचा देंगे की साग के अलावा यदि कोई कुछ खाता है तो घृणा का पात्र हो जाएगा और उसका ही सफाया करने की सोचने लगेंगे। यह कैसी अहिंसा और कैसा शाकाहार जो आमिषभोजी मनुष्‍य की हत्‍या करने को तैयार हो जाय या दूसरों को तैयार करने लगे। अहिंसा को भी क्रूरता का पर्याय बनाया जा सकता है, यह आपको देख कर लगता है।”

शास्‍त्री जी मुझे हैरानी से देखने लगे, पर मैं उन्‍हें कुछ और दुखी करना चाहता था।

”शास्‍त्री जी, ईसाइयत और इस्‍लाम दोनों बहुत बुरे हैं । इन्‍होंने आपके हनुमान जी की तरह जन्‍म लेते ही प्रकाश के स्रोत अपने पुस्‍तकालयों और पुरानी संस्‍थाओं और देवालयों और संस्‍कृतियों का सर्वनाश कर दिया और अन्‍धकारयुग का आरंभ किया – बाल समै रबि भक्ष लियो तब तीनहुं लोक भयो अंधियारो। को न‍हिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो। न रहै बांस न बजै बांसुरी।

”परन्‍तु आप ने तो इसी अतिसंवेदनशीलता के कारण अपने इतिहास को भुला कर स्‍वयं भी नष्‍ट कर डाला। आप जै श्रीराम के नारे लगाते हैं, पर यह भूल जाते हैं कि राम जी को मांसाहार बहुत पसंद था, पावन म्रिग मारहिं जिय जानी। और मार कर फेंक नहीे देते थे, खाते थे। फेंकते तो सचमुच बुरा होता। उनका विवाह हो रहा है और उनकी बारात के लिए मीन पीन पाठीन पुराने । भरि भरि भार कंहारन आने।’ आप को भूल जाता है और कुछ पीछे का और भी पाठ जिसमें वंध्‍या बछिया या वशा, बधिया होने से रह गए अनुपयोगी बछड़े और सांड़, घोड़े, बकरे, भेड़ को अग्नि समर्पित किया जाता था – यस्मिन् अश्‍वास: वृषभाश्‍च उक्षण: वशा मेषा अवसृष्‍टास आहुता : । यदि आप अपने इतिहास को अपव्‍यख्‍या से नष्‍ट स्‍वयं भी नहीं करते तो खानपान में मामले में आप इतने हाइपर सेंसिटिव नही हो जाते कि मरी हुई गाय का चमड़ा उतारने पर आदमी का चमड़ा उतारने लगते।”

शास्‍त्री जी की सहन सीमा जवाब दे रही थी, ”देखिए डाक्‍साब, मैं आपकी व्‍यख्‍या से सहमत नहीं हूं। ऋग्‍वेद की ऋचाओं का आप लोग बहुत स्‍थूल अर्थ लेते हैं। जिस आधी ऋचा को आपने अभी पढ़ा उसमें जो अवसृष्‍टास आया है उसे तो समझिए। अवसृष्‍टास का अर्थ है किसी दूसरे पदार्थ का, जैसे आटे या मिट्टी से उन जानवरों की आकृति बना कर उसे आग में डाला जाता था। शतपथ ब्राह्मण में बहुत स्‍पष्‍ट शब्दों में आटे का बकरा बना कर उसकी आहुति देने का वर्णन है, यह आप ने भी देखा होगा।”

मैं हंसने लगा, ”शास्‍त्री जी उसी स्‍थल पर यह भी तो लिखा है कि पहले मनुष्‍य की बलि दी जाती थी, फिर घोड़े की, गोरू की, बकरे की, भेड भी और अब उसके स्‍थान पर आटे का पशु बना कर उसकी आहुति दी जाने लगी। अविकसित समाजों में नर बलि बाद तक जारी रही, जैसे सवरों में धरती की उर्वरता बढ़ाने के लिए नरबलि।”

शास्‍त्री जी कुछ बोलते, इससे पहले ही मेरा मित्र जो आज कल शास्‍त्री जी से मेरी नोकझोंक मजे ले कर सुनने का आदी हो रहा था, बोल पड़ा, ”अरे यार शास्‍त्री तो आज भी नरबलि देने के प्रोग्राम बनाता रहता है। देखा नहीं, इसने गोरक्षक सेना भी इसी काम के लिए बना ली है जो कानून को अमल में लाने के लिए राेज कोई न कोई कांड करता फिरता है।”

शास्‍त्री जी खीझ कर मित्र की ओर मुड़ गए। पहले वह मित्र के लिए श्रीमान जी के संबोधन से हट कर सर पर आ गए थे, लेकिन आज खीझ में फिर श्रीमान जी पर लौट गए, ”श्रीमान जी, आप मेरे कुछ सीधे सवालों का जवाब देंगे?’

”पूछिए।”

”यह गोवध पर प्रतिबन्‍ध का कानून किसके शासन में बना था? ”
मित्र सिर खुजलाने लगा।

”नहीं, मेरे सामने बैठ कर आप अपने ऊपर इतना अन्‍याय मत कीजिए। इस उम्र में त्‍वचा पतली हो जाती है। आपको याद करने में कठिनाई हो रही है तो मैं मदद करता हूँ, असत्‍य हो तो हस्‍तक्षेप कीजिएगा, कांग्रेस ने?”

मित्र चुप रहा।

”जिन राज्‍यों में कांग्रेस शासन नहीं था उनमें यह लागू नहीं हुआ। जैसे आपके पश्चिम बंगाल में ।”

मित्र चुप रहा ।

”आप आज उसी कांग्रेस की गोद में जगह तलाश रहे हैं क्‍योंकि आपकी साख कांग्रेस से भी गिर गई है और आप जो उसको हो पसंद वही काम करेंगे वह दिन को अगर रात कहे रात कहेंगे।”

इस बार मित्र के होंठ खुले, ‘अरे भई, कानून बनाया था, इस तरह उस पर अमल तो नहीं किया था कि लोगों का जीना मुश्किल हो जाय।”

”कानून जीना मुश्किल करने वाला बनाएंगे और कानून को ही धता बता कर कानून का उल्‍लंघन भी करेंगे और इसके लिए दूसरों को भी उकसाएंगे, क्‍या आप मानेंगे कि कांग्रेस दुनिया की सबसे अराजक पार्टी है, जो अपने बनाए कानून को भी सत्‍ता में रहते हुए स्‍वयं तोड़ती है?”

मित्र को फिर सांप सूंघ गया ।

शास्‍त्री जी एक पल के लिए मेरी ओर मुड़े, ”डाक्‍साब कह रहे थे, पैसा पंप करके लोगों का दिमाग फेरा जा सकता है, उनसे कुछ भी कराया जा सकता है, सीआइए के एक खलीफे के शब्‍द बहुत पहले याद दिलाए थे जिसने कहा था मुझे इतने बिलियन डालर दो और मैं सोवियत संघ की सेना तक में ऐसी फूट पैदा कर दूंगा कि वह अपनी घरेलू समस्‍याओं से ही निबट नहीं पाएगा। मैं असत्‍य कह रहा हूं डाक्‍साब ?”

मैंने कहा, ”आप सत्रह आने सच कह रहे हैं क्‍योंकि आज तो लोग इतिहास को इस हद तक भूल गए हैं कि उन्‍हें पता भी न होगा कि रूपये में सोलह आने होते थे या बीस।”

”‍फिर आंख मूंद कर पूरे देश को नादिरशाह के बाद किसने उससे भी बेरहमी से लूटा है, क्‍या कांग्रेस का दावा यह नहीं है कि उसके आगे दुर्रानी एक मेमना था? और क्‍या यह सच नहीं है कि वह पैसा कई चेहरों से जगह जगह बोल कर अपनी खोई हुई साख पाना चाहता है। हुड़दंग के सभी कार्यक्रमों में किसकी उपस्थिति दिखाई देती है ? उसकी और उसके साथ आप की या हमारी जो हुड़दंग को रोकने के अपराध में अपराधी बना दिए जाते हैं? ”

”आप क्‍या अनाप शनाप बके जा रहे हैं, पता है ?”

”पता है, पर आप मुझे पता लगा कर बताइएगा कि गोरक्षक दल के बाने में किसके पालतू या चाराभाेगी काम कर रहे हैं। पंजाब में कुरआन की बेकद्री तो सामने आ चुकी, इसकी आप लाइए। जहां तक हमारी स्थिति है न हमने हिन्‍दू वोट बैंक के लिए कोई कानून बनाया, न मुस्लिम वोट बैंक का सपना देख सकते हैं। हम बैंक प्रणाली को अर्थव्‍यवस्‍था तक सीमित रखना चाहते हैं। यदि आप ने न पढ़ा हो तो आज का ही समाचार पढि़ए, ”आरएसएस ने ऊना में दलितों काे कोड़े मारने की निन्‍दा की है।”

”वह तो डैमेज कंट्रोल है।”

”हो सकता है, हो। पर कुछ आप भी तो हमसे सीखिए, डैमेज कंट्रोल ही सही। आप को तो डैमेज की लत सी पड़ती जा रही है। यह नशा जान के साथ ही जाता है।”

इस तेवर की तो मुझे शास्‍त्री से उम्‍मीद ही न थी। ताली बजाते हुए उठ खड़ा हुआ।