Post – 2016-08-03

निदान 10

तबलीग

”तबलीग का अर्थ जानते हैं डाक्‍साब ?”

जानता तो था, पर इसे समझाने का बोझ शास्‍त्री जी के कंधो पर डाल दिया।

उन्‍होंने अपने कर्तव्‍य का निर्वाह करते हुए बताया, ‘तबलीग का अर्थ होता है धर्म प्रचार । प्रचार के लिए जरूरी होता है नैतिक और तार्किक औचित्‍य। आपकाे शायद पता न हो कि इस पर दूसरे मुस्लिम देशों और ईसाई देशों का कितना पैसा भारत में पंप किया जा रहा है और उसकी हवा उन्‍हें कितना जोम और जुनून में रखती है। इसके प्रकट और प्रच्‍छन्‍न कई रूप हैं और …”

शास्‍त्री जी आगे की कड़ी जोड़ने लगे कि मैं बीच में ही हस्‍तक्षेप कर बैठा, ”इसे आप ने कब से लक्ष्‍य किया ?”

”जो इसे लक्ष्‍य नहीं कर सकता वह जिस अवस्‍था में पहुंचा हुआ है उसका आप से बात करते हुए नाम लूं तो प्रायश्चित्‍त करना होगा, क्‍योंकि तुलसीदास ने उन्‍हें सबसे भला कहा है, और आगे कुछ और जोड़ दिया है।”

”आप को प्रायश्चित्‍त नहीं करना होगा, क्‍योंकि मैं इसे जानता हूं। आपको इसका व्‍यक्तिगत अनुभव न होगा पर मुझे इसका व्‍यक्तिगत अनुभव है। मैं जिस सोसायटी में रहता था उसे भारत का गुटका संस्‍करण कह सकते हैं। पूरे देश के और लभी धर्मो के लोग उसमें रहते हैं। जाहिर है उसमें अनेक मुस्लिम परिवार भी रहते हैं। उसमें एक सज्‍जन है जिन्‍होंने अपना सेवानिवृत्ति के बाद का पूरा जीवन ही इसी कार्य को समर्पित कर रखा है। हाथ में हिन्‍दी की चार पांच पुस्तिकाओं की प्रतियां लिए घूमते हैं और हमें यह जानने का मौका देते हैं कि इस्‍लाम दुनिया का सबसे अच्‍छा मजहब है और इसमें मानवता से प्रेम का ही सन्‍देश दिया गया है। वह कुछ अधिक ऊंची आवाज ही सुन पाते हैं इसलिए अपनी बात कह कर बात पूरी मान लेते हैं। कुर’आन की आयतें इतने प्रभावशाली और मधुर स्‍वर से पढ़कर सुनाते हैं कि अर्थ पल्‍ले न पड़ते हुए भी उसके नाद से ही मन मुग्‍ध हो जाय। मेरे अच्‍छे सम्‍बन्‍ध हैं, दुआ सलाम ही नहीं दूसरे धर्मेतर सवालों पर साथ देने तक के भी। एक बार सोचा अरबी सीखने का् अच्‍छा मौका है, प्रस्‍ताव रखा, सिखाइए, तो बोले अरबी नहीं आती है, पर कोई इन्‍तजाम करेंगे। कुछ दिन बाद ही इधर से इधर आ गया। मैं जानता था, संस्‍कृत के श्‍लोक पढ़ने और मधुर और मोहक स्‍वर में पाठ करने वालों को संस्‍कृत भी आती हो, यह जरूरी नहीं।

उन्‍होंने मेरी सहभागिता को देख कर एक बार सोचा इस आदमी को तो मुसलमान बनाया ही जा सकता है।

कहा, ”एक दिन मैं आपसे मिलने आपके घर (जिसका मतलब हुआ फ्लैट पर) आना चाहता हूं।”

”बिल्‍कुल आइए। खुशी होगी।”

बोले, ‘अकेले नहीं, एक डाक्‍टर साहब हैं उनके साथ ।”

मुझे क्‍या आपत्ति हो सकती थी। आए। आने के साथ दो तीन पुस्तिकाएं, जिन्‍हें वह बांटा करते थे, साथ लाए और कहा, इसे पढि़ए। उनमें से एक किसी पीठ के आचार्य का था जो इस्‍लाम की प्रशंसा में था, और दूसरा किसी अन्‍य का, पर वह भी हिन्‍दू ही थे। तीसरे में कुरान के कुछ उच्‍च विचार थे या ऐसा कुछ, यदि आप चाहें तो मेरी सोसायटी के स्‍वागत कक्ष में भी वे रखी रहती हैं, आपको ला कर दे दूंगा, परन्‍तु तब जब उनसे बात हो रही थी एसी नौबत नहीं आई थी। वह अलग अलग लोगों को यह सिद्ध करने के लिए कि इस्‍लाम दुनिया का सर्वश्रेष्‍ठ धर्म है, उन्‍हें सर्वश्रेष्‍ठ बिरादरी में जगह देने के लिए तैयार अवश्‍य थे।”

मैंने पहले सोचा था, उनके साथ आए नौजवान डाक्‍टर किसी विषय के अधिकारी विद्वान होंगे, पता चला वह होमियोपैथ डाक्‍टर थे। यह प्रसंगवश कह गया।

अतिथि सत्‍कार की औपचारिकता पूरी करने के साथ उन पुस्तिकाओं को उलटता पलटता रहा। उन्‍होंने कहा, ‘पहले आप इनको पढ़ जाइए, फिर हम इतने दिन बाद मिलेंगे।’

मैंने उन्‍हें रोक लिया। अपने शेल्‍फ से कुर’आन की एक अरबी हिन्‍दी पाठ वाली, एक सऊदिया से अंग्रेजी में प्रकाशित और एक किसी तबलीगी मुहिम में मेरे अपने जिले के व्‍यक्ति द्वारा मुफ्त भेजी गई प्रतियों, हदीथ और फतवों की किताब जिन्‍हें मैंने एक दो बार नजर से गुजारा था, हदीथ और फतवों की प्रव़त्ति देख कर अधिक पढ़ा भी नहीं था, पर यह मौका दूसरा था, मैंने कहा, ”देखिए मैं इन बारह पन्‍नों वाली किताबों से इस्‍लाम काे नहीं जानता, उसे समझने के लिए मैंने इनकाे पढ़ा है। आप बताइए, आप लोगों में से किसी ने रामायण, महाभारत, गीता, पुराण कुछ भी पढ़ा है।”

”उत्‍तर तो मैं पहले से जानता था। उनको सांप सूंघ गया।

मैंने कहा, ”आप जब कुरान और हदीथ के अलावा कुछ नहीं जानते तो यह कैसे तय कर लिया कि सबसे अच्‍छा धर्म इस्‍लाम ही है। मैं आपको समझने और जानने की कोशिश के बाद अपनी ओर से हमला करूं तो क्‍या आप अपने को बचा पाएंगे।

”मैंने कहा दुबारा आइए जरूर पर मुझसे बहस की तैयारी करके आइये। दूसरे धर्मो और विचारो को समझ कर आइए। मैं यही तो चाहता हूं, हम एक दूसरे को समझे जानें। घोंघाबसन्‍त बन कर न रहे।

”मैंने उन्‍हें विदा किया। वे फिर नहीं आए। पर हमारी मेल-मुलाकात आज भी बदस्‍तूर है। इसे आप भी देखते होंगे।”

”आप कहना क्‍या चाहते हैं।”

”मैं यह कह रहा हूं कि मनुष्‍य में कुछ अनन्‍य काम या आम लोगों से कुछ ऊपर और अलग काम करने की प्रवृत्ति प्रकृति ने उसे दिमाग देने के साथ ही पैदा कर दी। वह नाम कमाने या सबसे ऊपर होने की आकांक्षा में जितने मूर्खतापूर्ण काम कर सकता है उससे गिनीज बुक आफ रिकार्ड्स भरी पड़ी है। उनको उनके इस मंसूबे से समझो। इस तरह के मूर्खों ने अपने घर परिवार को, दुनिया को, बर्वाद करने का खेल भी खेला है और मनुष्‍यता को नई चुनौतियों के लिए तैयार भी किया है। इनकी मूर्खता पर ध्‍यान जाएगा तो पत्‍थर मारोगे, इनके उत्‍सर्ग पर ध्‍यान जाएगा तो फूल चढ़ाओगे। जरूरत समझने के नजरिए में बदलाव करने की है।”

”मगर मैं जो कहना चाहता था, वह तो आपने सुना ही नहीं।”

”उसे कल के लिए रहने दें ।”