Post – 2016-07-31

कई बार उनसे हुआ सामना था
कई बार उनसे मिली थीं निगाहें
यह क्या हो गया, क्‍यों बताओ तो समझे
मेरे सामने क्‍यों झुकी हैं निगाहें।।

बताओ कि इस बीच क्यां घट गया है
बताओं कोई तुमसे क्या कह गया है
कि विश्वास पहले का गुम हो गया है
भटकती तो यूं हर कहीं हैं निगाहें ।।

कई कहते हैं चूक तुमसे हुई है
कई कहते हैं चूक कोई नहीं है
मगर यह तो मुमकिन खता हो तुम्हारी
कहीं तुम खड़े हो कहीं हों निगाहें।!

बता मुझको भगवान है माजरा क्या
कि हैं आंख फिर भी नहीं हैं निगाहें।
निगाहों में सपनों का है बास मानो
न सपने हैं तो फिर नहीं हैं निगाहें।
३१/०७/१६ २२:११:५४