निदान 8
मध्यवर्ग का अभाव
”प्राच्यविदों ने प्राचीन भारत का जिस तरह आकलन किया था और विलसन और मैक्समुलर ने मिल के जिस तोड़ मरोड़ का खंडन किया था क्या यह भी एक कारण है कि तथाकथित मार्क्सवादी इतिहासकार उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह् लगाते रहे।”
”इसमें सचाई तो है, परन्तु, परन्तु आधी क्योंकि उसी मैक्समूलर के काल निर्धारण को वे इस तरह पीटते रहे जैसे यह वैज्ञानिक सत्य हो जब कि स्वयं मैक्समुलर ने माना था कि यह एक अटकलबाजी है और आज कोई यह नहीं बता सकता कि यह ईसवी सन से दो हजार साल पुराना है या ढाई हजार या तीन हजार। जिन बातों को प्रामाणिक ढंग से कहा, वे केवल उनका विरोध करते रहे क्योंकि प्राचीन भारत का जैसा वे चित्र पेश करना चाहते थे, करते रहे थे, उसमें उनकी टिप्पणियां बाधक थीं। परन्तु यदि इस ओर मुड़ेंगे या यह बताने चलेंगे कि दूसरे यूरोपीय इतिहासकारों ने प्राचीनकाल और मध्य’काल के विषय में क्या विचार व्यक्त किए हैं, तो विषयान्तर होगा। सच तो यह है कि मैं किसी पश्चिमी विद्वान के विचार को, वह प्रशंसा में हो या निन्दा में कूटनीतिक दायरे से बाहर नहीं मानता इसलिए उन पर भरोसा करने की जगह उनको जांचते परखते हुए पढ़ने की सलाह देता हूं।
”उनमें से किसी का अध्ययन न तो व्यर्थ है न विश्वसनीय। प्राचीन भारत के विषय में तो दो दशक पहले तक का भी हमारा ज्ञान बहुत अधूरा था।
”मैं जिस तथ्य की ओर ध्यान दिलाना चाहता था वह यह कि मुस्लिम शिक्षा पर हंटर का जादू चल गया और चल इसलिए गया कि अमीर मुसलमानों के मन में वे ग्रन्थियां पहले से थीं जिनको उसने अपनी रपट में तूल दे कर सांप्रदायिक भावना उभारने का प्रयत्न किया था। उसकी वह पुस्तक ‘The Indian Musalmans: Are They Bound in Conscience to Rebel Against the Queen?’ 1871 में आई थी जब कि सैयद अहमद की उपयोगिता भांप कर अंग्रेज कूटनीतिक जाल उससे एक दशक पहले से रोप कर उनको अपने शीशे में उतारने में लगे थे। वे मुसलमानों का गुस्सा अंग्रेजों की ओर से हटा कर हिन्दुओं की ओर मोड़ना चाहते थे क्यों कि 1858 के क्रूर दमन के बाद भी मुसलिम विद्रोह जारी था। उन्हाेंने सबसे अधिक परेशानी पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त में पैदा की थी जहां बार बार कठोर कार्रवाई करने, गांव के गांव जला देने के बाद भी उनको अधिकार जमाने में कामयाबी नहीं मिल रही थी और इसका सबसे रोचक पहलू यह था कि इसके लिए नैतिक और भौतिक समर्थन ब्रिटिश राज में ही वहाबी नेताओं द्वारा जुटाया जा रहा था, जिनका मुस्लिम समुदाय पर गहरा असर था।
”यह बात तो एक बार आप कह ही चुके हैं आप यह बताएं आपकी समझ से मुसलमानों के पिछड़ेपन का कारण क्या हो सकता है।”
”यह बात किसी मुसलमान से न कहिएगा, क्यों कि उनको लगातार जिस तरह के ईरानी श्रेष्ठताबोध में पाला गया है, वे इसे स्वीतकार नहीं करेंगे। हम आज से हजार दो हजार साल पहले के हिन्दू समाज के सामान्य आचार व्यवहार से परिचित नहीं हैं, परन्तु उसमें राजा और दरबार में कुछ मर्यादाओं और प्रतिबन्धों का चलन तो था परन्तु पश्चिमी तर्ज की वह तड़क भड़क, वह दरवारी संस्कृति, सलीके और आन बान का प्रदर्शन न रहा होगा और उसे आप सरलता कहेंगे, वे लद्धड़ता कहेंगे। यह कहिए कि वे पिछड़ क्यों गए या पिछड़ते क्यों चले गए तो यह बात उनकी समझ में आ जाएगी।”
” मैंने हंटर का जिस प्रसंग में नाम लिया था वह यह कि उसका यह जादू चल ही गया कि मुसलमान हिन्दुओं पर राज कर चुके हैं, उनको अपने से तुच्छ समझते रहे हैं इसलिए वे उन्हीं स्कूलों में हिन्दू बच्चों के साथ बैठ कर पढ़ नहीं सकते। उनमें अशिक्षा का यही कारण है और अंग्रेजी शिक्षा के अभाव में उन्हें नौकरियां नहीं मिल पा रही हैं, उनकी दशा दिनो दिन खराब होती जा रही है और इसलिए इस दिशा में सरकार को कुछ करना चाहिए।
इस दिशा में केवल सरकार ही कुछ करती आ रही है चाहे वह ब्रितानी रही हो या कांग्रेसी ।
”चलिए, यही सही। परन्तु जिन्हें अंग्रेजी शिक्षा मिली वे भी अपनी मान्यताओं में इतने पुरातनपंथी तो हैं ही कि मध्यकाल से बाहर नहीं आना चाहते।”
‘इसके कई कारण हैं। एक तो वह सांस्कृहतिक मनोग्रस्तता है जिसमें वे मद्रसे से निकले, अाधुनिक शिक्षा तक पहुंचे भी तो अपने अलग स्कूाल, अलग कालेज, अलग विश्वसविद्यालय की मांग करते रहे। इसमें जैसा कहा, सैयद अहमद भी आ गए थे। इससे जो लगाव के बीच भी अलगाव पैदा होता है वह निजी घरौंदे तैयार करता है, एक निजी संसार, जिसमें बन्द या लगभग बन्द, सीक्रेटिव मानसिकता पनपती है।
”फिर पहले तो शिक्षा केवल उनके अमीर घरानों तक सीमित रही, आज भी शिक्षित मुसलमानों में आधे अपने ऊंचे घराने की बात करते मिल जाएगे, क्योंकि उनमें मुल्ला और मौलवी तो थे, उस बड़े पैमाने पर शिक्षा जीवी वर्ग नहीं था जो हिन्दुओं में ब्राह्मणों और कायस्थों के रूप में बहुत पहले से मौजूद था। इसने अंग्रेजी शिक्षा का अवसर मिला तो उसे बढ़ कर अपनाया, जब कि मुल्ला मौलवी उसके विरोध में लगे रहे अत: जिस भी पैमाने पर मकतब मद्रसे चलाने वाला वर्ग था वह उसी को कायम रखने की जद्दोजहद में लगा रहा। सैयद अहमद को भी लंबी लड़ाई तो इन्हीं से लड़नी पड़ी जिसमें उन्हें आधी ही जीत मिल पाई। हिन्दू़ समाज में आरंभ से ही सभी प्रकार का नेतृत्व आरंभ से शिक्षित मध्यवर्ग के हाथ में रहा है और इस दौर में भी रहा और इसने इसे शक्तिशाली और मुखर बनाया। इस हद तक मुखर कि वह हिन्दू मूल्यों और मान्यताओं की धज्जियां तक उड़ा सके।
”मुसलिम समाज में नेतृत्व अमीरों और रईसों के हाथ में आ जाया जिनकी शिक्षा में न तो पहले गहरी रुचि थी न बाद में या थी तो शेरो शायरी तक। हिन्दू समाज के नेत़त्व में जमीदारों और रजवाड़ों के लिए कोई जगह न थी, न उनकी कोई भागीदारी थी। उनके हित और मुस्लिम रईसों ताल्लेकेदारों के सरोकार बिल्कुल एक जैसे थे और यदि नेतृत्व इनके हाथ में आया होता तो ठीक उसी तरह के खेल शुरू होते। वे अधिक से अधिक सरकार से अपनी सुरक्षा और कुछ इज्जत अफजाई की मांग कर सकते थे जिन्हेंव वे भारी मोल दे कर खरीद भी सकते थे। जनसाधारण की दशा में सुधार लाने वाली कोई मांग वे भी न रखते।
एक बार इनके मुस्लिम लीग के रूप में इन रईसों का एक मुखर संगठन बन जाने के बाद हिन्दू हिन्दू सभा की स्थापना 1909 में हुई जिसने आगे चल कर हिन्दूे महासभा और राष्ट्रीय स्वीयं सेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद का जन्म दिया, जिनका रवैया हिन्दू राजाओं और जमींदारों के प्रति नरम भले रहा हो परन्तु इसकी स्थापना से लेकर इसके संचालन में भी अग्रणी भूमिका जमीदारों या रियासतदारों की न होकर सुशिक्षित हिन्दू मध्यवर्ग की रही।
मध्य वर्ग किसी भी समाज का सबसे ऊर्जावान और विविध संभावनाओं से भरपूर वर्ग होता है जिसकी समाज को आगे ले जाने में ही नहीं अपनी रक्षणीय संपदा की रक्षा और व्यंवस्थाक में भी निर्णायक भूमिका होती है।
”मुसलमानों में भारत में तो फिर भी स्थिति कुछ भिन्न मिलेगी। पूरे इस्लामी जगत में किसी देश में मुखर और प्रभावशाली मध्यवर्ग नहीं पैदा हो सका और शिक्षा के प्रसार के बाद भी भारत में भी अजागलस्तन की तरह ही है। अनुत्पादक। इस्लामीमूल्यों और मान्यताओं में इतना दबा हुआ कि वह परदा प्रथा और तलाक और एकाधिक विवाह जैसे मामलों पर भी चुप लगाए रहता है। वह भी सारे सुधार और अधिकारों की सारी लड़ाइयां हिन्दू समाज में ही चाहता है जिसके मध्यवर्ग ने अनेकानेक कुरीतियों को दूर किया और अधूरे और कालसाध्य समस्याओं पर भी जुझारू तेवर रखता है। पूरे इस्लाभमी जगत के पिछड़े पन का मैं इसे मुख्यल कारण मानता हूं, यद्यपि कारण और भी हैं जिनकी चर्चा कल करूंगा ।