मैने जो लेख लिखा था और जिसे पोस्ट करने चला तो वह किसी कारण गायब हो गया वह कबीर और तुलसी पर पहुंच गया था। मैं नहीं जानता फिर वैसा लिख पाउूंगा या नहीं। कल प्रयत्न करूंगा, पर उसकी पीड़ा में मर्सिया के बाद ती,न दोहे भी लिखे जो यदि वह न मिटता तो न लिख पाता। वे निम्न प्रकार है:
कबिरा खड़ा बजार में तुलसी घर घर मांहि।
दोनो लिए मशाल हैं फिर भी उल्टी राह।।
किसकी कीजे बन्दना किसके लगिये पांव
दोनों हैं अड़बंग पर कितना सरल सुभाव।।
मैं दोनों को जोड़ता दोनों करें भिड़न्त
दोनों सांचे सूरमा जाने क्या हो अन्तं ।।
अब इस नुकसान के बाद भी चैन से सो पाउूंगा।
शुभ रात्रि गहरी नींद और बीते दिनों के सपने।