Post – 2016-05-07

ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः (edited)

– तुमने मुझे कल सचमुच डरा दिया! हम किस तरह का संसार रच रहे हैं! क्या होगा इस समाज का!
– डरने के लिए किसी चीज का होना जरूरी नहीं, लोग भूत-प्रेत से डरते रहते हैं, वे वहम पाल लेते हैं और अपने उन खयालों से डरते हैं जिनका उनसे बाहर कहीं कोई आधार नहीं होता ! ऐेसे विचार और विश्वास दूसरों के द्वारा भी भरे जा सकते है, परंपरा, संस्कार और व्यवहार में रीति-रिवाज में अज्ञात युगों और हमारे ही समाज में मिल कर अदृश्य हो जाने वाले समुदायों के अवशेष हो सकते हैं जिनको हमने सांस्कृतिक दाय के रूप में ग्रहण कर रखा हो! हमारी शिक्षा प्रणाली को विकृत करके उसे जुगुप्सु या डरावना बनाया जा सकता है।

– बात भूत-प्रेत की नहीं है, न वहम की है। यह तो हमारी आज की वास्तविकता का हिस्सा है! आज से छह सात दशक पहले संयुक्त परिवार के टूटने, एकल परिवारों के अस्तित्व में आने की आशंका जताई गई थी! कहा गया कि यह शहरीकरण के विस्तार के कारण हो रहा है! अब देखो तो इस एकल परिवार में भी भावनात्मक लोप आरंभ हो गया है। तुमने जो कहानी सुनाई उससे लगा कि उपभोक्तावाद हमें मनुष्यों से भोगलिप्सु पशुओं में बदलता जा रहा है। इसकी ओर तो मेरा ध्यान इस रूप् में गया ही न था। इसने तो मेरी आंखें खोल दीं!

– सचाई को देख कर घबराहट में लोग आंखें बन्द कर लेते हैं! पूरा देखने या जानने का साहस नहीं जुटा पाते और इसलिए उस खास नुक्ते को नहीं समझ पाते जिसके कारण वह विकृति पैदा हुई है। मुहावरा है अनाड़ी कारीगर औजार को कोसता है!

– उसे बुरा लगा! लगना भी चाहिए था! और ऐसे लोगों को खास बुरा लगेगा जो एक खराबी देख कर किसी प्रजाति, जाति, समाज या देश को गर्हित सिद्ध करने लगते हैं और मजे की बात यह कि उसी गर्हित समाज के मूल्यों की दुहाई देते हुए उसे कोसते हैं! वे अपने ही समाज के दूसरे लोगों को गर्हित सिद्ध करके अपने को साफ-पाक सिद्ध करना चाहते हैं। हिन्दू समाज की छोटी से छोटी विकृति को बिभ्राट रूप दे कर हिन्दू समाज को सबसे गर्हित समाज बताने वाले, उसके हिन्दू काल को…

वह कूद कर सामने आ गया, ‘तुम हिन्दूकाल, मुस्लिमकाल, ईसाईकाल में बांट कर इतिहास को समझने चलोगे तो इतिहास को क्या खाक समझोगे। हमें तुम लोगों से इसीलिए चिढ़ है कि तुम्हारी सोच ही सड़ी हुई है!

– तुमने पहली बार एक सही बात कही है कि इस तरह का बंटवारा सड़े दिमाग वालों का ही हो सकता है। इस तरह के बंटवारे से इतिहास को ही नहीं वर्तमान को भी नहीं समझा जा सकता। और यह काम तुम लोगों ने किया है और तुम ही कर सकते थे। तुम्हारे लिए ही मिल भारतीय इतिहास का जनक भी है और सबसे बड़ा इतिहासकार भी। और जानते हो क्यों, क्योंकि उसने इतिहास को हिन्दू, मुस्लिम और ब्रिटिश कालों में ही नहीं बांटा था, यह भी सिद्ध किया था कि यूरोप और इसलिए वहां की जातियां गोरी होने के प्रताप से सदा से दूसरो से श्रेष्ठ रही हैं और सभ्यता का जन्म उनके द्वारा ही हुआ और उसी का प्रसार एशिया की ओर हुआ इसलिए जो उनके निकट थे, जैसे कि अरब वे उनसे घट कर तो थे, पर अपने से पूरब वालों से अधिक सभ्य थे। उसी तर्क से मुसलमान हिन्दुओं से अधिक सभ्य थे और मुस्लिम काल हिन्दूकाल से अधिक उन्नत था! अब देखो तो यह तुम्हारे विकासवादी सिद्धान्त से भी सही ठहराया जा सकता है! विकास में अगली अवस्थाएं अपनी पिछली अवस्थाओं से उन्नत होती ही हैं। ‘हिन्दूकाल’ बहुत प्राचीन है इसमें सन्देह नहीं, इसलिए उसे मुस्लिम काल से पिछड़ा होना ही था जो हिन्दू काल के लगभग अवसान के साथ जन्म लेता है और यूरोप उसमें भी ब्रिटेन, उसमें भी इंग्लैंड और इसलिए अंग्रेज तो सबसे उन्नत हुए ही। हिन्दू और मुस्लिम काल के रूप में इतिहास के बटवारे पर सबसे पहले आपत्ति मजूमदार और मुंशी के तत्वावधान में प्रकाशित इतिहास में की गई थे जिनको तुमने संप्रदायवादी और राष्ट्रमवादी कह कर खारिज ही नहीं कर दिया और इसकी मखौल भी उड़ाने से बाज न आए। मिल को महान इतिहासकार मानने वाले कोसंबी का भारतीय इतिहास में यह भी एक योगदान है कि प्राचीनकाल को उन्हों ने हिन्दू काल और ब्राह्मण काल के रूप में देखने और दिखाने का कुटिल प्रयास किया! तुमसे एक बार कहा था न कि नाम का अर्थ व्यवहार और गुण से तय होता है उसके लिए प्रयुक्त अक्षरों से नहीं और यदि तुम्हारी सोच वही है तो उस शब्द के लिए कोई दूसरा उपनाम लगा कर वही व्याख्या जारी रख सकते हो। अब इस सिरे से देखो और बताओ सड़ी सोच और सड़ा दिमाग किसका है और साक्ष्यों के आधार पर जिनको तुम विकृतचित्त मानते हो उन्हें तुम्हें कुत्सितचित्त मानने का अधिकार है या नहीं!

– तुम कहां की बात कहां खीच ले गए।

– हम विषय पर ही हैं। मनुष्य के व्यववहार में आए अन्तर को झपटमारों की तरह नहीं समझा जा सकता कि किसी एक व्याक्ति के व्यंवहार में कोई विकृति या भटकाव दिखाई दिया कि पूरी पीढ़ी, पूरे दौर, एक पूरी व्यवस्था से विरक्त हो उठे। मैं तुम्हें कल बताउूंगा कि यदि मेरे मित्र को एक त्रासदी से गुजरना पड़ा तो उसके लिए मेरे मित्र भी कुछ हद तक जिम्मेदार थे और हम सभी अपनी पूरी समझदारी का, हर समय, प्रत्येेक निर्णय करते समय, लाभ उठाना चाहें तो उठा नहीं सकते। सोचते रह जाएंगे। कुछ करने का अवसर ही न आएगा।