8-5-16
– तुमने उस ‘बड़ी खबर’ को देखा था जिसमें छोटा भाई सत्तर साल के बड़े भाई को पीट रहा था और बाद में उसका लड़का आया तो उसने भी एक लात लगाया। बताया जा रहा था कि यह चित्र वायरल हो गया है, गरज कि इसका मजा वायरस की तरह चारों ओर फैलता जा रहा है और लोग खुशी खुशी इसकी चपेट में आते जा रहे हैं।
– बड़ी खबरें तुम्हें ही मुबारक। मैं तो उन छोटी खबरों की तलाश में रहता हूं जो सूचना और विचार के नाम पर, खोजी पत्रकारिता के नाम पर चल रहे मनोरंजन के फूहड़ उद्योग के सुनामी में लुप्त होती जा रही हैं और हम पत्रकारिता की उस आदिम अवस्था की ओर लौट चलें हैं जिसमें समय काटने के लिए कहीं बैठे बूढ़े गली मुहल्ले के लोग, प्रतिष्ठित परिवारों के अंतरंग किस्सों और अफवाहों का बाजार गर्म रखते थे और फिर किसी को सूझा कि इसे जुटा कर, छाप कर एक धन्धा क्यों न बना लिया जाय. उस आदिम जिज्ञासा से आगे बढ़ते हुए यह उस महिमा तक पहुंचा था, जिसमें यह लोकतंत्र का चौथा पाया बन गया था. बड़ी खबरें जो अपराध की दुनिया का पड़ताल करके कहानियां गढ़ती हैं, जो अंडरवर्ल्ड को सबसे महत्वपूर्ण वर्ल्ड बनाने का काम कर रही है और धनकुबेर बनने की होड़ में अंडरवर्ल्ड के नुस्खोंं पर काम कर रही हैं, उन छोटी खबरों को हजम कर गई हैं जो सभ्य समाज की चिन्ताओं और सरोकारों का संसार से जुड़ी थीं । मुझे यह जान कर पीड़ा हुई कि मेरा दोस्त ‘बड़ी’ खबरों की तलाश में रहता है।
– तुम यह क्यों भूल जाते हो कि इन ‘बड़ी’ खबरों को लोकप्रिय बनाने में तुम लोगों की भूमिका सबसे अधिक है और वह भी इसलिए कि ‘छोटी’ खबरों को जिनमें आम जनों की समस्याओं और विचारों का पता चलता है, तुम स्वयं देखना नहीं चाहते. उनका सामना नहीं करना चाहते. जो उनसे रू-ब-रू होना चाहते हैं, संतुलन की अपेक्षा करते हैं उनका उपहास करते हो. कारण यह कि तुम यथास्थितिवादी बन गए हो और उस दुनिया में कोई फेर बदल करने का न तो तुम्हारे पास कोई कार्यक्रम है, न इरादा, न उसकी तुम्हें जरूरत है। तुम लोग स्वयं अंडरवर्ल्डत के हथकंडे अपना कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए अपराधों और भटकावों का नया दर्शन गढ़ रहे जो जो तुमसे पैदा हो कर मीडिया तक खत्म हो जाता है, जो बड़ी खबरों का सबसे मजबूत पाया बन चुकी है और इसके कारण ही वह पाया जो कभी सत्ता को उन सूचनाओं और विचारों और भावी योजनाओं और उनकी कमियों को प्रकाश में लाते हुए, सच कहो तो एक जरूरी और अधिक लोकतांत्रिक तीसरे सदन की भूमिका निभाता था, आज वह इन बड़ी खबरों, उत्तेजक विचारों, खबरों को जुए के पासों की तरह घुमा कर फेंकने के कारनामों के कारण उस क्षरण पर, इतनी जल्दी, पहुंच गया कि लगता है, यह पाया हो कर भी है नहीं। यह अपना औचित्य खो चुका है, भुरभुरा हो चुका है और इसमें तुम्हारी सक्रिय भूमिका रही है। तुम तेवर शहीदों का अपनाते हो और हाथ कमीनों से मिलाते हो और रोब उन पर गांठते हो जो इस नाटकीयता को सभ्य जीवन के लिए जरूरी नहीं मानते, गो गलतियां वे भी करते हैं। यह समाचार तो तुम्हारे लिए खास था, क्योंकि इसके वायरल होने के पीछे जो सबसे बड़ा कारण था वह यह कि अपने ही बड़े और बुजुर्ग भाई को पीटने वाला यह व्यक्ति भाजपा का नेता है। कम से कम भाजपा में उसकी गहरी पैठ है। यह वह दल है जो पारिवारिक और पारम्परिक नैतिक मूल्यों की दुहाई देता रहता है। यह बताता फिरता है कि हमारे पारंपरिक मूल्यों के ह्रास के कारण ही वर्तमान समाज की विकृतियां पैदा हुई हैं। तुमको ऐसी खबरों की कितनी तलाश रहती है और मैं तुम्हारी कितनी चिन्ता करता हूं यह तो इस बात से ही प्रकट है कि मैं चाहता था कि तुम इसे देखो, और हो सके तो भाजपा के खिलाफ इसका इस्तेमाल भी करो।
– मैं तो ऐसा कर लूंगा, पर तुम क्याा करोगे। उनके वकील बन कर उनके विरोध में काम कर रहे हो, पेशे की नैतिकता को भी भूल गए।
– मैं बताउूंगा कि देखो, ये इतने गिरे हुए लोग हैं कि खुद ही जिस प्रवृत्ति और पर्यावरण के जनक हैं उसका उत्तरदायित्व तक नहीं ले सकते, परन्तु यदि कोई दूसरा सुझा दे तो उसको लुटेरों की तरह अपनी झोली में भर कर बांटते हुए अपने कुकर्म को छिपाएंगे। अरे भई, मैंने कल की उस समस्या को केन्द्र में लाने के लिए इसे दृष्टांत के रूप में पेश किया था और तुमको इस बहाने भी अपनी राजनीति की याद आ गई। उूंचे तेवर और घटिया गंठजोड! दुर्भाग्य तुम्हारा यह कि पब्लिक है सब जानती है के सूत्र के आगे तुम्हारी कलई खुल जाती है। समझ लो, मैं फीस लेने वाले वकीलों में नहीं हूं जो जजों को घूस देने की योग्याता रखते हैं और अपने पेशे की नैतिकता को नीलाम करते हुए इतने धनी और ताकतवर और अदालतों से अपने रसूख के कारण इतने अपराजेय हो जाते हैं कि उनके झूठ को झूठ, उनके कमीनेपन को कमीनापन कहना परिभाषाओं के जंगल में खो जाता है।
– इस घटना का उस मनोवृत्ति से क्या संबंध जिसका विस्तार हो रहा है और जिसको लेकर मैं चिन्तित था। क्या तुमको नहीं लगता कि यह उपभोक्तावाद का, जो पूंजीवाद का घृणित औजार है, परिणाम है।
– तुम गलत कभी होते नहीं, सिर्फ अधूरे रह जाते हो। समग्र को जानना और देखना तो तत्वादर्शी के लिए भी असंभव है, परन्तु संभव पहलुओं को जानना, उनका ध्यान रखना और इसके बाद किसी निर्णय पर पहुंचना हमारे लिए अधिक जरूरी है। कल की समस्यां को यदि तुम चाहो तो इस सिरे से भी समझने का प्रयत्न कर सकते हैं, और उस सिरे से भी जहां मैंने कहा था कि अपनी त्रासदी के लिए मेरे मित्र भी जिम्मेदार थे, परन्तु यदि वह चाहते भी तो होना वही था जो हुआ जो कि नियतिवाद का रूप ले लेता है। तुम बताओ तुम उस समस्या को समझना चाहते हो या राजनीति करना चाहते हो। यदि चाहते हो तो भाई को पीटने वाले भाजपाई के सिरे से समझना चाहते हो या अपनी ही लाड़ली संतान के द्वारा अपने ही घर से निकाले गए पिता के सिरे से, या साम्यावाद की विफलता और पूंजीवादी उपभोक्ताावादी नैतिकता के सिरे से। मैं सभी के लिए तैयार हूं, पर इस शर्त के साथ कि तुम उसकी पूरी पड़ताल करने के बाद अपना फैसला करो।
– मजा आ गया, यार। मैंने अपने गांव जवार के पहलवानों को लंगोटा पहने, अपना जांघिया फहराते, पूरे उपस्थित दर्शक समुदाय को प्रतीकात्मक रूप में ललकारते कि है कोई माई का लाल जो मेरा मुकाबला कर सके, देखा तो था, पर इसे जहालत से जोड़ता था। आज देखा कि जाहिलों के बीच भी बौद्धिक स्तरभेद है और तुम पढ़े लिखे जाहिलों के शिरमौर दिखाई देते हो। (आगे जारी)