Post – 2016-05-11

बड़ी खबर के छोटे पहलू

उसका कल का फिकरा मेरी जहन मे कांटे की तरह चुभा हुआ था, इसलिए जब सामना हुआ तो उस पर बरस पड़ा – जहालत का भूगोल नहीं होता, उसका दौर होता है. समझदार से समझदार आदमी कई बार जाहिलों जैसी बात करता है! जब वह अपनी समझ से चतुराई कर रहा होता है और किसी सवाल का सामना न कर पाने की स्थिति में दूसरे को ही जाहिल सिद्ध करना आरंभ कर देता है तो वह जाहिलों की उस टोली में पहुंच जाता है जिसके तन पर लंगोट तक नहीं रह जाती! मैं अहंकार वश किसी भी सिरे से बहस करने का निमन्त्रण नहीं दे रहा था, बल्कि यह कह रहा था कि जब तुम व्यक्ति को दोशी मानते हो, उन परिस्थितियों पर ध्यान नहीं देते जिनमें वही आदमी कमीनेपन से लेकर बुलन्दी के सिरों के बीच विचित्र व्यवहार करता है तो तुम मार्क्सवादी या भौतिकवादी रह ही नहीं जाते। जब तुम यह नहीं देखते कि अर्थशास्त्र हमारे जीवन, कार्य, व्यवहार और नैतिकता में कितनी निर्णायक भूमिका निभाता है तो तुम मार्क्सवादी के रूप में विचार नहीं कर रहे होते हो! यह समझ तुममें है पर राजनीतिक टुच्चेपन के कारण तुम इसे दरकिनार ही नहीं कर देते, किसी के याद दिलाने पर भी ध्यान नहीं देना चाहते! नैतिकता भी निरपेक्ष नहीं होती!

-यह तुम किसे उपदेश दे रहे हो, यह भी पता है! मार्क्सवाद का ककहरा यहीं से शुरू होता है, यह भी नहीं जानते!

– जानता हूं! यह भी जानता हूं कि जिन मार्क्सवादियों से तुम्हारी यारी है वे ककहरा सीखने के बाद अपना ककहरा ही भूल जाते हैं! वह उन्हें पिछड़ापन प्रतीत होता है! अपनी जमीन पर और अपने पांवों पर भरोसा करना तक यथास्थितिवाद लगता है और इसलिए जमीन से परिचित होने के लिए उन्हें धूल तक विदेषों से मंगानी पड़ती है! पहले इसका आयात रूस से होता था, अब अमेरिका से होने लगा है! पर मैं तुम्हें यह बताना चाहता था कि मैं अपने मित्र को जानता हूं, उसके पुत्र को बचपन में कभी देखा था पर उसकी शक्ल तक याद नहीं! यह अवश्य देखा था कि उसकी बहनों को इतनी प्रतीक्षा के बाद एक भाई मिला था और वे उस पर जान निछावर करती रहती थीं। माता पिता तो दूसरी पुत्री के बाद से ही पुत्रेष्टि पर जुटे हुए थे] इसलिए उनके लाड़ के बारे में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं!

-तुम्हारे मित्र के साथ क्या बीती यह तुम्हारी चिन्ता का विषय भले हो, आजकल जो कुछ देखने में आ रहा है उसमें क्या कुछ संभव नहीं है! जानते हो मेरे पड़ोस में एक किरायेदार रहता था! पिता पुत्र और पुत्रबधू। बाप शायद दर्जी का काम करता था! दुबला पतला बहुत निरीह सा बूढ़ा ! बहू का बहुत खयाल रखता था! लड़का भी देखने में उसी का पुत्र और उसी के कदकाठी और स्वभाव का लगता था! उसका कोई मकान रहा होगा जिसे बेच कर उसने हमारी कालोनी में मकान लेने का प्रबन्ध किया होगा! लड़के की नजर उस बिके हुए मकान के पैसे पर थी! मेरे मकान से सटा प्लाट खाली था और उससे अगला मकान उसका! मार्क्सवादी अपने को भले कहूं पर शिक्षा, संस्कार और समाज से जुड़े स्तरभेद चेतना में तो रहते ही है, इसलिए कभी उससे राम-राम भी नहीं हुआ, लाल सलाम क्या होता! एक दिन देखा उसके घर पर बर्फ की सिल्लियां आ रहीं हैं! मैंने सोचा कोई ऐसा व्यापार कर रहा होगा जिसमें इसकी जरूरत पड़ती है! तीन चार दिनों तक बर्फ की सिल्लियों का आना जारी रहा फिर एक दिन जब हम छत पर सो रहे थे तो इतनी सड़ाध कि हमारी नींद टूट गई ! उठ कर इधर उधर देखने का प्रयत्न किया और जब कुछ न मिला तो लौट कर सो गए! तीन दिन बाद पुलिस उस लड़के को तलाशती घूम रही थी और तब पता चला कि लड़के ने अपने बाप की, गला दबा कर, हत्या कर दी थी और जब वह पकड़ा गया तो पता चला कि उसने किसी कहासुनी में उसके टेंटुए पर हाथ लगा दिया था और टेंटुआ कुछ अधिक दब गया था. इसलिए उसने घबराहट में उसे घर में ही छिपा रखा था और सही अवसर की तलाश में गर्मी के दिनों में लाश को सड़ने से बचाने के लिए बर्फ की सिल्लियां मंगाई जा रही थीं और जब घर के भीतर भी असह्य हो गया तो आधीरात को उन्होंने लाश को बाहर निकाला और उसकी दुर्गन्ध ने हमें बेचैन कर दिया था! तुम्हारा ज्ञान और अनुभव दोनों कम है इसलिए तुम जिसे जानते हो उसे दुहराते रहते हो! यह भी नहीं समझते कि ऐसी घटनाएं इतने बड़े पैमाने पर घटने लगी हैं कि उनकी नवीनता भी बासी लगती है और उस पर कोई ध्यान नहीं देता!

– यही तो समस्या है! तुम नवीनता और सनसनी को पसन्द करते हो, समस्याओं का ढिढोरा पीटते हो, उनसे टकराने का साहस नहीं, महत्व राजनीतिक शगल को देते हो समस्या को नहीं! यदि यह इतने बड़े पैमाने पर घटित होने लगा कि इसकी सनसनी तक खत्म हो गई है तो समझो यह समस्या बन चुकी है! सनसनी का खात्मा समस्या की उग्रता और व्याधि बन जाने का प्रमाण है! और खबर बना और बेच कर मालामाल होने वाले जहां से ऐसी खबरों की उपेक्षा करना आरंभ करते हैं, वहां से सरकारों का काम आरंभ होता है! तुम समझ रहे हो मैं क्या कह रहा हूं! अगर मैं जौक की इबारत को कुछ बदल कर पेश करूं तो ‘मजा कहने का जब है एक कहे और दूसरा समझे, जो तुम कहते हो उसको तुम न समझो ना खुदा समझे!

– मैं पहले से जानता था, न तुम समझोगे, न तुम्हारे भीतर समझने की ताकत बची है! तुम्हें जो समझ में नहीं आ रहा है उसका कारण भी मुझे ही समझना होगा! देखो, तुम दौर का अर्थ ले रहे हो समय का बीतना और उसके बाद दूसरी कालावधि का आना! यह सही था या गलत, परन्तु हमारे यहां रैखिक काल या समय के बाण की जगह कालचक्र या युगचक्र की अवधारणा रही है जिसमें काल के आगे बढ़ने के बाद भी कोई समाज नीचे जा सकता है और उसे अपने को समझने और आगे बढ़ने के लिए नए जीवट का सहारा लेना होगा जो चरम निम्नता पर लगभग चुक सी जाती है इसलिए अपने उन्नत अतीत पर गर्व करने वाली सभ्यताएं आत्मसम्मोहित होने के कारण अपने को, अपने भविष्य को, जान ही नहीं—

– वर्तमान को जानना क्या अधिक जरूरी नहीं है कि उसे पूरी तरह समझे बिना भविष्य के नियतिवाद में या अतीत के यातनावाद में से किसी एक का चुनाव करने को बाध्य हों! आप को यह जानना चाहिए कि आप किस दुनिया में रहते हैं और यह भी कि उससे बाहर निकलने का रास्ता आपको मालूम है या मेरी मदद की जरूरत होगी!