Post – 2016-04-13

ज्ञान और समझ

‘’क्याे तुमने कभी इस बात पर गौर किया कि तुम्हारे भीतर एक दुचित्तापन है, जिसे तुम्हारे शब्दों में कहूँ तो तुम भग्नमनस्कता के रोगी हो और इसलिए तुम्हें अंतर्विरोधी बातें करने की आदत है । पहले बड़े प्रयत्न से आशावादी जमीन तैयार करते हो, और फिर जब जमीन तैयार हो जाती है तो निराशावादी तेवर अपना लेते हो । कहते हो इतिहास की मांग है इसलिए अमुक घटना या परिणति को रोका नहीं जा सकता और फिर कहते हो लेकिन टाला जा सकता है। उसे सफल करने के लिए जिस उपक्रम की आवश्यकता है, जिस तेजस्विता की जरूरत है, हमारे समाज में उसका अभाव है। अस्पृश्यता पर हो, भाषा पर हो सभी विषयों पर तुम्हारा यही तेवर रहा है और अब दलित समस्या पर तुम वही लाइन लेने जा रहे हो।‘’

‘’यदि तुम्हें ऐसा लगता है तो मेरे कथन में जरूर कहीं कसर रह गई है। या संभव है तुम्हारी समझ में अधकचरापन बना रह गया हो। जिसे तुम द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया कहते हो, उसे तुम्हारी इस समझ से भग्नमनस्कता का प्रमाण माना जा सकता है। तर्क के बाद उसकी वितर्क से जॉंच को भी इसी कोटि में गिना जा सकता है। तुमको अन्तर्विरोध और विरोधाभास का फर्क भी नहीं मालूम। विज्ञान और जादू टोने का अन्तर भी नहीं मालूम और सच मानें तो तुम ही नहीं, भारतीय कम्युमनिस्टों की पूरी जमात विज्ञान पर कम और जादू-टोने पर अधिक विश्वस करती है।

‘ ’तुम्हें यह क्यों भूल जाता है कि धुंधकारी विचारों, पुराणों और कथाओं को इतिहास बना कर पेश करने वालों के विरोध में यदि आज भी कोई खड़ा होता है या हो सकता है तो भारतीय कम्युनिस्ट। तुम मुझे विज्ञान और जादू टोने का फर्क समझाओगे? है इतनी योग्यता ?

मैं हैरान। बात विनोद चर्चा से विषाद गाथा की ओर बढ़ रही थी, वह अपने स्वभाव के विपरीत तैश में आने लगा था।

मैंने मुस्कराते हुए कहा, ‘मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ। मैं तुम्हेंं कुछ नहीं समझा सकता। जो ज्ञान की पूर्णारावस्था में पहुँच चुके होते हैं जहॉं उनके लिए अज्ञेय कुछ रह ही नहीं जाता उनके लिए मुहावरा चलता है कि उन्हेंं ब्रह्मा भी नहीं समझा सकते। मैं केवल उन्हें समझा सकता हूँ जो समझना चाहते और गलत होने की दशा में अपनी गलतियॉं स्वीकार करना और भविष्य में उनसे बचना चाहते हैं। इनमें से किसी का कोई लक्षण मैंने भारतीय कम्युानिस्ट पार्टियों में देखा नहीं, फिर अपनी नादानी को तो स्वीोकार करना ही होगा कि समझाने चला भी तो यह समझे बिना कि अगले में समझ बची भी है या नहीं। तुम और कुछ जानते हो या नहीं, पर इतना अवश्यक जानते हो कि तुम भारतीय समाज के सबसे भले लोगों में गिने जाते हो और बाकी का रहस्य ‘जिनहिं न ब्यापै जगत गति’ से पूरी हो जाती है।‘

इस तमाचे के बाद उसका तेवर बदल गया। वह सम पर आ गया । बोला, ‘देखो बहस का तो कोई अन्त नहीं पर क्या तुम भी मानते हो कि हमारी सोच वैज्ञानिक नहीं है और वे जो धुंधकारी समाजशास्त्र और ज्ञानशास्त्र भारतीय समाज पर लाद रहे हैं वे वैज्ञानिक हैं?’

‘क्या तुम मुझ पर यह आदेश लादना चाहते हो कि दो मूर्खों में अधिक समझदार कौन है यह तय करूँ और उनमें से ही किसी एक का अनुसरण करूँ या सही समझ क्या होती है इसका भी विकल्प खुला रखना चाहते हो? यदि नहीं तो मैं तुमसे बात करूँ भी तो व्यर्थ होगा। यदि हॉं, तो पहले यह समझ लो कि विश्‍वास, ज्ञान और विज्ञान में क्या अन्तर है?’

‘यह अन्तर भी अब तुम्हीं बताओ।‘

‘बताता हूँ। पहले किसी नाले को देख कर आओ और फिर इस पर विचार करने के बाद मेरे पास आओ कि पवित्रता में मलिनता का प्रवेश कैसे होता है और फिर किसी विशेषज्ञ से परामर्श करके आओ कि मलिनता का निवारण करने की युक्तियॉ अपना कर हम क्या उसी तर्क से गटर को गंगा नहीं बना सकते जिससे गंगा को गन्दा नाला बनाया था।’

‘मान गया यार, अब आगे भी तो कुछ बोल।‘

बोलता हूँ । बोलो, फॅस जाओगे तो बीच से मैं उठने न दूंगा।‘

‘विचार न हुआ जुए का खेल हो गया। चलो उसका भी एक नियम है। किसी ने कहा है बदहवासी के भी अपने तौर तरीके होते है। पहले यह समझो कि विज्ञान में सभी संबंधित पक्षों को ध्‍यान में रख कर कोई नतीजा निकाला जाता है और उसके बाद भी कहीं कोई चूक हो सकती है, यह भी स्‍वीकार किया जाता है इसलिए वैज्ञानिक चिन्‍तन में आंकड़ों और घटकों की परिशुद्धता का ध्‍यान रखा जाता कि किसी में किसी तरह की घालमेल हुई तो परिणाम गलत होंगे। इसे मैं पहले भी समझा चुका हूँ। जादू टोना करने वाले अचूक होने का दावा करते हैं जब कि उनका आरंभ से अंत तक सबकुछ गड़बड़ होता है। जब मैं तुम लोगो को अवैज्ञानिक कहता हूँ तो इसका यह मतलब नहीं कि जिन्‍हें तुम अवैज्ञानिक कहते हो उन्‍हें वैज्ञानिक सोच का मान लेता हूू, बल्कि यह कि उनकी सोच और कार्यविधि में कुछ प्रतिशत का फर्क हो सकता है परन्‍तु तात्विक भेद नहीं है। घपला तुम उनसे अधिक करते हो। इस पर हम आगे उदाहरण देते हुए बात करेंगे। अभी तो इतना ही समझ लो कि यदि मेरे निष्‍कर्ष में आकाशपतित वाली निश्चितता नहीं है तो यह भी मेरी सोच के वैज्ञानिक होने का प्रमाण है।’