विषयान्तर
‘’तुम लेखक हो, तुम भी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रंता का विरोध करते हो?’’
’’यह भ्रम तुम्हें कैसे हो गया?’’
‘’कल तुमने फेस बुक पर अनुपम खेर के भावोद्गार का समर्थन किया था या नहीं?’’
’’अरे यार, छोड़ो उस बात को । हम हिन्दी के भविष्य पर बात करलें, उसके बाद मैं अपनी तारीफ भी सुन लूँगा। अभी उधर मुड़ेंगे तो विषयान्तर होगा। वैसे मैं अपने नाम के कारण अपनी महिमा का इस हद तक कायल हूँ कि कोई दूसरा तारीफ करे तो घबरा जाता हूँ। सोचता हूँ, इतना तो मैं खुद ही चढ़ा चुका था, इसने इतना बिना पूछे जॉंचे उड़ेल दिया। पॉंवों के लड़खड़ाने का इन्तजाम कर चुका था, दिमाग को डगमगाने का काम मेरे हितैषी कर रहे हैं।
’’अजीब घामड़ आदमी हो। मैं तुम्हारी तारीफ की बात नहीं कर रहा था। उस समर्थन की बात कर रहा था, जो तुमने अनुपम खेर को दिया।‘’
’सिर्फ इतनी बात तुम्हारी समझ में आई और यह समझ में नहीं आया कि अनुपम मेरे ही विचारों को दुहरा रहा था, और मैं अपने ही विचारों का समर्थन कर रहा था।‘’
वह अकबकाया हुआ मेरा मुँह देखने लगा। बोला भी, ‘’कह क्या रहे हो।‘’
’’तुमसे जो बातें करता हूँ उन्हें गटक तो जाते हो पर पचा नहीं पाते इसलिए फिराक साहब की शब्दावली में पश्चात्तााप करते हो पर समझ में कोई सुधार नहीं आता। अनुपम खेर मेरे बहुत पहले कहे वाक्यों को दुहरा रहा था और जरूरी नहीं कि मेरे विचारों को पढ़ कर ऐसा कर रहा था, पर उसने जिस निडरता से जिस आत्मविश्वांस से जस्टिस गांगुली को किनारे डालते हुए अपनी बात पूरी की वह तो मेरे वश का था ही नहीं, मैं उसका विरोध कैसे कर सकता था।
‘ऐक्ट र चिन्ततक नहीं होता, फिर भी वह विचारों को अपने आवेग भरे शब्दों, आविष्ट तेवरों और अंगचेष्टाओं और आलापों द्वारा मूर्त कर देता है। संचार के क्षेत्र में जहॉं विचार लुप्तं हो चुके हैं, विचारक भेड़ों और मुर्गो और सॉड़ों के दंगल के बीच अपने पक्ष के प्रति समर्मण से आगे की सारीमान्य ताऍं भूल चुके हैं, किसी संचार माध्य म पर पहुँचने से पहल आप को पता होता है इसे किसने खरीद रखा है, इसका मालिक किसका एहसान चुका रहा है और वह विचार के मंचन में किन को बुला कर क्या सिद्ध करके नमक अदा करेगा, वह किस घटना को कितनी बार किन कोणों से दिखाता रहेगा, और किनको गुल कर जाएगा, यहॉं तक कि कुछ लोगों को यह भी पता होता है कि कितना और खाने को मिलने पर किस बहाने वह कब पलटी मारेगा, वहॉं जब कोई व्यक्ति अपनी बात तर्क और प्रमाण और आवेश से कहे तो लगता है इस सच को इस तरह ही उजागर किया जा सकता था कि दबाने वालों के पैंतरे बेकार हो जायँ।”
”’तुम्हे यह नहीं मालूम कि उसकी पत्नी बीजेपी की सांसद है, और उसने खुद ही बताया कि उसे राजकीय सम्मान भी मिल चुका है?’’
’’मुझे पता है, पर तुम्हें पता नहीं है कि कितनी त्रासदी भोगने के बाद उसने अपना निर्णय किया होगा और कितने पापियों को वैतरणी पार कराने के प्रसास मे हमारे ज्ञानी-ध्यानी और मुकुटधारी विद्वान अपनी साख तक मिटा चुके हैं।
‘’राज सत्ता के सामने, उसे झुकाने वाली, एक विचार सत्ता होती है जिसके स्वामी बौद्धिक जन होते हैं। इस सत्ता का लंबा इतिहास है जिसमें अकेला एक तेजस्वी राजदरबार के कोप को चुनौती देता हुआ कह सकता था कि महाराज आप के राज में अन्याय हो रहा है। और महाराजों को उसके सामने झुकना पड़ता था। हमने वह विचार सत्ता खो दी है। अपमान सह कर भी अप्रिय सच को कहने का साहस खो दिया है।‘
‘’अरे यार यही काम तो वे लोग कर रहे हैं जो दमन के विरुद्ध अपने अधिकारों की मॉंग कर रहे हैं, तानाशाही के विरुद्ध छाती तान कर खड़े हो रहे हैं।‘’
’’जिस व्यवस्था में लोग छाती तान कर खड़े हो सकते है, वह तानाशाही नहीं हो सकती। तानाशाही में कानून नहीं तानाशाह की इच्छा का पालन होता है। छाती तान कर खड़े होने वाले तानाशाही में नहीं मिलते। वे दुबक जाते हैं और बुरे दिनों के बीतने की प्रतीक्षा करते हैं। उन्हें उनकी मॉदों तक से निकाल बाहर करके यातना गृहों में डाल दिया जाता है। अब तक का इतिहास यही रहा है।
इतिहास में बदलाव आया है और आज लोग छाती तान कर मूर्खतापूर्ण बातें भी कर सकते हैं। कानून तय करेगा वे सही हैं या गलत। परन्तु अपने नारों से जनता द्वारा चुनी गई सरकार को गिराने के नारे लगाने वालों को यदि भाजपा का वश चले तो भारतरत्न दे दे क्योंकि ऐसे लोग उस क्षति की पूर्ति तो कर ही रहे है जो जोगियो, साधुनियों, और साधुओं ने ही नहीं, सत्ता सुख से वंचित अवसरवादियों ने की है, उनके मुहावरे लाख बचाव के बाद भी जिस समाज में पहुँचते हैं वहॉं लोगों की सोच बदल जाती है।‘’
’’यदि मैं कहूँ यह सब यही सोच कर भाजपा द्वारा कराया जा रहा है तो?’’
‘’मैं कहूँगा तुम उन गधों को समझदार समझते हो और उनका साथ देते हो जो यह तक नहीं जानते कि उनके बड़बोले बच्चे जिन्हें उन्हों ने सिखा पढ़ा कर तैयार किया वे उनका बेड़ा गर्क करने का काम कर रहे है और मोदी की तरह चुप रह कर अपनी खीझ भी नहीं छिपाना जानते। सोचो ऐसे मनबढ़ों को देश को सौंप कर कोई निश्चिन्त हो सकता है । ये सभी मिल कर यह सिद्ध करने पर उतारू हैं कि इस देश की रक्षा और विकास की चिन्ता् केवल भाजपा को है, भले वह तुम्हारी मूर्खता के कारण ही हो।‘’