हिन्दी का भविष्य (8)
‘’आज तो तुम्हें दम मारने की भी फुर्सत न होगी, सुना अपनी किताब की अनुक्रमणी तैयार कर रहे हो। बैठूँ या किसी दूसरी मंडली का सहारा लूँ।‘’
’’बैठो । जो काम करता है उसे समय का कभी अभाव नहीं होता। उस कसे हुए समय में से दूसरों के लिए भी समय निकाल लेता है! जो आलसी और ऐयाश होते हैं वे कुछ नहीं करते फिर भी उन्हें किसी न किसी तरह दम मारो दम से ही फुर्सत नहीं मिलती। जो लोग काम करना नहीं जानते वे भी अपना बहुत समय तरीके ढूढ़ने में बर्वाद कर देते हैं। तुम जानते हो जब दूसरे सभी नेताओं को सॉंस लेने की फुर्सत न होती थी, एक गांधी ऐसे थे जिनके पास समय ही समय था। इतने सारे लोगों और सरोकारों के लिए, यहॉं तक कि बकरी की महरहम पट्टी तक के लिए, कोढि़यों और अपाहिजो तक के लिए, बच्चों और अनपढ़ों को रहने का सलीका, स्वस्थ जीवन जीन का तरीका सिखाने के लिए, अपना सारा काम करने के बाद सूत कातने और भविष्य की योजनाऍं बनाने के लिए समय निकाल लिया करते थे और इन्हीं को करते हुए उन्हें उन सवालों के भी जवाब मिल जाया करते थे जिनको ले कर माथापच्चीं करने वाले दूसरे नेता सारे पसीने पसीने हो जाते थे पर खाली हाथ रह जाते थे।
”मेरे पास समय का कभी अभाव नहीं होता, पर तुम्हें ध्यान से सुनने तक की फुर्सत नहीं मिलती। आधे मन से सुनते हो और सुनने के साथ ही भूल जाते हो। समय बर्वाद होता है, कुछ हाथ नहीं आता।”
’’अरे यार, मैंने तो मजाक किया था, तुम इतने सीरियस हो गए और इसी बहाने अपने को गांधी जी के बराबर का दर्जा भी दे दिया। विनम्रता की हद है।‘’
’’ यह बताओ, तुम तो कम्युनिस्ट हो, तुमने अप्टन सिन्क्लेयर का उपन्यास ‘दि जंगल’ पढ़ा है ? जरूर पढ़ा होगा। उसका एक चरित्र है ग्रिगोरी। याद है ? याद न सही, पर यह जरूर पता होगा कि पेशीय बल का स्थान यन्त्रबल ने लिया तो मनुष्य की पीड़ा कम न हुई, अन्याय और सह्य उत्पीाड़न की मर्मान्तोक सचाइयॉं सामने आने लगीं। बच्चा सस्ते मोल मिल जाएगा, वटन ही तो दबाना है, इसके लिए युवाओं को लगाने की क्या आवश्यकता, और वे बालक जब तक जवान होते थे, उन्हें काम से निकाल दिया जाता था, और वे अपने ही बालकों के अवलंबी बने जीने को बाध्य होते थे। उनसे सोलह घंटे काम लिया जाता था। ग्रिगोरी को एक लड़की से प्यार हो जाता है। वे दोनों शादी करना चाहते हैं और इसके लिए कुछ दावत और मेहमानबाजी में खर्च की भी जरूरत होती है। पैसा है नहीं। ग्रिगरी सुझाता है, कर्ज ले लेंगे। प्रेमिका कहती है, कर्ज ले तो लेंगे, पर चुकाएंगे कैसे ? वह कहता है, ‘ओवरटाइम कर लेंगे।‘ तुम जानते हो, सोलह घंटे खटने के बाद भी अपने प्रेम के लिए ओवरटाइम करने वाला यह चरित्र आज से ठीक अड़तालीस वर्ष पहले जब मैंने यह उपन्याेस पढ़ा था, तब से मेरा ज्योतिस्तम्भ रहा है। गांधी की याद तो अभी अकस्मात आगई। उस उपन्यानस में मुझे इससे अलग कुछ दिखाई ही न दिया। अप्टन सिन्लेकसलेयर को आगे पढ़ने की जरूरत तक न हुई।
’यह बताओ, तुम्हें आजादी से इतना डर क्यों लगता है । तुम कल अनुपम का समर्थन कर रहे थे।‘’
’मैं आजादी का नहीं, मनचलेपन का विरोध कर रहा था। एक व्याधि का विरोध कर रहा था। आजादी व्याधि नहीं है पर नशे का कारोबार करने वाले इसको एक नशे में बदल सकते हैं और बदल रहे हैं। मैं उसका विरोध करता हूँ। तुम जानते हो इस शब्द का अर्थ क्या है!’’
’’हद करते हो यार! यह भी कोई सवाल हुआ। तुम नहीं जानते हो तो कोई कोश उठा कर देख लेना। मैं नहीं बताउूँगा।‘’
’’देखो, शब्दोंँ का अर्थ कोश में नहीं होता। शब्दों का काम चलाउू परिचय ही कोश से मिलता ह। हाल यह है कि वह अर्थ हर जगह लागू नहीं होता। जब एक लड़की लाड़ से इतराती हुई अपनी सहेली को खसमा खॉंणी कहती है तो इनमें से किसी शब्द का वह अर्थ नहीं होता जो तुम्हें किताब में मिलेगा। इसका अर्थ होता है अगाध आत्मीयता और प्यार और यह अर्थ तभी तक है जब तक दोनों कुँमारियॉं है। व्याह होने के बाद यदि यही वाक्य कहा गया तो वह पत्थ र से उसका सिर तोड़ देगी। व्याहता हो गई और सहेली कुमारी रह गई तो उसके मुँह से यह वाक्य निकलेगा ही नहीं। अब वह इसके जिस अर्थ से परिचित हो चुकी है वह इतना विषादयुक्त है कि उसकी कल्पना से भी सिहर जाएगी। और अब उस अनव्याही लड़की के लिए प्रकारान्तर से यह व्यंवग्य भी बन जाएगा, देख मेरा ब्याह हो गया तू अभी कुँवारी बैठी है। इस देश में शब्दों के अर्थ पर, भाषा पर जितना गहन चिन्तन हुआ है और इसकी चेतना अनपढ़ों तक मे इतनी समृद्ध है जिसकी तुम कल्प ना भी नहीं कर सकते। और इसके बाद भी पढ़े लिखों तक को बोलने की तमीज नहीं।
‘हमारे दार्शनिक कहते हैं, किसी शब्द का सन्द र्भ निरपेक्ष अर्थ व्यवहार में कोई अर्थ नहीं रखता। यह उस पूरे कथन और सन्दंर्भ में निहित होता है। ये सन्दर्भ है, किसने कहा, कब कहा, किससे कहा, कैसे कहा, क्यों कहा और किन शब्दों में कहा। अब तुम उसी आजादी का अर्थ पागलपन कर सकते हो, मनमौज कर सकते हो, उपद्रव कर सकते हो, और देशद्रोह भी कर सकते हो, यदि यह आवाज ऐसी पृष्ठ भूमि में लगाई गई तो । शब्द का एक इतिहास भी होता है और एक माहौल भी होता है जिससे उसका अर्थ निर्धारित होता है। आजादी शब्द का निकट इतिहास यह है कि यह नारे के रूप में कश्मीर में उन लोगों के द्वारा लगाया जाता रहा है जो अलगाववाद के लिए पाकिस्ताान से पैसा पाते रहे हैं। यह शब्द भारतीय कूटनीतिक अपरिपक्वता के कारण इसलिए भी बहुत लोकप्रिय रहा है कि एक उत्तरदायी व्यक्ति ने बताया था कि उन उपद्रवी तत्वों को चुप रहने के लिए भी रकम सेना द्वारा दिया जाता रहा है। अब रकम बढ़ानी होगी तो नारे लगेंगे ही। आजादी जो एक सार्थक शब्द था अब नारे के रूप में वहीं से फैल रहा है। ये इतने सारे लोग, एक साथ बिना किसी उत्ते जना के, स्वयं उदद्रवकारी आयोजन करके, आजादी की पुकार करने लगें तो इसका अर्थ मुझे बताने की जरूरत नहीं रह जाती।
यह हैरानी की बात है कि इतने सारे लोग एक साथ इनकी पैरवी में आ गए हैं जो यह जानते हुए भी कि जाट उपद्रव आन्दोलन नहीं था, इसी योजना का हिस्सा था क्याेंकि इसका कोई नेता नहीं था, मॉंग की कोई अपरिहार्यता न थी, इसे भड़काया गया था और भड़काने वाली कांग्रेस रही है जिसके सबूत उनके पास मिले, इतने जघन्य और अमानवीय घटना पर चुप है, क्योंकि ये नसी कांग्रेस से लाभान्वित रहे हैं ओर इसलिए उसके साथ रहे हैं। इतनी ताबड़तोड़ बहस या मीडिया में हंगामा एक मूर्ख को निर्दोष सिद्ध करने के लिए जो आवेश में नहीं जानता कि उसका और उस जैसों का शातिर लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा हैा इतने सारे आला दर्जे के लोग इसे निर्दोष सिद्ध करने की आड़ में उस भयंकर षड्यन्त्र को और उन नारों को उचित ठहराने के लिए बौद्धिक व्या्याम कर रहे हैं। ये कौन लोग है। क्या ये 14 के चुनाव के फैसले आने से पहले ही देश छोड़ने, मोदी को किसी कीमत पर सहन न करने की बात नहीं कर रहे थे। क्या उनकी असुरक्षा उसी अनुपात में बढ़ती नहीं गई है जिस अनुपात में अपनी कूटनीतिक परिपक्वता द्वारा इस व्यक्ति ने अपने घर के दुश्मनों से ले कर बाहर के दुश्मनों तक की उपेक्षा करते हुए लगातार और बिना किसी चूक के शब्दों और कार्यों द्वारा यह दिखाने और लोगों का विश्वाेस जीतने में सफलता पाई है कि वह सबको साथ ले कर विकास की दिशा में चलना चाहता है। ’’
”तुम आवेश में आ गए हो। हो सकता है इस समय मोदीनामा का लेखक बोल रहा हो, पर इतना तुम जानते हो कि कोर्ट ने भी उसे देशद्रोह का दोषी नहीं पाया।‘’
’’मैं कोर्ट से भी आगे जा कर यह मानता हूँ कि वह देशद्रोहियों का शिकार है, उसके द्वारा उपयोग में लाया जा रहा है और अपने हितों के विरुद्ध इस्ते माल किया जा रहा है।‘’
”उसका अपना हित क्या है यह तो बताओ।”
” यदि उसे अपने हित का ध्यायन होता तो वह मात़ृभाषा में उच्चतम शिक्षा और चयन में मातृभाषा और केवल उसके बल पर चुने जाने, और आन्तरिक उपनिवेशवाद के विरुद्ध किसी अभियान का नायक बनता या उसका हिस्सा बनता। वह अपने बाद के बचाव वाली लफ्फाजी में जिन चीजों से आजादी की बात करता मिला उनसे आजादी दबे हुए पिछड़े हुए, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले समाज के अभ्युदय के बिना संभव नहीं और यह अभ्युदय मातृभाषा में शिक्षा के बिना असंभव है। यदि देशद्रोही तय करना हो तो सचमुच वे सभी लोग हैं जो अंग्रेजी के माध्यम से नव ब्राह्मणवाद का सृजन और विस्तार कर रहे है, देश द्रोहियों को बचाने के लिए बयान देते और बयान बदलते रहे हैं, और आज भी सत्ता से वंचित होने पर देश को, इसकी संस्थाओं को बर्वाद करने के आयोजन कर रहे हैं। इनमें वे बुद्धिजीवी भी शामिल हैं जो इन दुरभाग्यपूर्ण घटनाओं के समर्थन में दलीलें दे रहे थे और देंगे भड़काने वालों का साथ दे रहे थे। देश को इनसे मुक्ति की आजादी लड़नी है और सही नेतृत्व विकसित हुआ तो यह सही दिशा भी लेगी। यह मत भूलना कि नवब्राह्मणवाद में अपने को दलित कहने वाला एक तबका भी शामिल हो चुका है और उसके हित दबे और सताए लोगों से भिन्नस हैं।‘’
^’यह तो सही सवाल से भटकाने वाली बात हुई।‘’
’’यह एक अकेली बात है जो एक आजाद देश में आज भी आजादी और मानवीय गरिमा से वंचितों और अनगिनत खानों में बॉंट कर रखे गए और इस तरह एक जुट हो कर महाशक्ति बनने से रोके गए समाज की आन्तरिक आजादी की लड़ाई हो सकती है जो धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र, गर्हित राजनीति सभी को तोड़ती हुई पूरे देश को एक स्वतन्त्र और स्वाभिमानी देश बना सकती है और इन दीवारों को मिटा नहीं तो इतना कमजोर अवश्य कर सकती है कि व्यक्ति का मूल्यां कन उसकी योग्योता और प्रतिभा के आधार पर हो सके।‘’