मिटा दे अपनी हस्ती को अगर तू मर्तबा चाहे
बुरा तो नहीं मानोगे यदि पूछूँ सौदा कितने में पटा. हमें तो बता दो किसी दूसरे को नही बताउूँगा।
मैं उसकी चुहल का मजा लेता, मुस्कराता रहा और वह अपने जुमले की धार आजमाता रहा, ‘‘तुम ब्राह्मणों की इतनी आलोचना करते आए थे, कल तुम उनके पक्ष में भी खड़े हो गए। अब यह बताओ, अस्पृता के पातक से भी तुम उन्हें बचा सकते हो?
अस्पृश्यता को तुम पातक मानते हो?
वह एक पल को मुझे हैरान देखता रहा, फिर परेशान हो कर बोला, ‘‘मेरे सामने कह दिया, किसी और के सामने कहना मत। संज्ञेय अपराध है?
संज्ञेय अपराध तो तुमसे बात करना भी है, क्योंकि तुम हर तीसरे वाक्य में हिंसा भड़काने वाली बातें करते रहते हो, लेकिन तुमको इतना जबर्दस्त समर्थन मिला हुआ है कि कानून भी तुमको हाथ लगाने से कतराता है और प्रतीक्षा करता है, कोई कब तुम्हारे भड़कावे में आकर कुछ कर बैठे, और उसे दबोच कर यह सिद्ध करे कि देश में कानून का राज आज भी कायम है।
वह नाराज नहीं हुआ, सचमुच विस्मय में मुझे देखता रहा कि मैं कह क्या रहा हूँ और जो बात उसने मुझे छेड़ने के लिए कही थी वह सचमुच सही तो नहीं! मुझे उसकी हैरानी पर हँसी आ रही थी जिसे रोक कर उसकी इस मुद्रा को मुदित भाव से देख रहा था जिससे उसकी खीझ और बढ़ रही थी। जब लगा अनर्थ हो रहा है तो कहा, ‘‘देखो अस्पृश्य ता के दो रूप हैं। एक सार्वजनिक और दूसरा निजी। हमें अपनी निजता में कुछ भी करने से कोई रोक नहीं सकता।’’
‘‘तुम कुछ भी कर सकते हो निजता की आड़ में। अपनी पत्नी या बच्चे की हत्या तक?’’
‘‘वह तो नहीं कर सकता, पर तुम्हारी हत्या जरूर कर सकता हूँ, क्योंकि विचारों की भिन्नता के बाद भी हो तो तुम मेरे निजी मित्र। अस्पृश्यता का अर्थ नहीं समझते,चलो, छोटे दिमाग में कितना ज्ञान अटेगा, परन्तु तुम तो निजता का भी अर्थ नहीं जानते। निजता मुझ तक और केवल मुझ तक सीमित है। और मैं अपने स्व से जहाँ बाहर जाता हूँ, मेरा कोई व्यवहार जहाँ दूसरे को प्रभावित करता है, वहाँ वह सार्वजनिक हो जाता है, और यह सार्वजनिकता परिवार के भीतर तक प्रवेश पा जाती है इसलिए आप अपनी पत्नी और बच्चे के साथ भी कोई ऐसा व्यवहार नहीं कर सकते जिससे उसको आहत होना या कष्ट सहना पड़े या जिससे उसकी निजता भंग हो। फिर भी एक दायरा है जिसमें तुम उनकी निजता की भी रक्षा करते हो और उनसे हुई भूलों के लिए अपने को जिम्मेहदार भी मानते हो. मुझे तो हमारे जुवेनाइल कानून पर तरस आता है. बच्चा वयस्क नहीं है इसलिए उसे अपराधी नहीं माना जा सकता, परन्तु अपराध हुआ है और हो रहा है तो उसको रोकने के लिए दंड तो किसी को मिलना चाहिए. वह अपराध करते हुए तुम्हाारे संरक्षण में होने के कारण अपराधी नहीं है, तो तुम जिन बच्चों के वारिस हो, अपना कर्तव्य् पूरा न करने के लिए तुम्हें तो दंड मिलना चाहिए. तुम जिन संतानों की सही देख रेख नहीं कर सकते और उन्हें पैदा करके जानवर बनने के लिए जानवर की तरह छोड् देते हो, तुम्हें तो उनके अपराध के लिए दंड मिलना ही चाहिए. इस नियम को लागू करो, बच्चे को बच्चाे मान कर छोड दो पर उसके अभिभावक को उसके कुक़र्म के लिए दंडित करो तो तुम्हारी कई समस्यायें सुलझ जाएंगीण्.
तुम आदमी की आत्माा तक को मिटाकर उसे एक ऐसी बूंद बनाना चाहते हो जिसे महान योजनाओं के महासमुद्र में अपनी निजता खोने की सलाह दी जाती है और उसे भी बर्वाद कर दिया जाता है़. पहले होश में आओ फिर तुमसे बात करूंगा. हमारा कानून सार्वजनि कता से संबन्ध रखता है. तुम दोनों का भेद समझ लो फिर तुमसे बात हो पाएगी. कल सोच कर आना. और यह भी सोच कर आना कि तुम नव अध्यात्मभवादी हो या मार्क्संवादी. कल बात होगी.