Post – 2015-10-20

‘ अच्छा यह बताओ कि तुम किसी आदमी को बचाओगे या जानवर को.”
मैंने कहा “दोनों को”.
“यदि दोनों को न बचाया जा सके तो?”
“देखूँगा कौन मेरा है.”
“कोई तुम्हारा ने हो तो?”
“देखूँगा कौन संकट में है.”
“संकट का कारण आदमी हो और संकट में जानवर हो तो?”
“तो कहूँगा उसे छोड़ दो.”
“यदि वह न माने तो?”
“मेरे वश में होगा तो मैं जानवर को संकट से बचाने के लिए जो कुछ करना पड़े करूँगा, नहीं तो वहां से हट जाऊँगा.
“तुम तो पक्के जैन निकले: न हिंसा करूँगा, न करवाऊँगा, न तो उसे होते हुए देख सकूँगा. ‘न करेम, न कारवेम. करन्तम ‘पि न पस्सेम.’
“”तुम जानवर को बचाने के लिए मनुष्य पर बलप्रयोग कर सकते हो?”
“जानवर को बचाने के लिए नहीं, अंतरात्मा को बचाने के लिए.”
“कुछ समझा नहीं.”
“मैं तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ. एक बार लिंकन सूट बूट में सजे अपने क्लब जा रहे थे. रस्ते में एक गीज़र पड़ता था. तुम जानते हो, गीज़र के आसपास दलदल बन जाती है और उसमे कोई फँस गया तो बाहर निकल नहीं सकता. लिंकन ने देखा एक सूअर उसमें फँस गया है और छटपटाता हुआ निकलने की कोशिश में और फंसता जा रहा है. लिंकन ने घोड़े से उतरे पेट के बल फैल गए. सूअर की पूँछ पकड़ कर उसे बहार खींचा और फिर कीचड़ सने कपड़ों में क्लब पहुंचे तो उनकी हालत पर सवाल तो होने ही थे. उन्होंने पूरी घटना का उल्लेख किया तो सुनने वाले हंसने लगे, “आपने एक सूअर की जान बचने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी?”
“लिंकन ने जवाब दिया. सूअर को बचाने के लिए नहीं, अपनी अंतरात्मा को बचने के लिए. यदि मैं उसे उस तरह तड़पता छोड़कर चला आता तो मैं अपने को क्षमा नहीं कर सकता था.” मैं कुछ रुका परन्तु वह स्वयं कहीं खो गया था. मैंने कहा, “और सुनो., लिंकन पोर्क कहते थे.”
आज के माहौल में इस सीधी सी बात को समझना कितना कठिन है कि पशुवध और पशुवध के प्रदर्शन में अंतर है और इस अंतर का ध्यान रखा जाना चाहिए. जीवदया और जीवदया की आड़ में मनुष्य के उत्पीड़न में अंतर है और इस अंतर का सम्मान किया जाना चाहिए.”
10/20/2015 :9.45AM