“तुम क्या यह नहीं मानते कि आज की सबसे बड़ी समस्या सामाजिक सौहार्द को बनाये रखने की है?”
हम लड़ सकते हैं पर बात करने से भाग नही सकते. मैंने कहा, “क्या तुम इसे समस्या मानते हो?”
“क्यों? भई क्यों नहीं मानूँगा?”
“तब यह भी जानते होगे कि किसी समस्या पर विचार करने के लिए किन चीज़ों की ज़रूरत होती है?”
“किन चीज़ों की ज़रूरत होती है, तुम्ही बताओ.”
“एक, ठन्डे दिमाग की, उत्तेजित मन से विचार नहीं किया जा सकता, भावनाएं अवश्य भड़काई जा सकती है जो समस्या को समझने में ही बाधक होंगी. दो, सही आंकड़ों की. तीन, धैर्य की, क्योंकि तत्काल जो सूचनाएँ मिलती हैं वे सच और अफवाह के बीच होती हैं और अधूरी होती हैं. चार, कार्य-कारण- कर्ता की सही पहचान की. पांच, सही अनुपात के निर्वाह की; छह, राजनीतिक पूर्वाग्रहों से मुक्त होने की; और अंतिम है सही माहौल में विचार करने की और अपने को सही सिद्ध करने की मानवीय दुर्बलता पर काबू पाने की. क्या तुम इससे सहमत हो?”
“पूरी तरह नहीं.”
“मसलन?”
“मसलन सही माहौल और सही टाइम को खींच कर समस्या को ठन्डे बस्ते में भी डाला जा सकता है. और जो तुम राजनीतिक पूर्वाग्रहों से मुक्त होने की बात कर रहे हो उसमें उसके विषय में जो पहले से मिली जानकारियां हैं उन्हें नकारने का मतलब है सूचना और विचार के एक महत्वपूर्ण हिस्से को काटकर अलग कर देना.”
“मैं न तो विचार को स्थगित करने जा रहा हूँ, न ही किसी राजनीतिक संगठन के विषय में सही जानकारी को कम करने की बात कर रहा हूँ. मैं विचार करते समय तटस्थता के निर्वाह की बात कर रहा हूँ.”
“एक उत्तेजक स्थिति में तटस्थता का क्या मतलब? तटस्थता का एक नमूना इतहास में मिलता है. रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था. तुम्हारी स्थिति नीरो वाली है. जब आग लगी हो तो तटस्थ नही रहा जा सकता.”
मैं हंसने लगा, “अरे भाई, तू बैताल की तरह घूम फिर कर एक ही सवाल पर क्यों आजाता है. सुनो, आग लगने के समय नीरो की तरह तटस्थ हो कर बांसुरी नहीं बजाई जा सकती. उस पर पानी बालू जो हाथ लगे डालना होगा. सक्रियता के नाम पर उसपर घी या तेल या ईंधन नही डाला जा सकता. उत्तेजना को बढ़ाकर नई उत्तेजना के नही पैदा की जा सकती.”
वह कुछ बोलने को हुआ. मैंने उसकी परवाह नही की, “और सुनो, जब मैं कहा रहा था कि ” धैर्य से, उचित माहौल में ही समस्या पर विचार किया जा सकता है तो यही कह रहा था कि जब आग लगी हो तो आग लगाने के कारणों, लगाने के तरीकों, लगाने वालों पर विचार नही किया जा सकता न ही बिना पूरी पड़ताल के किसी को उसी समय दोषी बता कर एक नई आग लगा कर फैलाया और पहले ही लगी आग की और से ध्यान हटाया जा सकता है. यह नीरो के बाँसुरी बजाने से भी अधिक बड़ी नृशंशता है.”
10/16/2015 10:47:07 AM