Post – 2015-10-14

ऋग्वेद के एक अर्धर्च पर रचा एक शेर.
पद आया है अवसाना अनग्ना अर्थात ‘वस्त्र भी नही पहने है और नंगी भी नहीं है.’ एक दूसरा पद है ज्योतिर्वासाना अर्थात ‘प्रकाश का वस्त्र पहने हुए’.
मेरा शेर है
हुस्न ऐसा कि नूर बन गया है पैराहन
न तन ढका है न तो आप बेलिबास ही हैं
यह कलात्मक सौष्ठव किस सांस्कृतिक स्तर को व्यक्त करता है?