Post – 2015-10-14

मैं जानता हूँ तू भी इधर आता है अक्सर.
आईना देखता है तो डर जाता है अक्सर.
पहचान भी पायेगा जिसे ढूँढ रहा है
जो खुद करारो कौल पर मिट जाता है अक्सर.
इस राख में भी ताब है इतना बचा हुआ
जो हाथ लगाता है झुलस जाता है अक्सर.
रोता नहीं है चौंक के हट जाता है पीछे
फिर सोचता है और सहम जाता है अक्सर.
जख्मों पर कई बार लगा देता हूँ मरहम
इस दर्दमन्दगी से भी घबराता है अक्सर.
पुचकारता है आ मेरे सीने से तो लग जा
लगते हैं तो वह बर्फ भी बन जाता है अक्सर.
खुद को तलाशने के रास्ते अनेक तो हैं
जिस पर भी चला देखो भटक जाता है अक्सर.
भगवान भी भटकेगा तो बन्दों की खैर हो
वह सोचता है और सिहर जाता अक्सर .
10/14/2015 9:12:56 PM