अपनी प्रशस्ति किसे प्यारी नहीं होती. चन्द सर हिलाने वालों के बीच जो चुप रहते हैं वे भी कुछ कहते हैं. वे कहते हैं मैं सहमत नहीं हूँ या मैं अभिभूत हूँ. कौन निर्णय करेगा आप असहमत हैं या अभिभूत .सहमत नहीं हो तो आपत्ति तो दर्ज़ करो, प्रश्न तो करो. न किया तो चुप्पी का लाभ उसे मिलेगा जो अपनी बात रख चुका है और जिसका जवाब किसी के पास नहीं है. अपने को बचाने के लिए मेरे विचारों पर हमला करो. न किया तो तुम्हारी चुप्पी का अर्थ होगा मेरा समर्थन. इतनी समझ तो हो की विजय लड़कर ही पाई जाती है, पीछे हटकर नहीं.
10/12/2015 9:24:23 PM