Post – 2015-10-10

वह अगले दिन मिला तो खासे उत्साह में था, “हाँ, बताओ पीटने वाले ग़लत थे तो उनका काम कैसे सही था?”
मैंने कहा, “उन्हें पीटना तुमको था और पीट बैठे उस बेचारे को जो तुम्हार बहकावे में आकर एक सुर्खियां बटोरना चाहता था.”
उसने कहा तुम फँस गए हो इसलिए कन्नी काट रहे हो. सच कहो तो तुम्हारी सोच आरएसएस की सोच है. तुम काइयाँ हो इसलिए घुमा फिरा कर बात करते हो कि पकड़ में न आओ.”
मैंने कहा, “यदि आरएसएस की सोच वही है तो मैं नाहक़ बेचारों के बारे में मुगालता पाले हुआ था. मुझे इसका ध्यान ही न रहा कि इस देश को आरएसएस ने ही संभाल रक्खा है नहीं तो तुमलोगों का वश चले तो देश में आग लगा दो और फायर ब्रिगेड के रस्ते में खड़े हो जाओ कि काम पूरा होने पर आना.”
“तुम्हे हो क्या गया है?” गाली भी बेअसर हो गयी तो वह परेशान हो गया. “यह जो होरहा है वह तुम्हे ठीक लगता है?”
“नहीं लग रहा है तभी तो कहा रहा हूँ कि तुम लोगों की अच्छी तरह धुनाई होनी चाहिए, तभी देश बचेगा.”
“तुम जानते हो तुम क्या कह रहे हो?”
“कह यह रहा हूँ कि वैदिक ऋषि गोमांस खाते थे इसे लगातार दुहराते हुए हिन्दुओं की भावना को भड़काते रहे और जब भड़क गई तो दोष उनको देते हो जिन्हे तुमने भड़काया.
“यह तो ऐतिहासिक सच्चाई है. इसमें गलत क्या है?”
“ऐतिहासिक सचाई तो यह भी है कि क़ायदे आज़म भी कुछ खाते थे. प्रश्न यह है कि क़ायदे आज़म के सन्दर्भ में सबसे ज़रूरी सूचना यही है और इसे केन्द्रीय मुद्दा बनाने वाले ऐतिहासिक सचाई की खोज कहेंगे या मुस्लिम समुदाय को भड़काने का ? पढ़े लिखे मुसलमान इसे पढ़ कर किनारे डाल भी दें तो भी क्या खुराफात करने वालों को इसका इस्तेमाल करने से भी रोक लेंगे ? आग लगाने वाले हाथों से अधिक बड़ा अपराधी आगज़नी के लिए पेट्रोल और माचिस थम्हाने वाला हाथ और दिमाग होता है ?”
“लेकिन यह बात तो तुमने भी अपनी किताब में लिखी है. तुम ऐसा कैसे कहा सकते हो.”
“मुझसे पहले यह भवभूति भी लिख चुके हैं. काणे भी लिख चुके हैं. कौसम्बी भी लिख चुके हैं. पर उससे कोई क्षुब्ध हुआ?
“फिर हमने उसी बात को दुहरा दिया तो क्या आफत आगई? उन्होंने कहा तो सत्य कहा और हमने कहा तो फरेब?”
“प्रश्न सत्य या असत्य का नही होता. सही सन्दर्भ में एक कथन सूचना होता और हमारी समझ को विकसित करता है. वही बिना सन्दर्भ के गाली बन जाता है. उज्जवल पक्षों पर परदा डाल कर केवल आहत करने वाले पक्षों का चुनाव या आविष्कार करने वाले खुराफात की जड़ होते हैं. सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का काम वे करते हैं. जिन्हे तुम कोसते हो वे तो victim हैं. असली अपराधी तुम लोग हो. बात अकेले गोमांस की तो है नहीं. इसीलिए कह रहा था “पीटना तुम्हे था और पीट दिया मुखौटे को. वह बेचारा तो सिर्फ सुर्खियां बटोरने के चक्कर में फंस गया.”
उसने लटके हुए मुंह से कहा, “पिट तो रहे हैं. कहाँ थे और इन्हीं बेवकूफियों के कारण कहाँ पहुँच गए और पता नही कहाँ पहुंचेंगे. फिर भी तुमने फासिस्टों की वकालत बहुत अच्छी की.”
मैंने कहा, “फासिस्ट कौन हैं इसे समझने के लिए तुम्हें कल आना पडेगा.”