Post – 2015-10-08

जिन दुखद घटनाओं पर मनुष्य को स्तब्ध रह जाना चाहिए उन पर लोग बोलने की होड़ लगा देते हैं और उकसाते हैं बोलो बोलो जल्दी बोलो नहीं तो मौक़ा हाथ से निकल जाएगा. रघुवीर सहाय की कविता “हंसो हंसो जल्दी हंसो” याद आती है. अवसरवाद के कितने रूप होते है. संवेदनहीनता की कितनी ज़बानें. नौहाख्वाँ संतप्त नही होते, अभिनेता होते हैं.